न्यायमूर्ति जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोइ, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसफ ने मुख्य न्यायाधीश पर लगाया भेदभाव बरतने का आरोप.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने शुक्रवार 12 जनवरी को एक अप्रत्याशित, अभूतपूर्व पत्रकार सम्मेलन करके मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विवादास्पद फैसलों के खिलाफ अपना रोष प्रकट किया. ये चार जज हैं- न्यायमूर्ति जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोइ, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसफ. उनका एक अहम मुद्दा यह भी है कि मुख्य न्यायाधीश विभिन्न पीठों को मुकदमों के “बंटवारे में भेदभाव” कर रहे हैं और ऐसा वरिष्ठतम जजों की पीठ के साथ भी किया जा रहा है.
ऐसे मामलों की एक लंबी कड़ी है, जिनको लेकर सवाल खड़े किए जा सकते हैं. सबसे ताजा मामला महाराष्ट्र के जज बृजगोपाल लोया की रहस्यमय मृत्यु की जांच का है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने बुधवार को यह मामला न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ को सौंपा है.
जब कि चारों जज पत्रकार सम्मेलन कर रहे थे, इस विवादास्पद मामले की संक्षिप्त सुनवाई की गई और इसे स्थगित कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को कोई नोटिस नहीं भेजा और स्थायी वकील से कहा कि वे सुनवाई की अगली तारीख से पहले निर्देश ले लें.
वास्तव में, अरुण मिश्रा को कई प्रमुख मामले सौंपे गए हैं.
मेडिकल कॉलेजों का घपला
पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने जब सुप्रीम कोर्ट के जजों को घूस देने की कोशिशों के आरोपों पर जस्टिस जे चेलमेश्वर के आदेश को उलट दिया, तब मुख्य न्यायाधीश ने मामले को दूसरी छोटी पीठ को सौंप दिया. अरुण मिश्रा उस संवैधानिक पीठ में भी थे और तीन जजों की उस पीठ में भी थे जिसने मामले की न्यायिक जांच करने की जरूरत से इनकार कर दिया था. सुनवाई के दौरान अरुण मिश्रा ने कई बार कहा कि इस मामले की वकालत कर रहे दोनों वकीलों- प्रशांत भूषण और कामिनी जायसवाल- पर अदालत की मानहानि का मुकदमा चलाया जाए क्योंकि उन्होंने दीपक मिश्रा के खिलाफ जांच करवाने की मांग की थी.
सहारा-बिड़ला डायरी
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और अमिताभ राय की पीठ ने बहुचर्चित सहारा-बिड़ला डायरी मामले की जांच की मांग से संबंधित मुकदमे की भी सुनवाई की. आरोप हैं कि इस कथित डायरी में यह भी दर्ज है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहारा और आदित्य बिड़ला समूहों से पैसे लिये. अदालत ने कहा कि ये मामले तो “खारिज किए जाने योग्य” ही हैं.
पिछले सप्ताह मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने एयरसेल-मैक्सिस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के पुत्र कार्तिक की संपत्तियों की कुर्की से संबंधित मुकदमे से खुद को अलग कर लिया. उन्होंने कहा कि इस मुकदमे की सुनवाई अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ करेगी.
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा कौन हैं?
अरुण मिश्रा को जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. उनका कार्यकाल सितंबर 2020 में पूरा होगा, इससे पहले वे 15 साल तक हाइकोर्ट जज रहे. उनकी प्रोन्नति में असामान्य देरी हुई. अगर यह समय पर होता तो वे सिर्फ एक जूनियर जज के रूप में छह साल तक सेवा देने के बदले मुख्य न्यायाधीश के पद को भी सुशोभित करते. वे दीवानी, औद्योगिक, सेवा और आपराधिक मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं. वे मध्य प्रदेश हाइकोर्ट में जज रहे और 2010-14 के बीच राजस्थान और कलकत हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी रहे. उन्हें एक हाइकोर्ट जज के तौर पर एक लाख से ज्याद मामलों के फैसले सुनाने का गौरव हासिल है. वे बार काउंसिल ऑफ इडिया के सबसे युवा अध्यक्ष भी रहे. उनके पिता एच.जी. मिश्रा भी मध्य प्रदेश हाइकोर्ट के जज थे.