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Monday, 23 September, 2024
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अबु सलेम मामले में गृह सचिव के बयान से उच्चतम न्यायालय नाखुश

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नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 1993 मुंबई बम विस्फोट मामले में उम्रकैद की सजा को चुनौती देने वाली गैंगस्टर अबु सलेम की याचिका पर केन्द्रीय गृहसचिव के जवाबी हलफनामे पर बृहस्पतिवार को नाखुशी जतायी और कहा कि यह ‘‘न्यायपालिका को उपदेश देने का प्रयास है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह केन्द्रीय गृह सचिच अजय कुमार भल्ला द्वारा दायर हलफनामे को ‘बहुत हलके’ में नहीं ले रही है और उसे इसका ‘आशय’ पसंद नहीं आया।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुन्दरेश की पीठ ने कहा कि न्यायालय इसका सम्मान करता है कि ये आसान फैसले नहीं हैं लेकिन केन्द्र सरकार के प्रशासन के पास इस मुद्दों पर फैसला लेने का माद्दा होना चाहिए और किसी अन्य देश (विदेश) को किए गए वादों पर स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘माफ करिए, लेकिन यह केन्द्र सरकार के प्रशासन की अच्छी छवि पेश नहीं करता। इतने अवसर लेने के बावजूद वे न्यायालय के समक्ष स्पष्ट रुख नहीं पेश कर सके । हमें केन्द्रीय गृह सचिव से उपदेश सुनने की जरुरत नहीं है। इस न्यायालय को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इस पर न्यायालय स्वयं फैसला कर सकता है। यह न्यायपालिका को उपदेश देने का प्रयास है।’’

हलफनामे के कुछ पैराग्राफ का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि वह यह कहने को विवश है कि ‘‘सम्प्रभु आश्वासन पर स्पष्ट रुख अपनाने की जगह आप उपदेश देने के मूड में हैं। हमें आपकी जटिलताओं/प्रभाव से मतलब नहीं है। आप हमें नहीं बता सकते हैं कि न्यायालय को क्या करना चाहिए।’’

पीठ हलफनामे के कुछ पैराग्राफ से नाखुश थी जिसमें कहा गया था कि मुकदमे के गुण-दोष के साथ वादे अथवा आश्वासन को जोड़ना कानूनी रूप से संभव नहीं है और उसे गुण-दोष के आधार पर मुकदमे की पैरवी करनी चाहिए और न्यायालय को भी अपील पर गुण-दोष के आधार पर फैसला लेना चाहिए।

पीठ को हफलनामे के उस हिस्से पर और नाराजगी हुई जिसमें कहा गया है कि तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा 17 दिसंबर, 2002 को पुर्तगाल सरकार को दिए गए आश्वासन का उचित समय पर पालन किया जाएगा और भारत सरकार कानून के तहत आश्वासन पर अमल करेगी लेकिन उसमें उस वक्त उपलब्ध न्यायिक उपचार की शर्त लागू होगी।

उसने कहा कि हलफनामे में यह कहने का प्रयास किया गया है कि यह पहले की गई मध्यस्थता के तहत उठाया गया आश्चर्यजनक कदम है जिसमें याचिकाकर्ता (सलेम) की भूमिका रही थी और उसे प्रत्यर्पण कानून के तहत प्रत्यर्पित करके भारत लाया गया है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इन अधिकारों को कार्यपालिका का अधिकार बताया गया है और इसका पालन उक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के लिए अनिवार्य है, लेकिन न्यायपालिका, जैसा कि भारत के संविधान में कहा गया है, कानून के तहत फौजदारी मामलों सहित सभी मामलों पर फेसले लेने के लिए स्वतंत्र है।’’

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए पांच मई की तारीख तय की है।

भाषा अर्पणा मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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