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Tuesday, 12 August, 2025
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असम ‘भोगाली बिहू’ के आयोजन के लिए तैयार

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(फोटो के साथ)

मोरीगांव (असम), 14 जनवरी (भाषा) फसल की कटाई खत्म हो चुकी है, अनाज के भंडार भर चुके हैं और असम ‘भोगाली’ या ‘माघ बिहू’ मनाने के लिए पूरी तरह तैयार है।

राज्य के बाकी हिस्सों के साथ-साथ मध्य असम के मोरीगांव जिले में पुरुष, बच्चे और महिलाएं सामुदायिक क्षेत्रों में शनिवार शाम से शुरू होने वाले तीन दिवसीय उत्सव की तैयारी में व्यस्त हैं।

इसकी शुरुआत ‘उरुका’ नामक दावत से होती है, क्योंकि समुदाय के लोग फसल कटने का जश्न मनाने के लिए एक साथ खाना बनाते और खाते हैं।

उत्सव का एक आकर्षण मानव-हाथी संघर्ष, ऐतिहासिक स्मारकों और सामाजिक मुद्दों सहित विभिन्न विषयों को चित्रित करने वाले एवं कड़ी मेहनत से बनाए गए ‘भेलाघर’ (घास और बांस की संरचनाएं) होते हैं।

इन ‘भेलाघरों’ में और इसके आस-पास सामुदायिक दावतें आयोजित की जाती हैं और अगले दिन ‘भोगाली बिहू’ के दिन अग्नि देवता को प्रसन्न करने के लिए एक अनुष्ठान के रूप में घास और बांस से बने ‘मेजिस’ (बेलनाकार संरचनाओं) से उनमें आग लगा दी जाती है। जिले के 506 गांवों में से अधिकांश गांवों की महिलाएं भेलाघरों के निर्माण के लिए उत्साह के साथ आगे आई हैं।

‘डुइमारी कोपिली स्वयं-सहायता समूह’ की बीना कोंवर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हर साल युवा बिहू के अवसर पर ये ढांचे बनाने के लिए इकट्ठा होते हैं, लेकिन इस साल महिलाओं ने हमारे पड़ोस में एक ‘भेलाघर’ बनाने का फैसला किया, जहां हम सामुदायिक दावत का आयोजन कर सकें।’’

इन गांवों में कई एसएचजी से जुड़ी महिलाएं त्योहार के दौरान परोसी जाने वाली मिठाई तैयार करने में व्यस्त हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के ‘पीठा’ (गुड़ से बने चावल के केक) शामिल हैं।

सावित्री डेका ने कहा, ‘‘हम ‘तिल पीठा’, ‘नारिकोल पीठा’, ‘गीला पीठा’, ‘टेकेली पीठा’ और नमकीन ‘पीठा’ सहित कई तरह के पीठे बनाते हैं।’’

भूराबंधा गांव निवासी मोनिका बोरदोलोई ने कहा, ‘पीठा’ और ‘लरू’ (लड्डू) हमारे मेहमानों को परोसे जाते हैं और ‘‘हम इन्हें ‘भोगली मेलों’ में भी ले जाते हैं, जो त्योहार से पहले आसपास के शहरों और यहां तक कि गुवाहाटी में भी आयोजित किए जाते हैं।’’

एक जिला अधिकारी ने बताया कि अधिकांश गांवों में महिलाएं कई स्वयं सहायता समूहों का हिस्सा हैं, और वे मोरीगांव की ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। जिले में त्योहार का एक अन्य आकर्षण अहतगुरी और बैद्यबोरी में भैंसों की लड़ाई है। हालांकि, इस तरह के आयोजनों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद ग्रामीण इस अवसर पर सांकेतिक प्रतीकात्मक लड़ाई का आयोजन करते हैं।

भाषा सुरभि सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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