कोविड लॉकडाउन के झटके ने पिछले साल लगभग इसी समय अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया था. जीडीपी के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि आर्थिक विकास वापस रफ़्तार पकड़ रहा है. इस लेख में, हमने भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों के डेटा पर गौर किया है जिनके प्रदर्शन में लगातार सुधार होता दिख रहा है.
लगातार दो तिमाहियों के संकुचन के बाद, अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था विकास के रास्ते पर वापस लौट आई है. दिसंबर 2020 में समाप्त तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 0.4 फीसदी रही है. जहां कृषि, विनिर्माण और कंस्ट्रक्शन क्षेत्रों ने वृद्धि दर्ज की, वहीं व्यापार, होटल, परिवहन और संचार में जुलाई-अगस्त तिमाही की तुलना में गिरावट मामूली रही.
कॉरपोरेट इंडिया का प्रदर्शन तेज़ रिकवरी को परिलक्षित करता है. उल्लेखनीय बात ये है कि रिकवरी का नवीनतम रुझान बिक्री में वृद्धि के कारण है, जबकि पिछली तिमाही के दौरान कंपनियां धंधे में बने रहने के लिए अपने वेतन खर्च में कटौती कर रही थीं.
हमने भारत में सूचीबद्ध कंपनियों के तिमाही वित्तीय प्रदर्शन के आंकड़ों पर नज़र डाला है. वित्तीय कंपनियों की अपने ऑडिट डेटा को लेकर बहुत अलग धारणाएं होती हैं. जबकि तेल कंपनियां को कभी-कभी सरकार के फैसलों के कारण राजस्व में भारी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है. ये सब विकास की अंतर्निहित परिस्थितियों को परिलक्षित नहीं करती हैं. इसलिए अर्थव्यवस्था में वृद्धि का आकलन करने के लिए हमने वित्त और तेल सेक्टर की कंपनियों के अलावा अन्य सूचीबद्ध कंपनियों पर ध्यान केंद्रित किया है. इनमें सेवा क्षेत्र भी शामिल है. विनिर्माण गतिविधियों को मापने के लिए, हमने एक बार फिर पेट्रोलियम सेक्टर को शामिल नहीं किया है.
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रिकवरी की ओर बढ़ते कदम
अक्टूबर-दिसंबर की अवधि में सूचीबद्ध कंपनियों के प्रदर्शन से पता चलता है कि भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र धीरे-धीरे व्यापक आधार वाली आर्थिक रिकवरी की ओर बढ़ रहा है. विनिर्माण क्षेत्र में कंपनियों की शुद्ध बिक्री में 10 प्रतिशत से अधिक की बढ़त हुई है. ये महत्वपूर्ण है क्योंकि इस सेक्टर ने लगातार छह तिमाहियों तक धंधे में गिरावट का अनुभव किया था.
भारतीय कॉरपोरेट जगत ने पांच तिमाहियों के आर्थिक संकुचन के बाद शुद्ध बिक्री में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में बिक्री में उछाल विनिर्माण क्षेत्र के भीतर लगभग सभी उपक्षेत्रों में देखा गया है. जहां अप्रैल-जून की तिमाही में कपड़ा और कंस्ट्रक्शन से लेकर, धातु, मशीनरी और परिवहन उपकरण तक विनिर्माण के सभी उपक्षेत्रों को आर्थिक संकुचन का सामना करना पड़ा था, वहीं जुलाई-सितंबर तिमाही में कुछ उपक्षेत्रों में रिकवरी देखने को मिली थी.
अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में रिकवरी की प्रक्रिया में और तेजी आई है. उपभोक्ता वस्तुओं और विविध विनिर्माण श्रेणी की कंपनियों को छोड़कर, विनिर्माण के भीतर बाकी सभी उपक्षेत्रों में बिक्री में सकारात्मक बढ़ोत्तरी दिखी.
इसी तरह, जुलाई-सितंबर तिमाही में मुनाफे में तेज रिकवरी देखी गई थी. अप्रैल-जून तिमाही में लगभग 46 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज करने के बाद विनिर्माण क्षेत्र के मुनाफे में 11.75 प्रतिशत की प्रभावशाली बढ़त देखने को मिली. हालांकि, मुनाफे में यह तेज़ बढ़ोत्तरी बिक्री राजस्व बढ़ने के कारण नहीं थी. जहां मुनाफा 74 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, बिक्री राजस्व में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई.
बिक्री राजस्व में गिरावट के बावजूद मुनाफा कैसे बढ़ा? दरअसल ये उपलब्धि उत्पादन में वृद्धि के बजाय लागत में कटौती के माध्यम से हासिल की गई थी. मांग में गिरावट के बीच कंपनियों ने वेतन में कटौती और वेतन ढांचे में संशोधन के उपायों को लागू किया.
हालांकि, अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में आर्थिक विकास वापस पटरी पर आ गया. इस अवधि में मुनाफे में वृद्धि उत्पादन बढ़ने के कारण हुई, न कि वेतन-भत्तों में कटौती के कारण. पिछली दो तिमाहियों की गिरावट के बाद पगार में बढ़ोत्तरी का रुख रहा. विनिर्माण क्षेत्र की कई कंपनियों में वेतन 5 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ा. इस पूरे सेक्टर की बात करें, वेतन में लगभग 2.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.
कंपनियों का तिमाही वित्तीय प्रदर्शन अक्टूबर-दिसंबर की अवधि में जीडीपी में वृद्धि के उत्साहजनक रुझान की पुष्टि करता है.
अर्थव्यवस्था के उच्च बारंबारता वाले संकेतकों से जनवरी और फरवरी के महीने में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में और विस्तार के रुझान दिखे हैं. इसमें सर्वाधिक उल्लेखनीय है सेवा क्षेत्र में दिखा तेज़ रिकवरी का संकेत. इस क्षेत्र पर कोविड का बहुत प्रतिकूल असर पड़ा था. जहां विनिर्माण गतिविधियां स्थिर रही हैं, आईएचएस पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के अनुसार फरवरी में सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में पिछले एक वर्ष की सर्वाधिक तेज़ी देखी गई है. पीएमआई सूचकांक में दर्ज तेज़ी की नए कार्यों में वृद्धि से भी पुष्टि होती है. कारोबारी माहौल में सुधार और क्षमताओं के अधिक उपयोग के रुझानों के साथ ही जनवरी-मार्च तिमाही के दौरान रोजगार परिदृश्य में भी सुधार होने की उम्मीद है.
कोविड-19 के मामलों में लगातार गिरावट और टीकाकरण अभियान में तेज़ी के कारण आने वाले महीनों में आर्थिक विकास के पटरी पर आने की प्रक्रिया और तेज़ हो सकेगी.
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(इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडेय एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
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