नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी के हिंसा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में अतिक्रमण विरोधी अभियान के संबंध में बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान सवाल किया, ‘‘क्या आपको स्टॉल, कुर्सियों, मेजों और बक्सों को हटाने के लिए बुलडोजर की आवश्यकता है।’
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह सवाल किया। उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) की ओर से पेश हुए कानून अधिकारी मेहता ने कहा कि कानून के तहत सड़कों और फुटपाथों पर बिना अनुमति के “स्टॉल, बेंच, बक्से, सीढ़ी” आदि को हटाने की अनुमति है।
मेहता ने दलील दी कि फुटपाथों और सड़कों से स्टॉलों, कुर्सियों आदि को हटाने के लिए नोटिस दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है।
इस पीठ ने सवाल किया, ‘‘तो, कल (बुधवार) को किया गया विध्वंस कुर्सियों, बेंच व बक्सों तक तक सीमित था।’
मेहता ने जवाब दिया, “ एक आम सड़क पर, फुटपाथ पर जो कुछ भी था, उसे हटा दिया गया। यही मुझे निर्देश है।’
इस मौके पर न्यायमूर्ति गवई ने पूछा, “स्टॉल, बेंच, बॉक्स, सीढ़ी और कुर्सियों के लिए, क्या आपको बुलडोजर की जरूरत है?
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘जब आपको बुलडोजर की जरूरत होती है, तो आपको इमारतों के लिए उनकी जरूरत होती है’। उन्होंने कहा कि मकानों के लिए नोटिस जारी किए गए थे।
जहांगीरपुरी में कथित तौर पर बिना किसी पूर्व सूचना के गणेश गुप्ता की जूस की दुकान को गिरा दिया गया था। गणेश गुप्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने मुआवजे का अनुरोध किया और कहा कि उन्हें कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था।
सर्वोच्च अदालत ने हिंसा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में मकानों को गिराने के मुद्दे पर अगले आदेश तक यथास्थिति कामय रखने को कहा। न्यायालय ने कहा कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महापौर को उसके आदेश से अवगत कराए जाने के बाद भी ‘ध्वस्तीकरण अभियान’ जारी रखने के मामले को वह गंभीरता से लेगा।
भाषा अविनाश उमा
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