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गुरूवार, 22 मई, 2025
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जब वालिद ने रिश्ते वालों के सामने नौशाद को बताया था दर्जी ….

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नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) यह 1940 के दशक की बात है जब फिल्मों में संगीत देने को बहुत ही घटिया दर्जे का काम समझा जाता था । यही कारण था कि जब नौशाद के लिए रिश्ता आया तो उनके पिता ने बताया कि लड़का ‘दर्जी’ है।

और मजे की बात ये है कि नौशाद के निकाह में उन्हीं की 1944 की फिल्म ‘रतन’ का संगीत बजाया गया था।

सिनेमा जगत के कुछ ऐसे ही रोचक और अजीबोगरीब किस्सों से भरी है स्वयं गांगुली द्वारा लिखी गई किताब ‘चैम्बर्स बुक आफ सिनेमा फैक्ट्स’ जिसे हैचेट इंडिया ने प्रकाशित किया है।

किताब में सिनेमाई दुनिया के महानायकों, निदेशकों, गायकों, लेखकों, संगीत के महारथियों और परदे के पीछे की दुनिया के कुछ ऐसे ही दिलचस्पे किस्सों को बहुत ही अद्भुत अंदाज में पेश किया गया है। किताब में हालीवुड, बालीवुड, क्षेत्रीय भारतीय सिनेमा के साथ ही विश्व सिनेमा को भी स्थान दिया गया है।

किताब के अनुसार, 1932 में आयी भारतीय फिल्म ‘इंद्रसभा’ में सर्वाधिक 71 गाने थे और इसका संगीत दिया था नागरदास नायक ने।

इसी प्रकार यह जानना भी काफी रोचक है कि 2004 में इसी नाम की बॉलीवुड फ़िल्म का गाना ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ सबसे लंबा हिंदी फ़िल्मी गीत है। इस गाने की अवधि 20 मिनट है और इसे फ़िल्म में तीन किस्तों में दिखाया गया है।

राज कपूर की 1964 में आयी ‘संगम’ और 1970 की ‘मेरा नाम जोकर’ एकमात्र ऐसी दो फिल्में हैं जिनमें दो बार मध्यांतर (इंटरवल) होता है क्योंकि दोनों फिल्में करीब चार चार घंटे की थीं।

एक और रोचक घटना है ‘जब मोहम्मद से मिले मुहम्मद’ । इसमें जिक्र किया गया है कि महान गायक रफी मोहम्मद शिकागो के म्यूजिकल टूर पर थे और वहां उन्होंने कैसे आयोजकों से महान मुक्केबाज मुहम्मद अली से उनकी मुलाकात का इंतजाम कराने की अपील की थी।

किताब कहती है, ‘‘ रफी महान मुक्केबाज के बहुत बड़े प्रशंसक थे जो कि लोगों से आमतौर पर नहीं मिलते थे । लेकिन जब उनको पता चला कि भारत में मोहम्मद रफी का क्या जलवा है तो वह उनसे मिलने खुद मोहम्मद रफी के होटल में जाने को राजी हो गए थे।’’

गांगुली किताब में लिखते हैं कि फ्रैंच न्यू वेव, इटालियन नियोरियलिज्म, जर्मन एक्स्प्रेसनिज्म और डैनिश डोगमे 95 जैसे फिल्मी आंदोलनों के चलते यूरोपीय सिनेमा फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कलात्मक और प्रयोगात्मक अभिव्यक्ति के केंद्र में रहा है।

वह लिखते हैं , ‘‘ प्रथम विश्व युद्ध से पहले इतालवी सिनेमा मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम था। लेकिन युद्ध के बाद यूरोप इस कदर तबाह हो गया था कि उसे फिर से खड़े होने में समय लगा । लेकिन हॉलीवुड ने यहां तुरंत बाजी मार ली और वह सिनेमा का नया केंद्र बन गया ।’’

भाषा नरेश

नरेश मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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