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भोपाल गैस त्रासदी मामले का घटनाक्रम

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नयी दिल्ली, 14 मार्च (भाषा) भोपाल में 1984 में हुई गैस त्रासदी का घटनाक्रम इस प्रकार है। इस हादसे में 3,000 से अधिक लोग मारे गये थे और इससे पर्यावरण को भी बहुत नुकसान हुआ था।

2-3 दिसंबर, 1984: भोपाल में यूनियन कार्बाइड से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव।

3 दिसंबर, 1984: पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के कर्मचारियों जय मुकुंद, सत्यप्रकाश चौधरी, के वी शेट्टी, आर बी रॉय चौधरी और शकील इब्राहिम कुरैशी को गिरफ्तार किया गया।

6 दिसंबर, 1984: मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी।

7 दिसंबर, 1984: पुलिस ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष वारेन एम एंडरसन, यूसीआईएल के अध्यक्ष केशब महिंद्रा तथा यूसीआईएल के प्रबंध निदेशक विजय प्रभाकर गोखले को गिरफ्तार किया।

7 दिसंबर, 1984: वारेन एंडरसन को 2,000 डॉलर की जमानत राशि पर वापसी के वादे पर रिहा किया गया।

9 दिसंबर, 1984: सीबीआई ने मामले में जांच शुरू की।

फरवरी 1985 : भारत सरकार ने अमेरिका की एक अदालत में यूनियन कार्बाइड से 3.3 अरब डॉलर पाने का दावा दायर किया।

29 मार्च, 1985: भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावा प्रसंस्करण) अधिनियम, 1985 पारित किया गया जिसमें केंद्र को विशेष रूप से पीड़ितों का पक्ष रखने का अधिकार दिया गया।

आठ अगस्त, 1985: केंद्र ने आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए अमेरिका की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।

12 मई, 1986: अमेरिका की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के न्यायाधीश कीनन ने भोपाल से जुड़े सभी वादों को भारत स्थानांतरित किया।

30 नवंबर, 1987: सीबीआई ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत में आरोप पत्र दायर किया।

दिसंबर 1987: सीबीआई ने एंडरसन और अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। आरोपियों में यूसीसी (अमेरिका), यूनियन कार्बाइड (ईस्टर्न) हांगकांग और यूसीआईएल थे।

एक दिसंबर, 1987: सीजेएम, भोपाल ने एंडरसन के खिलाफ समन जारी किया।

17 दिसंबर, 1987: जिला अदालत ने अंतरिम मुआवजे के रूप में 350 करोड़ रुपये के भुगतान का अंतरिम आदेश दिया।

4 अप्रैल, 1988 : यूसीसी ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने अंतरिम मुआवजे की राशि कम करके 250 करोड़ रुपये की।

7 जुलाई, 1988: सीजेएम, भोपाल ने एंडरसन के खिलाफ नये सिरे से समन जारी किया।

20 सितंबर, 1988: वाशिंगटन में भारतीय दूतावास से पत्र मिला कि एंडरसन को समन भेजा गया है।

15 नवंबर, 1988: सीजेएम, भोपाल ने एंडरसन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया।

1988: केंद्र और यूसीसी ने विशेष अनुमति याचिकाएं दायर कीं।

14 फरवरी, 1989: न्यायालय ने 47 करोड़ डॉलर के दावों के कुल निपटान का आदेश दिया।

1992: 47 करोड़ डॉलर में से एक हिस्सा सरकार ने भोपाल गैस पीड़ितों को बांटा।

फरवरी 1992: अदालत ने एंडरसन को भगोड़ा घोषित किया।

10 अप्रैल, 1992 : भोपाल की अदालत ने एंडरसन के खिलाफ प्रत्यर्पण की कार्यवाही के लिए उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया।

13 अप्रैल, 1992: केंद्र ने हादसे में मृत्यु के लिए 1 से 3 लाख रुपये तक के मुआवजे के लिए दिशानिर्देश जारी किये।

25 मई, 1992: सीजेएम भोपाल ने एंडरसन, यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (अमेरिका) और यूनियन कार्बाइड ईस्टर्न इंक (हांगकांग) के मुकदमे को अन्य आरोपियों के मुकदमों से अलग किया।

22 जून, 1992 : भोपाल सीजेएम ने बाकी नौ आरोपियों के खिलाफ मामले को सत्र अदालत को भेजा।

नवंबर 1994: पीड़ितों के समूहों की अनेक याचिकाओं के बावजूद उच्चतम न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड को यूसीआईएल में उसकी हिस्सेदारी को कलकत्ता की मैकलियोड रसेल (इंडिया) लिमिटेड को बेचने की अनुमति दी।

13 सितंबर, 1996: आरोपियों की याचिका पर न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा उनके खिलाफ तय किये गये तथा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखे गये आरोपों को हल्का किया।

10 मार्च, 1997 : न्यायालय ने एनजीओ ‘भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति’ की एक याचिका खारिज कर दी जिसमें उसके आरोपों को हल्का करने के 1996 के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था।

नवंबर 1999: पीड़ितों के संगठनों ने अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और पर्यावरण कानून तोड़ने के लिए यूनियन कार्बाइड तथा एंडरसन के खिलाफ न्यूयॉर्क की संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया।

फरवरी 2001: यूनियन कार्बाइड ने भारत में यूसीआईएल की देनदारी के लिए जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया।

अगस्त 2002: भोपाल की अदालत ने एंडरसन के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या के आरोपों को कायम रखा और उसके प्रत्यर्पण की मांग की।

11 अक्टूबर, 2002: सीजेएम, भोपाल ने आईपीसी की धारा 35 के साथ पढ़ते हुए धाराओं 304, 324 और 429 के तहत नये सिरे से गिरफ्तारी वारंट जारी किया। अमेरिका के अधिकारियों ने गिरफ्तारी वारंट की तामील नहीं की और लौटा दिया।

मई 2003 : भारत सरकार ने अमेरिका को एंडरसन के प्रर्त्यपण के अपने अनुरोध के बारे में औपचारिक तरीके से बताया।

मार्च 2004: अमेरिका की एक अदालत ने कहा कि यदि भारत सरकार अनापत्ति प्रमाणपत्र देती तो वह डाऊ केमिकल्स को खाली पड़े कारखाने में मिट्टी और भूजल की सफाई का आदेश दे सकती है। भारत सरकार ने अमेरिका को प्रमाणपत्र भेजा।

जून 2004 : अमेरिका ने एंडरसन के प्रत्यर्पण के अनुरोध को खारिज कर दिया।

19 जून, 2004 : न्यायालय ने मुआवजे के रूप में मिले और 1992 से केंद्रीय बैंक में रखे 47 करोड़ डॉलर की राशि में से 15 अरब रुपये से अधिक का भुगतान करने को कहा।

25 अक्टूबर, 2004: भोपाल गैस पीड़ितों ने मुआवजे का भुगतान नहीं होने पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।

26 अक्टूबर, 2004: न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड द्वारा दी गयी मुआवजा राशि में से शेष राशि का भुगतान करने के लिए 15 नवंबर की समय-सीमा तय की।

22 जुलाई, 2009 : भोपाल सीजेएम ने एंडरसन के खिलाफ गैर-जमानती वारंट नये सिरे से जारी किया।

7 जून, 2010 : भोपाल सीजेएम ने 25 साल से अधिक समय बाद सभी आठ आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें दो-दो साल के कारावास के साथ जुर्माने की सजा सुनाई। हालांकि सभी आठ दोषियों को जमानत दे दी गयी।

31 अगस्त, 2010 : सीबीआई ने अपने सितंबर 1996 के फैसले पर पुन: अध्ययन के लिए उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक उपचारात्मक याचिका दायर की, जिसने भोपाल गैस त्रासदी के विभिन्न अभियुक्तों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के कठोर दंडनीय प्रावधान के बजाय लापरवाही के कारण मौत के आरोपों में मुकदमा चलाने के पक्ष में फैसला सुनाया था।

3 दिसंबर, 2010: केंद्र ने पीड़ितों के लिए मुआवजा 750 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7,844 करोड़ रुपये करने के लिए उपचारात्मक याचिका दायर की।

28 फरवरी, 2011 : उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आरोपियों के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या के कठोर दंडनीय प्रावधानों को बहाल करने की केंद्र सरकार की याचिका पर 13 अप्रैल से दिन-प्रतिदिन आधार पर सुनवाई का फैसला किया।

22 मार्च, 2011: सीबीआई ने एंडरसन को अमेरिका से भारत में मुकदमे के लिए प्रत्यर्पित करने के वास्ते अनुरोध पत्र प्राप्त करने के लिए दिल्ली की एक अदालत का रुख किया।

23 मार्च, 2011: दिल्ली की अदालत ने एंडरसन को अमेरिका से प्रत्यर्पित करने की सीबीआई की याचिका को विचारार्थ मंजूर किया।

7 अप्रैल, 2011: मध्य प्रदेश सरकार ने सीबीआई द्वारा दायर याचिका में हस्तक्षेप करने की अनुमति के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

13 अप्रैल, 2011 : न्यायालय ने उपचारात्मक याचिका दायर करने में देरी पर सवाल खड़े किये।

11 मई, 2011 : न्यायालय ने सीबीआई की उपचारात्मक याचिका खारिज की लेकिन आरोपियों के खिलाफ सख्त आरोपों के बारे में विचार करने का निर्णय सत्र अदालत पर छोड़ा।

12 जनवरी, 2023 : न्यायालय ने पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने की मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा।

14 मार्च, 2023 : न्यायालय ने पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने के अनुरोध वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका खारिज की।

भाषा वैभव नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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