चार असंतुष्ट जजों का कहना है कि मुख्य न्यायाधीश बेशक रोस्टर के मालिक हैं, लेकिन अपनी “पसंद की पीठों” को “चुनिंदा मामले सौंप कर” वे प्रोटोकॉल तोड़ रहे हैं.
नई दिल्ली: प्रशासनिक मामलों पर मुख्य न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ चार वरिष्ठ जजों के विरोध ने जजों को मामले आवंटित करने की प्रक्रिया को चर्चा के केंद्र में ला दिया है. न्यायमूर्ति जस्ति चेलमेश्वर, रंजन गोगोइ, कुरियन जोसफ और मदन बी. लोकुर ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा अपनी “पसंद की पीठों” को “चुनिंदा मामले सौंप कर” लंबे समय से स्थापित प्रोटोकॉल को तोड़ रहे हैं. एक पत्र में इन चारों जजों ने मुख्य न्यायाधीश को याद दिलाया है कि “रोस्टर (कार्यसूची) तैयार करना उनका विशेषाधिकार तो हैं” लेकिन इससे “साथी जजों के मुकाबले मुख्य न्यायाधीश की कानूनी या वास्तविक श्रेष्ठता को मान्यता नहीं मिल जाती.”
क्या है तरीका
भारत का सर्वोच्च न्यायालय आमतौर पर दो-दो जजों की पीठों में बैठता है. जरूरत होने पर ज्यादा जजों की पीठ का भी गठन किया जाता है. ‘रोस्टर का मास्टर’ होने के नाते मुख्य न्यायाधीश को कोर्ट के दूसरे जजों को मामल आवंटित करने का विशेषाधिकार हासिल है. सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री (वह कार्यालय जो सभी दस्तावेजों को स्वीकार करता है और उन पर कार्यवाही आगे बढ़ाता है) मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर मामलों का आवंटन करता है. सुप्रीम कोर्ट का रोस्टर व्यापक तौर पर वर्गीकृत ‘विषयों’ पर आधारित होता है. जब कोर्ट में कोई नया मामला दायर होता है, उसे एक ‘विषय’ के अंतर्गत डाल दिया जाता है. विषयों का वर्गीकरण सुप्रीम कोर्ट नियमावली, 2013 के तहत किया जाता है. व्यापक तौर पर 47 वर्ग बनाए गए हैं- पत्र याचिका, लोकहित मामला (पीआइएल), शैक्षिक मामला, सेवा संबंधी मामला, आदि और इनके अंतर्गत भी कई उपवर्ग बनाए गए हैं.
कई वकील स्वीकार करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट कें मामलों का आवंटन एकदम रोस्टर के मुताबिक नहीं होता. कई मुख्य न्यायाधीश महत्वपूर्ण मामलों को अपने अंतर्गत सूचीबद्ध करते हैं या जजों के ऊपर काम के बोझ को ध्यान में रखकर दूसरी पीठों में भेज देते हैं. ज्यादातर ऐसा होता है कि एक ही विषय से संबंधित मामले एक से ज्यादा पीठों को आवंटित किए जाते हैं. उदाहरण के लिए पीआइएल मामले उन दो पीठों में से किसी को दिए जाते हैं, जिन्हें यह विषय सौंपा गया है, या मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर किसी दूसरी पीठ को सौंपे जा सकते हैं.
हाइकोर्ट में यह व्यवस्था थोड़ी अलग होती है. उनमें रोस्टर ज्यादा विषय केंद्रित होता है. उदाहरण के लिए, दिल्ली हाइकोर्ट के चालू रोस्टर में सभी संभावित वर्गों के मामले को जजों में बराबर-बराबर बांट दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट आवंटन को सार्वजनिक नहीं करता जबकि हाइकोर्ट इसे सार्वजनिक कर देता है. ये आवंटन हाथों से किए जाते हैं लेकिन एक दशक से ज्यादा हो गए, जब रजिस्ट्री में डिजिटल व्यवस्था की गई जिसके जरिए मामले को संबंधित पीठ को स्वतः भेज दिया जाता है. इसमें एकमात्र अपवाद मुख्य न्यायाधीश के आदेश के कारण किया जाता है.
रजिस्ट्री का प्रमुख कौन है?
इसमें छह रजिस्ट्रार होते हैं जिनका प्रमुख सेक्रेटरी-जनरल होता है. वर्तमान प्रमुख रवींद्र मैथानी हैं, जो 2013 से इस पद पर हैं. हालांकि हरेक मुख्य न्यायाधीश अपनी पसंद का सेक्रेटरी-जनरल नियुक्त करते हैं, मैथानी न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर को छोड़कर लगातार सात मुख्य न्यायाधीशों के साथ काम कर चुके हैं. 2016 में ठाकुर ने मैथानी की जगह आंध्र प्रदेश के अधिकारी वी.एस.आर. अवधानी को नियुक्त किया था. ठाकुर के बाद न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर ने मुख्य न्यायाधीश बनते ही मैथानी को बुला लिया.
सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के अधिकारी जिला जज के दर्जे के न्यायिक अधिकारी होते हैं. ये सारे प्रायः डेपुटेशन पर होते हैं और कार्यकाल पूरा होते ही अपने गृह काडर में लौट जाते हैं. कुछ को हाइकोर्ट जज भी बनाया जाता है. मैथानी से पहले सेक्रेटरी-जनरल रहे न्यायमूर्ति ए.आइ.एस. चीमा को बॉम्बे हाइकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें राष्ट्रीय कंपनी कानून अपील ट्रिबुनल का सदस्य नियुक्त किया गया.
रजिस्ट्री के साथ मिश्रा का बरताव
मेडिकल कॉलेज मामले में संविधान पीठ हड़बड़ी में नियुक्त करने के बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने आदेश जारी किया कि इससे जुड़े सारे मामले दूसरी पीठों से उनके पास भेज दिए जाएं. उन्होंने एक प्रशासनिक आदेश यह जारी किया कि मामलों को नए तरह से सूचीबद्ध करने का अनुरोध केवल मुख्य न्यायाधीश के आगे करने की इजाजत होगी.
चार जजों की पीड़ा यह थी कि मुख्य न्यायाधीश स्थापित नियमों से हट कर चलेंगे तो इससे “संस्था की प्रतिष्ठा को लेकर राज्यतंत्र में जो संदेह पैदा होंगे उसके अप्रिय तथा अवांछित परिणाम होंगे.”