भारत में कोविड-19 के टीकाकरण का तीसरा चरण 1 मई से शुरू हो रहा है. पहले दो चरणों में वैक्सीन जुटाने का काम केंद्र सरकार का रहा. लेकिन तीसरे चरण में इसकी मांग और आपूर्ति केंद्र के नियंत्रण में नहीं रहेगी. कोई भी वयस्क वैक्सीन लगवाने का फैसला कर सकता है, और सभी राज्यों तथा संस्थाओं को वैक्सीन खरीदने की इजाजत होगी. वे उनसे इसकी खरीद के लिए ऑर्डर दे सकते हैं जिन्हें भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, यूरोप, जापान के रेगुलेटरों ने मान्यता दी है, या जो डब्लूएचओ की इमरजेंसी लिस्ट में दर्ज हैं.
भारत फिलहाल कोविड की जिस बेहद मारक दूसरी लहर का सामना कर रहा है और जितनी बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं वे समाज, अर्थव्यवस्था और सरकार को भारी नुकसान पहुंचा रही है. इसलिए टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी लाना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. आज समय ऐसा है कि कंपनियां हों या सरकारें हों, सभी को अपने खर्चों की प्राथमिकता तय करनी चाहिए. यूरोपीय संघ या अमेरिका में जो कीमतें हैं उनके मुताबिक भी देखें तो 100 करोड़ से ज्यादा लोगों के टीकाकरण पर भारत के जीडीपी के 1 प्रतिशत से भी कम के बराबर खर्च होगा.
यहां मूर्खतापूर्ण कंजूसी करने की जरूरत नहीं है. यह केंद्र और राज्य स्तर पर कुल सरकारी खर्च का एक मामूली हिस्सा ही होगा. सरकार के लिए यह जीडीपी और टैक्सों में घाटे का मामूली हिस्सा ही होगा. निजी कंपनियों के लिए, अपने कर्मचारियों का टीकाकरण करवाने पर जो खर्च होगा वह कुल उत्पादन में घाटे की तुलना में बहुत छोटा ही होगा.
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अब तक का टीकाकरण कार्यक्रम
भारत में 60 से ज्यादा उम्र के लोगों की आबादी करीब 12 करोड़ है और 45 से 60 के बीच की उम्र के लोगों की आबादी करीब 30 करोड़ है. 26 अप्रैल 2021 तक वैक्सीन की 14 करोड़ खुराक दी चुकी थी, जिनमें से 12 करोड़ लोगों को एक खुराक और 2 करोड़ को दोनों खुराक दी जा चुकी है.
14 करोड़ में से 1 करोड़ खुराक 40 से कम उम्र वालों को दी गई है. 45 से ऊपर की योग्य आबादी में से 5 प्रतिशत से भी कम को दोनों खुराक दी गई है, जबकि 27 फीसदी को पहली खुराक मिली है.
तेजी लाने की जरूरत
केंद्र सरकार प्रतिदिन औसतन 23 लाख वैक्सीन उपलब्ध करा रही है. एक अनुमान बताता है कि 45 से ऊपर की उम्र की प्रति 1000 की आबादी में केवल 6 लोगों ने ही या तो वैक्सीन के प्रति हिचक या उसकी सप्लाइ में कमी की वजह से टीका लगवाया है. इस दर से, 45 से ऊपर की उम्र के सभी योग्य लोगों को टीका लगने में दो साल से ज्यादा लग जाएंगे.
सरकार की सीमाओं के मद्देनजर टीकाकरण कार्यक्रम को सभी तरफ से बढ़ावा देने की जरूरत है. वैसे भी, कोविड की दूसरी लहर ने दिखा दिया है कि 45 से ऊपर की उम्र वालों का टीकाकरण ही काफी नहीं है. वायरस के नये रूप इसके वुहान वाले रूप से कहीं ज्यादा मारक हैं. खबर है कि मृतकों में 50 से कम उम्र वालों का अनुपात अधिक है.
18 से 45 की उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू करने का अर्थ यह है कि टीका लगवाने के योग्य आबादी 42 करोड़ से बढ़कर 100 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है. जिन लोगों को टीका लग चुका उन्हें बाद कर दें तो 88 करोड़ लोगों को यथाशीघ्र टीका लगवाना जरूरी है. टीकाकरण की वर्तमान दर से भी चलें तो रोजाना उपलब्ध की जाने वाली खुराक में दोगुनी वृद्धि जरूरी होगी. मामले बढ़े, तो 45 से ऊपर की उम्र वालों के टीकाकरण की मांग बढ़ी और टीकों की आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही है.
वैक्सीन उपलब्ध कराने और टीके लगाने के काम में केवल केंद्र सरकार ही लगी रही तो मांग और आपूर्ति में संतुलन नहीं रह पाएगा. नयी व्यवस्था में दूसरों को भी वैक्सीन उपलब्ध कराने और टीके लगाने के काम में लगना होगा.
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कीमत को लेकर चिंता
कोविड-19 के टीकाकरण कार्यक्रम के नये स्वरूप को लेकर कई आपत्तियां की जा रही हैं. विपक्षी दलों की कुछ राज्य सरकारों की मांग है कि मोदी सरकार वैक्सीन हासिल करे और राज्यों को उपलब्ध कराए. केंद्र सरकार कह रही है कि वह राज्यों को 45 से ऊपर की उम्र वालों के लिए मुफ्त में टीके दे रही है, और राज्य 18-45 आयुवर्ग के लिए वैक्सीन खरीद सकते हैं.
आलोचकों का कहना है कि टीके बनाने वाली कंपनियों को अगर ऊंची कीमत पर बेचने की छूट दी गई तो वे असामान्य मुनाफा कमाएंगी. अभी पांच बड़ी कंपनियां हैं— आस्ट्राजेनेका, मॉडर्ना, फ़ाइज़र, जॉनसन ऐंड जॉनसन, और स्पूतनिक. बाज़ार पर किसी का एकाधिकार नहीं है. इसका अर्थ है कि बाज़ार में कीमत पर सौदा हो सकता है.
मान लें कि हरेक राज्य प्रति खुराक पर 1000 रुपये खर्च करता है (अंतरराष्ट्रीय कीमत लगभग यही है). यानी 60 करोड़ लोगों को दो खुराक देने पर 1.2 लाख करोड़ रु. खर्च होंगे. एसआइआइ ने 300 रु. प्रति खुराक कीमत रखी है. यानी राज्यों को 40 लाख करोड़ रु. के कुल खर्च में से 36,000 करोड़ रु. खर्च करने पड़ेंगे (‘बीई’ 2020-21 के मुताबिक).
अर्थशास्त्र का एक नियम यह है कि आपको जिस चीज की ज्यादा जरूरत है और आप उसके लिए ज्यादा खर्च करने को तैयार हैं, तो उसकी आपूर्ति बढ़ जाती है. आज भारत को दूसरे देशों के मुक़ाबले वैक्सीन की ज्यादा जरूरत है. अगर हम उनसे ज्यादा कीमत देने को तैयार होंगे तो अपने लोगों के लिए ज्यादा आपूर्ति हासिल कर पाएंगे. हम जो ऊंची कीमत देंगे वह दूसरी लागतों से कम ही पड़ेगी.
वायरस का नया रूप बेहद घातक है. कोई भी इससे शायद ही अछूता बचा है. जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली है उन्हें अधिक घातक लक्षणों का सामना करना पड़ा है और हमारी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था चरमरा रही है. इसे दुरुस्त करना आसान नहीं है क्योंकि डॉक्टर और नर्स तैयार करने में समय लगता है. यह न तो वैक्सीन से हिचकने का समय है, न अपनी जेब देखने का. अगर हम तीसरी बूस्टर खुराक की व्यवस्था कर सकते हैं तो जरूर करें.
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