नयी दिल्ली, 27 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद द्वारा भाषण देते समय प्रधानमंत्री की आलोचना में ‘जुमला’ शब्द के इस्तेमाल पर अप्रसन्नता जताई और कहा कि आलोचना के लिए कोई ‘लक्ष्मण रेखा’ होनी चाहिए।
खालिद का यह भाषण उनके खिलाफ फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश से जुड़े मामले में आरोप का आधार बना था।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ विधिविरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम (यूएपीए) के तहत एक मामले में खालिद की जमानत की अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने खालिद के वकील से महाराष्ट्र के अमरावती में दिये गये भाषण में खालिद के कुछ बयानों पर स्पष्टीकरण देने को कहा और पूछा कि क्या प्रधानमंत्री के लिए ‘जुमला’ शब्द का उपयोग करना उचित है।
अदालत कक्ष में दलीलों के दौरान भाषण का वीडियो क्लिप चलाया गया जिसके बाद न्यायमूर्ति भटनागर ने पूछा, ‘‘ कोई ‘चंगा’ (ठीक) शब्द इस्तेमाल किया गया था। क्यों? ‘सब चंगे सी’ (सब ठीक है) और उसके बाद उसने क्या कहा?’’
खालिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पाइस ने कहा कि बयान ‘व्यंग्यात्मक स्वभाव’ का था और प्रधानमंत्री ने पहले एक भाषण में इस शब्द का इस्तेमाल किया था।
उन्होंने कहा, ‘‘उसके बाद वह कहते हैं कि यह गलत है, यह एक और जुमला है और ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं वह सही है।’’
न्यायमूर्ति भटनागर ने कहा, ‘‘यह ‘जुमला’ भारत के प्रधानमंत्री के लिए कहा गया। क्या यह उचित है? आलोचना के लिए भी एक रेखा खींची जानी चाहिए। एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए।’’
पाइस ने कहा, ‘‘सही है। (लेकिन) सरकार के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति को यूएपीए के तहत जेल में 583 दिन रखने का कोई उल्लेख नहीं मिलता। हम इतने असहिष्णु नहीं हो सकते।’’
उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति का बयान सभी को मंजूर नहीं हो सकता और उस पर नाराजगी सामने आ सकती है लेकिन यह देखना चाहिए कि क्या यह व्यक्ति द्वारा कथित रूप से किये गये किसी अपराध के समान है।
खालिद के वकील ने कहा, ‘‘क्या यह अपराध है? किसी भी तरह से यह अपराध नहीं लगता।’’
खालिद और अन्य लोगों पर फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों का ‘मास्टर माइंड’ होने के मामले में यूएपीए के तहत मामले दर्ज किये गये थे। दंगों में 53 लोग मारे गये थे और 700 से ज्यादा लोग घायल हो गये।
भाषा वैभव माधव
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