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Sunday, 22 September, 2024
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प्रधानमंत्री ने सिविल सेवा अधिकारियों से निर्णयों में ‘राष्ट्र प्रथम’ के मंत्र को अपनाने का किया आह्वान

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नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिविल सेवा अधिकारियों से अपने निर्णयों में ‘‘राष्ट्र प्रथम’’ के मंत्र को अपनाने का आह्वान करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि लोकतंत्र में शासन व्यवस्था भिन्न-भिन्न राजनीतिक विचारधाराओं से प्रेरित हो सकती है लेकिन देश की एकता व अखंडता से किसी भी सूरत में कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

15वें सिविल सेवा दिवस के अवसर पर यहां स्थित विज्ञान भवन में लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए पुरस्कार प्रदान करने के बाद सिविल सेवा अधिकारियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भले ही उनका कोई निर्णय स्थानीय स्तर का हो, लेकिन उन्हें यह जरूर देखना चाहिए कि वह निर्णय देश की एकता और अखंडता में कहीं रुकावट तो पैदा नहीं करेगा।

प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब हाल के दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों में साम्प्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए हैं।

करीब 50 मिनट से अधिक के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हमारे हर फैसले का मूल्यांकन देश की एकता और अखंडता को ताकत प्रदान करने की उसकी क्षमता के आधार पर किया जाना चाहिए। हमारे फैसलों में हमेशा ‘राष्ट्र प्रथम’ की झलक मिलनी चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर सिविल सेवा अधिकारियों के सामने तीन लक्ष्य रखे और कहा कि इनसे कोई समझौता नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘पहला लक्ष्य है कि देश के सामान्य से सामान्य जन के जीवन में बदलाव लाना। ना सिर्फ उसके जीवन में बदलाव बल्कि सुगमता भी आए और उन्हें इसका अहसास भी हो। सरकार से मिलने वाले लाभों के लिए उन्हें जद्दोजहद ना करनी पड़े। हमें उनके सपनों को संकल्प में बदलना है। इसके लिए सकारात्मक वातावरण बनाना व्यवस्था की जिम्मेदारी है।’’

प्रधानमंत्री ने दूसरा लक्ष्य वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप नवीनता और आधुनिकता को अपनाना और तीसरा लक्ष्य एकता व अखंडता से समझौता ना करना बताया।

उन्होंने कहा, ‘‘आज हम कुछ भी करें, उसको वैश्विक सन्दर्भ में करना समय की मांग है…और तीसरा लक्ष्य… व्यवस्था में हम कहीं पर भी हों, लेकिन जिस व्यवस्था से हम निकले हैं, उसमें हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है देश की एकता और अखंडता। यह लक्ष्य कभी भी ओझल नहीं होना चाहिए। इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता।’’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘कोई भी निर्णय…वह चाहे स्थानीय स्तर का ही क्यों ना हो और कितना भी लोकलुभावन हो या आकर्षक हो, उसे उस तराजू पर जरूर तौलिए कि कहीं देश की एकता और अखंडता में वह बाधक या रूकावट तो नहीं पैदा करेगा।’’

उन्होंने अधिकारियों से कहा कि उनके काम की कसौटी में ‘‘राष्ट्र प्रथम’’ होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसी भी निर्णय का आकलन इस आधार पर होना चाहिए कि उसमें देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने की कितनी क्षमता है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा कोई भी फैसला देश की एकता को मजबूत करने वाली भावना से जुड़ा होना चाहिए। लोकतंत्र में शासन व्यवस्था भिन्न-भिन्न राजनीतिक विचारधाराओं से प्रेरित हो सकती हैं लेकिन और यह स्वाभाविक भी है लेकिन देश में एकता और अखंडता के मंत्र को हमें आगे बढ़ाते रहना चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अधिकारियों से कहा कि पिछली शताब्दी की सोच और नीति नियमों से अगली शताब्दी की मजबूती का संकल्प नहीं लिया जा सकता लिहाजा तेज गति से बदलते विश्व में उन्हें भी समय के साथ चलना पड़ेगा और व्यवस्थाओं में बदलाव करना होगा।

आजादी की 100वीं वर्षगांठ में बचे 25 सालों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कालखंड सामान्य नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस 25 साल को एक इकाई के रूप में देखना होगा और हमारे पास इसे लेकर एक दूरदृष्टि होनी चाहिए। 100 वर्षों का भारत एक ऐतिहासिक क्षण होगा।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के सभी जिलों को इसी भावना के साथ आगे बढ़ना होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत की संस्कृति की ये विशेषता है कि हमारा देश राज्य व्यवस्थाओं से नहीं बना है। हमारा देश राजसिंहासनों की बपौती नहीं रहा है। इस देश में जन सामान्य के सामर्थ्य को लेकर चलने की सदियों से एक परंपरा रही है।’’

देश में स्टार्ट-अप और कृषि के क्षेत्र में हो रहे नवोन्मेषों का उल्लेख करते हुए अधिकारियों से इनमें सकारात्मक भूमिका निभाने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासन में सुधार हमारा स्वाभाविक रुख होना चाहिए और यह देश काल व समय के अनुकूल होना चाहिए। शासन में सुधार एक नित्य और सहज प्रक्रिया एवं प्रयोगशील व्यवस्था होनी चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले आठ सालों में देश में अनेक बड़े काम हुए और इनमें से अनेक अभियान ऐसे हैं जिनके मूल में व्यवहारिक परिवर्तन है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं राजनीतिक स्वभाव का नहीं हूं, बल्कि मेरा स्वाभाविक झुकाव जननीति के प्रति है।’’

केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों के संगठनों और जिलों द्वारा जन हित के असाधारण और अभिनव कार्यों को सम्‍मानित करने के लिए ये पुरस्कार दिए जाते हैं। इस वर्ष प्राथमिकता के आधार पर पांच कार्यक्रमों के लिए 10 पुरस्‍कार दिए गए। केन्‍द्र तथा राज्‍य सरकार के संगठनों और जिलों को नवाचार के लिए छह पुरस्‍कार प्रदान किये गए।

प्रधानमंत्री ने ने पुरस्कार विजेताओं से कहा कि वे विदेश मंत्रालय और पुलिस विभाग सहित देशभर में स्थित सिविल सेवा से जुड़े तमाम प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण ले रहे प्रशिक्षुओं को हर सप्ताह एक से डेढ़ घंटे का समय निकालकर वर्चुअल माध्यम से अपने अनुभव साझा करें।

उन्होंने कहा कि यदि प्रत्येक सप्ताह ऐसे दो पुरस्कृत अधिकारियों से चर्चा होगी, तो आने वाली नई पीढ़ी के अधिकारियों को उनके अनुभवों से काफी मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि ऐसा करना अधिकारियों को लिए भी लाभप्रद होगा और वे इससे जुड़े रहेंगे।

प्रधानमंत्री ने अधिकारियों को यह सुझाव भी दिया कि वे जिन जिलों में काम कर रहे हैं, यदि अपने पूर्ववर्ती जिलाधिकारियों को बुलाए और मिलने का कार्यक्रम बनाएं तो उन्हें एक नया अनुभव होगा।

उन्होंने कहा कि इसी तरह मुख्यमंत्री राज्य के पूर्व मुख्य सचिवों, कैबिनेट सचिवों को बुला सकते हैं और स्वतंत्र भारत की यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रशासनिक तंत्र के ध्वजवाहकों से लाभ उठा सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में सिविल सेवा को सम्मानित करने का यह एक उपयुक्त तरीका होगा।’’

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री जितेन्‍द्र सिंह सहित केंद्र सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। सिंह ने बुधवार को 15वें सिविल सेवा दिवस समारोह का उद्घाटन किया था।

भाषा ब्रजेन्द्र

ब्रजेन्द्र उमा

उमा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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