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Tuesday, 21 May, 2024
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अदालत ने तुलजा भवानी मंदिर के दान के कथित गबन के मामले में जांच का आदेश दिया

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मुंबई, 10 मई (भाषा) बम्बई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने 1991 से 2009 के बीच महाराष्ट्र के धाराशिव जिले के तुलजापुर में तुलजा भवानी मंदिर को दान में दिये गये धन और अन्य कीमती सामान के कथित गबन की पुलिस जांच का आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति मंगेश पाटिल और न्यायमूर्ति शैलेश ब्रह्मे की खंडपीठ ने बृहस्पतिवार को एक प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया और कहा कि जांच राज्य अपराध जांच विभाग (सीआईडी) के अधीक्षक स्तर के अधिकारी द्वारा की जाए।

अदालत ने यह आदेश एक धर्मार्थ ट्रस्ट, हिंदू जनजागृति समिति द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर पारित किया, जिसमें उस अवधि के दौरान तुलजा भवानी मंदिर ट्रस्ट के प्रबंधन में हुई कथित धोखाधड़ी और हेराफेरी को रेखांकित किया गया था।

याचिका के अनुसार, उस समय इसके प्रबंधन के लिए कोई उपनियम या नियम-कायदे नहीं थे। याचिका में एक प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया गया था।

अदालत ने 2009 में पुलिस द्वारा प्रस्तुत दो जांच रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें यह बात सामने आयी थी कि उक्त अवधि के दौरान मंदिर के दान बक्सों की नीलामी करके अधिकारियों द्वारा 8.46 करोड़ रुपये की नकदी, सोना और अन्य कीमती सामान की कथित तौर पर हेराफेरी की गई।

राज्य सरकार ने याचिका का विरोध किया था और दावा किया था कि इस स्तर पर प्राथमिकी दर्ज करना निरर्थक होगा क्योंकि लंबा समय बीत चुका है।

अदालत ने हालांकि कहा, ‘हम इस मुद्दे पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर राज्य सरकार द्वारा अपनाए जा रहे रुख का समर्थन नहीं कर सकते। यदि अपराध दर्ज किया जाता है और जांच की जाती है और यदि जांच मशीनरी/अधिकारी सामग्री एकत्र करने में असमर्थ होता है, तो जाहिर है, वह इसे साबित करने की स्थिति में नहीं होगा और हो सकता है कि एक आरोपपत्र भी दाखिल नहीं कर सके। हालांकि, कार्रवाई को रोका नहीं जा सकता।’’

इसमें कहा गया है कि मामला हेराफेरी और जालसाजी का सहारा लेकर विश्वास के आपराधिक उल्लंघन से संबंधित है और इसलिए आपराधिक कानून को लागू किया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा, ‘आरोपों की विस्तृत जांच होनी चाहिए।’

याचिका के अनुसार, 1984 से मंदिर के ट्रस्टियों ने मंदिर की दान पेटी की नीलामी करने की प्रथा शुरू की। याचिका के अनुसार, इस प्रथा को सितंबर 1991 में बंद कर दिया गया था। हालांकि, बिना कोई कारण बताए, नीलामी की प्रथा 1991 और 2009 के बीच फिर से शुरू की गई।

याचिका में दावा किया गया कि इस अवधि के दौरान मंदिर को चढ़ावे के संबंध में बड़े पैमाने पर गबन हुआ। याचिका में दावा किया गया कि दान पेटी के माध्यम से सोने और चांदी के आभूषणों की भारी पेशकश के बावजूद केवल कुछ ही हिसाब किताब किया गया।

भाषा अमित पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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