नयी दिल्ली, 13 जुलाई (भाषा) देश को हिला देने वाले नागरवाला कांड पर एक नयी किताब सिलसिलेवार तरीके से रोशनी डालती है और बताती है कि किस तरह पीएमओ के नाम पर धोखाधड़ी की गई थी।
किताब ‘‘द स्कैम दैट शॉक ए नेशन-नागरवाला स्कैंडल’’ ने स्वतंत्र भारत के पहले प्रमुख राजनीतिक घोटाले का विवरण दिलचस्प तरीके से एक साथ रखा है। जल्द आने वाली इस किताब को ‘हार्पर कॉलिन्स इंडिया’ ने प्रकाशित किया है।
किताब के अनुसार, 24 मई 1971 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सचिव पी.एन. हक्सर के एक कथित टेलीफोन कॉल आने के बाद, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की संसद मार्ग शाखा के मुख्य कैशियर ने प्रधानमंत्री के ‘कूरियर’ को 60 लाख रुपये सौंप दिए। जब मुख्य कैशियर ने रसीद के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से संपर्क किया, तो उसे बताया गया कि न तो हक्सर और न ही इंदिरा गांधी ने ऐसा कोई निर्देश दिया था और न ही किसी को धन के लिए भेजा था। इस तरह वे ठगी के शिकार हो गए।
वर्ष 1971 भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण काल था जब बांग्लादेश का गठन हुआ और 5वें आम चुनावों में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के रूप में वापस आईं। लेकिन यह नागरवाला कांड था जिसने 1971 की गर्मियों में देश को सामूहिक अविश्वास के गर्त में धकेल दिया था।
व्यापक शोध, पुलिस रिकॉर्ड, प्रेस रिपोर्ट, न्यायमूर्ति जगनमोहन रेड्डी आयोग के समक्ष दिए गए बयान और उसकी रिपोर्ट के आधार पर लिखी गई यह किताब मामले, इसकी जांच और इसके बाद के दौर पर पहला प्रामाणिक काम है।
लेखक और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई और प्रकाश पात्रा ने कहा, ‘‘इस दिलचस्प कहानी को एक साथ जोड़ना एक आकर्षक और सीखने वाला अनुभव रहा है जिसमें सियासत और साजिश का मेल था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक रहस्यपूर्ण कहानी है, जिसमें कई मोड़ हैं, तथा कई तरह की भ्रांतियां हैं, लेकिन इसका कोई अंतिम और संतोषजनक निष्कर्ष नहीं है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि पूरे कांड को बिना कोई धारणा बनाए प्रस्तुत किया जाए।”
नागरवाला मामले में, कुछ ही घंटों के भीतर, दिल्ली पुलिस ने ज्यादातर नकदी बरामद करने और ठगी के लिए जिम्मेदार पूर्व सैन्य कैप्टन रुस्तम सोहराब नागरवाला को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की।
भाषा पवनेश आशीष
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