नयी दिल्ली, 13 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बिना किसी चिकित्सीय देखरेख के अयोग्य लोगों द्वारा बाल प्रतिरोपण करने वाले सैलून की बढ़ती संख्या को लेकर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि इनसे ग्राहकों की जान जोखिम में पड़ती है।
अदालत ने कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार द्वारा ऐसे उपाय सुनिश्चित किया जाना अपरिहार्य है कि इन प्रक्रियाओं पर लगाम लग सके और लोगों को जागरूक किया जाए कि ऐसी प्रक्रियाएं जानलेवा हो सकती हैं, साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सीय प्रोटोकॉल बनाया जाए।
रोहिणी में एक सैलून में बाल प्रतिरोपण की प्रक्रिया के दौरान कथित लापरवाही के कारण 35 वर्षीय व्यक्ति की मौत से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अनूप मेंदिरत्ता ने दिल्ली पुलिस आयुक्त से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि चिकित्सीय कदाचार की ये घटनाएं दोबारा न हों।
उन्होंने पुलिस आयुक्त से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि उन सैलून्स के खिलाफ कार्रवाई की जाए, जो स्थापित प्रोटोकॉल और नियमों की अवज्ञा कर बिना किसी चिकित्सीय देखरेख के अयोग्य पेशेवरों द्वारा बाल प्रतिरोपण इलाज/सौंदर्य सर्जरी कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति मेंदिरत्ता ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और दिल्ली चिकित्सा परिषद समेत सभी प्राधिकारियों से स्थिति रिपोर्ट मांगी और कहा कि चूंकि बाल प्रतिरोपण एक सौंदर्य सर्जरी है, इसलिए योग्य त्वचा विशेषज्ञों या प्रशिक्षित सर्जन द्वारा ही इसे किये जाने की आवश्यकता है।
मौजूदा मामले में इस प्रक्रिया के लिए 30,000 रुपये देने वाले व्यक्ति के चेहरे और कंधों पर सूजन आने के बाद खोपड़ी में दर्द हुआ और एक अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी।
इलाज के दस्तावेजों के अनुसार, स्टीवेन्स-जॉनसन सिंड्रोम के कारण कई अंगों के काम बंद करने तथा शरीर में संक्रमण फैलने को मौत की असली वजह बतायी गई है।
इस मामले पर अगली सुनवाई 27 जुलाई को होगी।
भाषा
गोला मनीषा सुरेश
सुरेश
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