नई दिल्ली: भारत में जून-जुलाई की अवधि में पुरुष और वृद्ध डॉक्टरों की तुलना में महिला और युवा डॉक्टरों ने टेलीमेडिसिन या ऑनलाइन परामर्श ज्यादा लिए हैं. एक अध्ययन में यह बात सामने आई है.
भारत स्थित स्वास्थ्य सेवा अनुसंधान संगठन स्ट्रेटेजिक मार्केटिंग सॉल्यूशंस एंड रिसर्च सेंटर (एसएमएसआरसी) और अमेरिका में पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के क्रानर्ट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट द्वारा किए गए साझे अध्ययन में पाया गया कि भारत में 50 प्रतिशत युवा डॉक्टरों ने टेलीमेडिसिन का उपयोग किया जबकि उनके केवल 44% वरिष्ठ समकक्षों ने ही इसका इस्तेमाल किया.
करीब 58% महिला डॉक्टरों ने ऑनलाइन परामर्श का चयन किया जबकि केवल 44% पुरुष डॉक्टरों ने ही इसका इस्तेमाल किया.
मेडिकल प्रैक्टिस पर कोविड महामारी का प्रभाव जानने के लिए ये अध्ययन किया गया जिसे रविवार को प्रकाशित किया गया है. इसके तहत भारत के 80 शहरों और कस्बों के 2116 विशेषज्ञ फिजिशियन्स को सर्वे में शामिल किया गया.
अध्ययन के नतीजे में पाया गया कि फिजिकल तौर पर क्लिनिक जाने की तुलना में टेलीमेडिसिन की तरफ महत्वपूर्ण बदलाव आया है.
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ट्रेंड क्या इशारा करते हैं
अध्ययन के मुताबिक बहुत ही कम वृद्ध डॉक्टरों ने टेलीमेडिसिन का रुख किया, ‘इसका कारण एक आम धारणा है जिसमें लोग बदलाव की तरफ नहीं जाते हैं और पहले से चले आ रहे तरीकों को ही अपनाते हैं’. इसके अनुसार ‘युवा फिजिशियन नए तरीकों को अपनाने में ज्यादा सहज हैं जो कि टेलीमेडिसिन का उपयोग करने में दिखा’.
क्रानर्ट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ व्रिताब्रता कर ने कहा, ‘महिला चिकित्सकों के द्वारा टेलिमेडिसिन के इस्तेमाल करने को रुढ़िवादी निर्णय प्रक्रिया से बाहर आने की स्थिति के तौर पर समझा जा सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘एक लंबे समय तक लागू रहे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और इस बीच किसी तरह के घरेलू मदद नहीं मिलने की स्थिति में महिलाओं ने टेलिमेडिसिन की तरफ ज्यादा तेजी से रुख किया.’
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दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा टेलिमेडिसिन को अपनाया गया
देशभर में सबसे ज्यादा दक्षिण भारत के राज्यों में टेलिमेडिसिन को अपनाया गया, करीब 62%. वहीं उत्तर भारत में ये दर 50% और पश्चिम भारत में 52% रही. पूर्वी भारत में ये दर (30%) सबसे कम रही.
अध्ययन के मुताबिक करीब 52 प्रतिशत मेट्रो-बेस्ड डॉक्टरों ने टेलिमेडिसिन की तरफ रुख किया. इसकी तुलना में नॉन-मेट्रोपोलिटन क्षेत्रों के डॉक्टरों का प्रतिशत 44 रहा.
टेलिमेडिसिन के सिर्फ 11 प्रतिशत सेशन ही प्रैक्टिस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर (पीएमएस) के जरिए हुआ. बाकि ज्यादातर 82 प्रतिशत फोन कॉल्स के जरिए हुआ.
एसएमएसआरसी के जनरल मैनेजर अनीश मित्रा ने कहा, ‘पीएमएस जैसे प्लेटफॉर्मस का कम इस्तेमाल करना इस बात का संकेत देता है कि भारत में मरीज और डॉक्टर के बीच के ज्यादा अनुपात को देखते हुए आसान और समय बचाने वाले एप्लिकेशन को विकसित करने की जरूरत है.’
उन्होंने कहा, ‘नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन (एनडीएसएम) जैसे शुरुआत के जरिए भी टेलिमेडिसिन बेस्ड एप्लिकेशन को बढ़ावा मिलेगा.’
नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन (एनडीएसएम) की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को की थी जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों को एक राष्ट्रीय हेल्थ आईडी देने की बात है जिससे डिजिटल हेल्थकेयर को आसान और लोगों के पहुंच के दायरे में लाया जा सके.
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