कोविड-19 की दूसरी लहर खत्म होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर सुधार होता दिख रहा है. व्यापक अर्थव्यवस्था के संकेतकों से अंदाजा मिलता है कि पिछले कुछ महीने से इसमें गति आई है लेकिन रोजगार का मामला ठंडा ही पड़ा था. अब रोजगार में तेज वृद्धि और उपभोक्ताओं में उत्साह इस आर्थिक सुधार के चमकदार पहलू हैं.
कई सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था में रोजगार वृद्धि ने गति पकड़ी है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक, उपभोक्ताओं के बीच सितंबर में किए गए ‘कंज़्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे ’ बताता है कि सितंबर में 85 लाख रोजगार बढ़े. इसके कारण मार्च 2020 के कोविड कहर के बाद सितंबर 2021 में रोजगार का आंकड़ा अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच गया. रोजगार शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में बढ़ा है और यह कृषि में रोजगार की वजह से नहीं हुआ है. रोजगार के आंकड़ों की सबसे आशाजनक बात यह है कि सभी बड़े पेशों और वेतन वाले रोजगारों में सबसे ज्यादा बढ़त हुई है.
रोजगार के ताजा साप्ताहिक आंकड़ों से अंदाजा लगता है कि इसमें सितंबर में जो वृद्धि हुई है वह अक्टूबर में भी जारी रह सकती है. 3 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में हालांकि रोजगार दर में गिरावट आई लेकिन पिछले दो सप्ताह में लगातार वृद्धि दर्ज की गई- 10 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में यह 36.8 प्रतिशत थी, तो 17 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में यह 38.5 प्रतिशत हो गई. यह दर मार्च 2020 के बाद से पहली बार इस प्रभावशाली स्तर पर पहुंची है. उम्मीद है कि अक्टूबर में यह कोविड-पूर्व के आंकड़े को पीछे छोड़ देगी.
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के ‘पे-रोल’ आंकड़े के हिसाब से औपचारिक क्षेत्र में रोजगार वृद्धि की दर अगस्त में 48 फीसदी हो गई थी. अगस्त में ईपीएफओ के ग्राहकों की संख्या में 14.8 लाख की वृद्धि हुई. ‘पे-रोल’ आंकड़े बताते हैं कि पहला रोजगार चाहने वाले (18-21, 22-25 आयुवर्ग के) कई युवा संगठित क्षेत्र में रोजगार पा रहे हैं. अगस्त में जो नये ग्राहक जुड़े उनमें करीब 50 फीसदी ऐसे ही युवा थे.
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ज्यादा वेतन, उपभोक्ता का बढ़ता भरोसा
रोजगार देने वाले ज्यादा नौकरियां दे रहे हैं और बेहतर वेतन वृद्धि भी दे रहे हैं. टीकाकरण की उम्मीद से बेहतर रफ्तार आर्थिक सुधार को मजबूती दे रही है. तेज सुधार और इसके साथ मांग में वृद्धि फर्मों को अपना व्यवसाय बढ़ाने और कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करने में मदद कर सकती है.
महामारी की सबसे कड़ी मार सेवा क्षेत्र पर पड़ी थी. अब कोविड से जुड़ी पाबंदियों में ढील दिए जाने से इस क्षेत्र में उछाल आ रहा है. लॉकडाउन के बाद सितंबर में यह क्षेत्र सबसे तेजी से विस्तार करने के मामले में दूसरे नंबर पर रहा. इसके साथ ही इसमें नौ महीने से रोजगार में जो कटौती चल रही थी वह बंद हुई और सितंबर में बहालियों में तेजी देखी गई.
वेतन में वृद्धि के साथ उपभोक्ताओं को अपनी आमदनी को लेकर उम्मीद बढ़ी है. रिजर्व बैंक का ‘उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वे‘ बताता है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति और इसको लेकर भविष्य की अपेक्षाओं के बारे में धारणा पिछले दौरों के मुकाबले सितंबर में अधिक सकारात्मक हुई है.
सीएमआईई के ‘उपभोक्ता भावना संकेतक’ मौजूदा आर्थिक स्थिति और इसको लेकर भविष्य की अपेक्षाओं का अंदाजा देते हैं. सितंबर में इनमें तेज सुधार देखा गया. साप्ताहिक आंकड़े बताते हैं कि उपभोक्ताओं की भावना में अक्टूबर में सुधार हुआ है. कुछ समय के लिए हालांकि रोजगार में वृद्धि दर्ज की जा रही थी मगर उपभोक्ताओं की भावना में गिरावट दिख रही थी. भावना में तेज सुधार बताता है कि वेतन में वृद्धि हुई है.
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घटती मुद्रास्फीति, बढ़ता निर्यात, टीकाकरण में उछाल
खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर में तेजी से गिरकर 4.35 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह लगातार तीसरा महीना था जब मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से नीचे रही. यह खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी के कारण हुआ, जो अगस्त में 3.11 प्रतिशत थी और अब 1 प्रतिशत से भी नीचे चली गई है. आगे भी मुद्रास्फीति 6 फीसदी से नीचे रहने की उम्मीद है.
खरीफ की बुवाई में तेजी और पर्याप्त भंडार अनाजों की कीमतों को काबू में रखेगा. बेमौसम की बरसात से सप्लाई में अड़चन न आई तो सब्जियों के दाम भी नरम रहेंगे.
इस साल मार्च के बाद से निर्यात में भी निरंतर वृद्धि हुई है. वैश्विक व्यापार में सुधार के कारण इंजीनियरिंग माल, कपड़ों, रासायनिक उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है. माल और सेवा के संयुक्त निर्यात में सितंबर में पिछले साल की इससे अवधि में हुए निर्यात के मुकाबले 22 फीसदी की वृद्धि हुई. निर्यात ने कोविड से पहले के इसके आंकड़े को पार कर लिया.
बृहस्पतिवार को भारत ने 100 करोड़ टीके लगाने का रिकॉर्ड बना लिया. देश की 75 फीसदी से ज्यादा वयस्क आबादी को एक बार, और 31 फीसदी से ज्यादा को दो बार टीके लगाए जा चुके हैं. सरकार को साल के अंत तक पूरी वयस्क आबादी का टीकाकरण कर देने की उम्मीद है.
टीकाकरण के विस्तार और कोविड के नये मामलों तथा उससे होने वाली मौतों में गिरावट ने घरेलू मांग और आर्थिक गतिविधियों में इजाफा किया है. अर्थव्यवस्था में उछाल तो देखी जा रही है लेकिन मांग में तेजी के कारण वैश्विक मुद्रास्फीति के दबाव भारत में आर्थिक वृद्धि के लिए जोखिम साबित हो सकता है और कीमतों में तेजी आ सकती है.
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल, खाद्य तेलों की महंगाई, धातुओं की कमी के कारण लागत में वृद्धि के दबाव आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए खतरा साबित हो सकता है. सप्लाई की अड़चनों को दूर करने के कदम तो उठाए गए हैं लेकिन वैश्विक मांग में तेजी के कारण मुद्रास्फीति के दबावों के प्रति नीति निर्धारकों को सजग रहने की जरूरत है.
(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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