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Sunday, 8 September, 2024
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न्यायालय आरोपी के बरी होने पर फैसला सार्वजनिक मंच से हटाने संबंधी याचिका पर सुनवाई करेगा

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नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि आपराधिक मामलों में आरोपी को बरी किए जाने के बाद, भुला देने के अधिकार के तहत अदालत के आदेशों द्वारा सार्वजनिक मंच से फैसलों को हटाने के ‘‘बहुत गंभीर परिणाम’’ होंगे।

हालांकि, शीर्ष अदालत कानून के इस जटिल प्रश्न पर विचार करने के लिए सहमत हो गई कि क्या कोई आरोपी, आपराधिक मामले में दोषमुक्त होने के बाद, उसे भुला दिये जाने के अधिकार का उपयोग करते हुए डिजिटल मंच सहित सार्वजनिक मंच से फैसले को हटाने का अनुरोध कर सकता है।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बेंगलुरू स्थित कानूनी वेबसाइट ‘ईकानून सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड’ की दलीलों पर गौर करने के बाद कहा, ‘‘कोई अदालत ऐसा आदेश कैसे दे सकती है? यह कहना कि फैसले, जो एक सार्वजनिक दस्तावेज है, को हटा दिया जाए। इसके बहुत गंभीर परिणाम होंगे।’’

कंपनी ने अदालत को सूचित किया कि मद्रास उच्च न्यायालय ने उसे एक निर्णय को हटाने को कहा है जिसमें बलात्कार और धोखाधड़ी के मामले में बरी किये गये एक व्यक्ति की पहचान का खुलासा किया गया था।

पीठ ने आदेश दिया, ‘‘नोटिस जारी करें और इस दौरान मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देशों पर रोक रहेगी।’’ न्यायालय ने कहा कि वह इस मुद्दे पर कानून की व्याख्या करेगा।

वकील अबीहा जैदी के माध्यम से वेबसाइट ने याचिका दायर की है।

जैदी ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले से ‘‘याचिकाकर्ता और आम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत दी गई है। साथ ही याचिकाकर्ता की व्यापार, कारोबार और पेशे की स्वतंत्रता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसे अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत संरक्षण प्राप्त है।’’

जैदी ने कहा कि केरल और गुजरात के उच्च न्यायालयों ने स्वीकार किया है कि ऐसे मामलों में फैसले को भुला दिये जाने का कोई अधिकार नहीं है जबकि वर्तमान मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने इसके विपरीत विचार व्यक्त किया है।

वकील ने कहा, ‘‘विभिन्न उच्च न्यायालयों के विरोधाभासी निर्णयों से कानून को लेकर मूलभूत सवाल उभर रहे हैं।’’

पीठ ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले व्यक्ति की ओर से पेश वकील से सवाल किया, ‘‘मान लीजिए कि आपको बरी कर दिया गया है, तो उच्च न्यायालय उनसे (वेबसाइट से) निर्णय हटाने के लिए कैसे कह सकता है, जो कि सार्वजनिक दस्तावेज का हिस्सा है…जब निर्णय सुनाया जाता है तो वह सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा होता है।’’

न्यायालय ने कहा कि इस तरह की नजीर से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां वाणिज्यिक विवादों में वादी यह कहेंगे कि फैसलों को हटा दिया जाए क्योंकि उनसे वादी पक्षों के बारे में वित्तीय जानकारी सामने आ सकती है।

पीठ ने कहा कि यहां तक कि दोषी व्यक्ति यह दलील देते हुए याचिका दायर कर सकता है कि उसने सजा पूरी कर ली है।

उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे.एस.खेहर की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने 24 अगस्त 2017 को फैसला दिया था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता) में निहित है।

भाषा धीरज सुभाष

सुभाष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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