scorecardresearch
Monday, 30 September, 2024
होमदेशअसम के डॉक्टर ने 1962 के युद्ध के बाद घायल भारतीय युद्धबंदियों को किया याद

असम के डॉक्टर ने 1962 के युद्ध के बाद घायल भारतीय युद्धबंदियों को किया याद

Text Size:

(सुष्मिता सिंह)

गुवाहाटी, 1 मई (भाषा) 1962 के भारत-चीन युद्ध का जिक्र 93 वर्षीय डॉक्टर कामाख्या चक्रवर्ती की आंखों में एक चिंगारी पैदा करता है। यादों के जरिए वह युवावस्था में लौट जाते हैं।

हालांकि, उन्हें युद्ध के बाद हुई घटनाओं को याद करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। लेकिन 60 साल पहले दोनों पड़ोसी देशों के बीच हुए युद्ध में अपने खुद के अनुभवों को वह अभी तक नहीं भूले हैं ।

”पीटीआई-भाषा” के साथ बातचीत में, डॉ चक्रवर्ती ने अपने दो अन्य साथी डॉक्टरों के साथ अपनी भूमिका को याद किया, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। वह बताते हैं कि हमने सुनिश्चित किया था कि घायल भारतीय सैनिकों को अग्रिम मोर्चे से अस्पतालों तक सुरक्षित रूप से पहुंचाया जाए।

वे बताते हैं, ”मुझे 1962 में तेजपुर में उप-विभागीय चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में तैनात किया गया था। चीन के सैनिक पीछे हट गए थे और रेड क्रॉस घायल भारतीय सैनिकों को निकालने में मदद करने के लिए स्वयंसेवी डॉक्टरों की तलाश कर रहा था, जिन्हें वर्तमान अरुणाचल प्रदेश की ऊपरी इलाकों से युद्ध-बन्दी बनाकर ले जाया गया था।”

डॉ चक्रवर्ती तुरंत तैयार हो गए क्योंकि राष्ट्र के लिए अपना योगदान देने में वह हमेशा सबसे आगे रहे थे , चाहे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक छात्र के रूप में कक्षाओं का बहिष्कार करना हो या 1950 के असम के विनाशकारी भूकंप के बाद लखीमपुर में स्वयंसेवा करना।”

उन्होंने बताया, ”हम तीनों, डॉ आनंद शर्मा, डॉ बी सेन और मैं स्वेच्छा से रेड क्रॉस और सेना की टीम के साथ जाने और अपने घायल सैनिकों को तेजपुर के रक्षा अस्पताल में लाने के लिए तैयार हो गए । अगली सुबह (18 दिसंबर, 1962), हम दिरांग घाटी के लिए रवाना हुए।

उन्होंने याद किया, अभी-अभी समाप्त हुए युद्ध की तबाही की तस्वीरें चारों ओर थीं, नष्ट टैंक और अन्य सैन्य वाहन सड़कों के किनारे थे, उनका वाहन भी टेंगा घाटी में रेंग रहा था। मारे गए सैनिकों के शव, जिन्हें अभी तक हटाया नहीं गया था, कई स्थानों पर पड़े थे।

डॉ चक्रवर्ती ने याद किया, ”सैनिकों के शवों को देखकर, मुझे लगा कि मैं उनकी जगह हो सकता था। इसने घायल जवानों को वापस लाने के मेरे संकल्प को और मजबूत कर दिया। हमने बोमडिला में रात का भोजन किया और रात वहीं बिताई। अगली सुबह हम दिरांग घाटी के लिए रवाना हुए। वहां पहुंचने पर, हम एक लंबी और थकाऊ यात्रा के बाद आराम किए बिना घायल सैनिकों को बचाने के अपने काम पर लग गए।”

चीनी डॉक्टरों ने घायल और मारे गए भारतीय जवानों को तेज़पुर टीम को सौंप दिया और शाम होते-होते लगभग 460 घायल सैनिकों और कई शवों के साथ हमने अपनी वापसी की यात्रा शुरू कर दी।

उन्होंने कहा, ”यह एक लंबा काफिला था, और हालांकि बोमडिला में रात के खाने की व्यवस्था की गई थी, आखिरी वाहन के आने तक भोजन समाप्त हो गया था। सेना ने निचले इलाकों में अपने कर्मियों को सूचित किया कि हम में से कुछ बिना भोजन के चले गए, और बोमडिला छोड़ने के कुछ समय बाद, हमने जवानों को हमारे लिए भोजन के साथ सड़क के किनारे इंतजार करते देखा। यह एक मार्मिक नज़ारा था।”

डॉक्टर चक्रवर्ती ने कहा, हम अगले दिन तेज़पुर पहुंचे और सैनिकों को रक्षा अस्पताल को सौंप दिया। हम सभी घायल जवानों को जिंदा वापस लाने में कामयाब रहे। हमें संतोष था कि हम उन लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी।”

2022, उच्च हिमालय में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध की 60वीं वर्षगांठ है।

भाषा फाल्गुनी नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments