नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) तमिलनाडु सरकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में भारतीय सर्वेक्षण विभाग के इस निष्कर्ष का विरोध किया कि केरल ने मुल्लापेरियार बांध के पास एक मेगा कार पार्किंग परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान अक्टूबर 1886 के पेरियार झील पट्टा समझौते के तहत आने वाली भूमि पर अतिक्रमण नहीं किया है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने केरल के खिलाफ तमिलनाडु द्वारा दायर मूल मुकदमे में सुनवाई के लिए कानूनी मुद्दों को अंतिम रूप देने के लिए 10 जुलाई की तारीख तय की।
पीठ ने कहा, “तमिलनाडु ने सर्वेक्षण रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए एक हलफनामा दायर किया है। प्रतिवादी (केरल) को उक्त आपत्तियों के संबंध में एक हलफनामा दायर करना होगा।’’
इसने केरल को तमिलनाडु द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया और दोनों राज्यों से उन मुख्य कानूनी मुद्दों को अंतिम रूप देने के लिए कहा जिन पर निर्णय लेने की आवश्यकता है।
तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर हलफनामे में सर्वेक्षण रिपोर्ट पर आपत्ति जताई गई और कहा गया कि यह तथ्यात्मक रूप से गलत है कि समूची कार पार्किंग का निर्माण पट्टे वाले क्षेत्र के बाहर किया गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन और उमापति ने तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व किया तथा कहा कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट को खारिज किए जाने की जरूरत है।
सर्वेक्षण रिपोर्ट 5 मार्च, 2024 को सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत में दाखिल की गई थी जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि मेगा कार पार्किंग का निर्माण पट्टा जलक्षेत्र के भीतर नहीं किया गया है और इससे जल भंडारण प्रभावित नहीं होता।
शीर्ष अदालत ने 11 नवंबर, 2023 को भारतीय सर्वेक्षण विभाग को यह पता लगाने का आदेश दिया था कि मेगा कार पार्किंग का निर्माण 29 अक्टूबर, 1886 के पेरियार झील पट्टा समझौते के तहत आने वाली भूमि के किसी हिस्से पर किया गया है या नहीं।
भाषा नेत्रपाल वैभव
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