यहाँ स्पष्ट नियम हैं जो सैन्य अधिकारियों के आचरण को नियंत्रित करते हैं और वे ड्यूटी के समय के अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में नागरिक क्षेत्रों में जाने के लिए प्रतिबंधित हैं।
नई दिल्ली: मेजर लीतुल गोगोई, जो पिछले साल कश्मीर में ह्यूमन शील्ड के बनाने के कारण सुर्ख़ियों में थे, श्रीनगर होटल में एक वाद-विवाद के बाद बुधवार को थोड़ी देर के लिए हिरासत में लिए गए।
समस्या तब खड़ी हुई जब होटल प्रबंधक ने इस अधिकारी द्वारा लिए गए कमरे में एक युवा स्थानीय महिला को जाने की अनुमति देने से मना कर दिया। लड़की एक व्यक्ति के साथ थी जिसका नाम समीर माल्ला था, जो बडगाम में तैनात गोगोई का कथित रूप से विश्वास पात्र व्यक्ति है।
53 राष्ट्रीय राइफल्स से सेना के मेजर ने अप्रैल 2017 में सुर्खियाँ बटोरी थीं जब उन्होंने अपने काफ़िले पर हमला कर रहे पत्थरबाजों को रोकने के लिए फारूक अहमद दार नाम के एक नागरिक को अपनी जीप के आगे बाँध लिया था।
नवीनतम मामले ने एक बहस को जन्म दे दिया है कि क्या अधिकारी के आचरण पर कार्यवाही की जानी चाहिए और क्या उन्होंने सेना के प्रोटोकॉल को तोड़ा है?
सहमति, स्रोत और सेना प्रोटोकॉल
सवाल इस बात पर उठ खड़ा हुआ है कि गोगोई ने उनसे मिलने की इच्छा रखने वाली महिला से मिलने का प्रयास करने पर क्या गलत किया?
हालाँकि, एक उच्च न्यायालय के वकील, जो सैन्य कानून विशेषज्ञ हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि: “भले ही लड़की सहमत वयस्क हो अथवा न हो, उन पर कार्यवाही की जा सकती है। सजा का प्रकार वरिष्ठ अधिकारियों पर निर्भर करता है। उन्हें फटकार लगा के छोड़ा जा सकता है और शायद कठोर सजा न हो।”
गोगोई ने कथित तौर पर दावा किया कि वह एक सूत्र से मिल रहे थे लेकिन एक सैन्य विशेषज्ञ ने कहा कि यह नियम के अंतर्गत नहीं है। विशेषज्ञ ने कहा कि “सामान्य अधिकारी इस ढंग से सूत्रों से मुलाकात नहीं करते हैं। यह विशेष खुफिया अधिकारियों का काम है। यहाँ तक कि यदि वह किसी स्रोत से मिल भी रहे थे तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि उनके आला अधिकारी उनके इस कार्य से अवगत थे या नहीं।”
संभव कार्यवाही – फटकार से लेकर कोर्ट मार्शल तक
सेना अधिनियम 1950 की धारा 41 के अनुसार यदि गोगोई के वरिष्ठ अधिकारी उनकी मीटिंग से अनजान थे तो उन्हें ‘वरिष्ठ अधिकारी की अवज्ञा’ के लिए बुलाया जा सकता है। कोर्ट मार्शल द्वारा दोषसिद्धि होने पर वह 14 वर्ष तक की सजा के पात्र हैं।
इस धारा के तहत यहाँ तक कि उन अधिकारियों को भी पांच वर्ष या इससे कम की कारावास की सजा हो सकती है जो सक्रिय ड्यूटी पर नहीं हैं, यह सजा वरिष्ठ प्राधिकारियों पर निर्भर करती है।
एक सैन्य विशेषज्ञ ने कहा, “यह निर्धारित किया जाना बाकी है कि गोगोई स्वीकृत अवकाश पर थे या उन्होंने अनधिकृत रूप से अवकाश लिया था। यहाँ तक कि यदि कोई अधिकारी अवकाश पर भी होता है तो भी उसे अपने सीनियर अधिकारी को उस पते की जानकारी देने की आवश्यकता होती है जहाँ वह जाता है।”
धारा 45 के तहत, एक अधिकारी, अनुचित आचरण में लिप्त होने पर “बर्खास्त किये जाने या ऐसी ही किसी कम सजा का पात्र है”। एक संवेदनशील क्षेत्र में एक नागरिक के साथ कथित रूप से गोगोई का मिलना इस धारा के अंतर्गत आता है।
सैन्य विशेषज्ञ ने दिप्रिंट को बताया, “अगर गोगोई शादीशुदा हैं, तो मामला और भी जटिल हो जाता है क्योंकि इसे अयोग्य आचरण माना जा सकता है।”
फिर आती है धारा 63।
यह बताता है: “इस धारा के अधीन कोई भी व्यक्ति जो उपयुक्त आदेश या सैन्य अनुशासन के लिए प्रतिकूल रूप से किसी कार्य या चूक का दोषी है, हालाँकि यह इस अधिनियम में निर्दिष्ट नहीं है, वह कोर्ट मार्शल द्वारा दोषसिद्धि होने पर एक अवधि के लिए कारावास की सजा भुगतने का पात्र होगा जिसे 7 वर्ष या इससे कम सजा के लिए बढ़ाया जा सकता है जैसा कि इस धारा में उल्लिखित है।”
सैन्य विशेषज्ञ ने कहा कि इस धारा के तहत अधिकारी ड्यूटी के समय के अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में नागरिक क्षेत्रों में जाने के लिए प्रतिबंधित हैं।
विशेषज्ञ ने कहा कि “महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जब वह बडगाम में तैनात हैं, तो वह डल झील में क्या कर रहे थे? कश्मीर जैसे क्षेत्रों में अधिकारियों को विशेष आदेश के बगैर नागरिक इलाकों में जाने की इज़ाज़त नहीं होती है।”
सैन्य कानून विशेषज्ञ ने कहा कि संवेदनशील क्षेत्र में एक नागरिक से संपर्क उपर्युक्त सभी धाराओं के तहत दोषारोपित कर सकता है। हालाँकि उन्होंने आगाह किया कि: “यह सब विचार योग्य है। जांच पर निर्भर करता है कि, यह स्थिति कोर्ट मार्शल या प्रशासनिक कार्यवाही का कारण बन सकती है। लेकिन यह तय करना वरिष्ठ प्राधिकारियों पर निर्भर करता है।
Read in English :Why an Indian Army Major can’t just meet a woman at a hotel anywhere