नई दिल्ली: ओमीक्रॉन संस्करण की खोज पर कई देशों ने यात्रा प्रतिबंध और अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को लागू करने के लिए तेजी से कदम उठाए हैं जैसे मास्क अनिवार्य रूप से पहनना. इस संबंध में आंकड़ों की कमी को देखते हुए क्या यह कार्रवाई का सबसे अच्छा तरीका है?
इन उपायों की भारी कीमत चुकानी पड़ती है और कुछ ने तर्क दिया है कि ये उपाय एक अति-प्रतिक्रिया हैं. यात्रा प्रतिबंध के आलोचकों का दावा है कि नए उपायों से वैरिएंट के प्रसार को महत्वपूर्ण रूप से नहीं रोका जा सकेगा. दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अधिकारियों ने देशों से जोखिम विश्लेषण और विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण की वकालत करने के बजाय जल्दबाजी में यात्रा प्रतिबंध नहीं लगाने का आग्रह किया है.
दूसरों का सुझाव है कि अब तक अपेक्षाकृत हल्की बीमारी की रिपोर्ट को देखते हुए वायरस के इस नए संस्करण के नुकसान को अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. हालांकि, यूके में वैज्ञानिक सलाहकारों ने चेतावनी दी है कि ओमीक्रॉन के प्रति ‘बहुत सख्त प्रतिक्रिया’ की आवश्यकता हो सकती है.
महामारी के दौरान, नीति निर्माताओं को इस मुद्दे का सामना करना पड़ा है कि अनिश्चितता का प्रबंधन कैसे किया जाए. ओमीक्रॉन संस्करण का उभरना इसका एक और उदाहरण है.
इस क्षेत्र में नीति के लिए पूरी तरह से विज्ञान आधारित दृष्टिकोण अपनाने के डब्ल्यूएचओ के सुझाव के साथ एक समस्या यह है कि वर्तमान में हमारी वैज्ञानिक समझ सीमित है. संक्रमण और अस्पताल में भर्ती होने के साथ-साथ वर्तमान टीकों, परीक्षणों और इलाज की प्रभावशीलता को लेकर अभी भी निश्चित रूप से ज्यादा कुछ कहा नहीं जा सकता है.
हालांकि, इन मामलों की जांच के लिए परीक्षण चल रहे हैं. सबूत जुटाने में समय लगेगा. फिलहाल, हमारे सामने आने वाले जोखिमों का सटीक आकलन करना मुश्किल है.
यहां भी नीति निर्माताओं को दुविधा का सामना करना पड़ता है. अगर वो आगे के डेटा की इंतेजार करते हैं ताकि वे पूरी तरह से साक्ष्य-आधारित निर्णय ले सकें तो लागू की जाने वाली किसी भी नीति का पूरा लाभ मिलने में बहुत देर हो सकती है.
इसके विपरीत अगर वो अभी प्रतिबंध लगाने का दूसरा रास्ता चुनते हैं तो नुकसान को कम करने की अधिक संभावना है. ऐसी नीति को अपनाने के लिए ठोस सुबूत की कमी का आरोप लगाया जा सकता है और बाद में यह भी हो सकता है कि वायरस का यह संस्करण उतना नुकसानदेह न हो जितना सोचकर प्रतिबंध लगाए गए थे और यह नीति एक गलत फैसला साबित हो.
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वैज्ञानिक मुद्दा नहीं
हमें अनिश्चितता का प्रबंधन कैसे करना चाहिए यह कोई वैज्ञानिक मुद्दा नहीं है. यह एक नैतिक मुद्दा है कि हमें विभिन्न नीतियों को लागू करने से पहले उनके नफा नुकसान को कैसे संतुलित करना चाहिए. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिबंध को जल्दी लागू करने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सेहत जैसे पहलुओं पर बुरा असर पड़ता है.
इसी तरह यात्रा प्रतिबंधों के आर्थिक निहितार्थ हैं और इससे अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को नुकसान हो सकता है. अगर आंकड़ें बाद में दिखाते हैं कि दरअसल यात्रा प्रतिबंधों की जरूरत नहीं थी तो इनके लगाने से होने वाले नुकसान और अधिक कष्टदायक होते हैं फिर भी इन प्रतिबंधों को कम किया जा सकता है जब सबूत बताते हैं कि ऐसा करना सुरक्षित है.
इसके विपरीत, प्रतिबंध लगाने में देरी करने की कीमत और भी अधिक हो सकती है. अगर एक अधिक पारगम्य संस्करण को अनियंत्रित होने दिया जाता है तो इससे संक्रमणों में बढ़ोतरी होगी. बदले में, इससे अधिक लोगों को कोविड से गंभीर परिणाम भुगतने होंगे – यह इस बात पर निर्भर करता है कि वर्तमान टीकों ने ओमीक्रॉन के खिलाफ सुरक्षा कम कर दी है या नहीं.
स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को गंभीर रूप से बीमार लोगों की ऐसी लहर से बचाने के लिए और भी अधिक प्रतिबंधात्मक और दूरगामी नीतियों को लागू करना आवश्यक हो सकता है जो मास्क पहनने और यात्रा प्रतिबंधों से परे हैं. उन्हें लंबी अवधि के लिए लगाना भी आवश्यक हो सकता है. स्वतंत्रता और सेहत के लिए ऐसी नीतियों की लागत वर्तमान में लागू नीतियों की तुलना में कहीं अधिक हो सकती है और उनसे अन्य सामाजिक नुकसान हो सकते हैं. उदाहरण के लिए अगर उनमें शिक्षा में रुकावट शामिल है.
हमने महामारी की इस पूरी अवधि के दौरान जो गलतियां की हैं, हमें उनसे सबक लेना चाहिए. महामारी के प्रति शुरूआती प्रतिक्रिया दिखाने में आलस बरतने पर यूके सरकार की निंदा हुई थी. अगर हम लंबे समय तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने, जीवन बचाने और अपनी नीति बनाने वाली संस्थाओं में विश्वास बनाए रखने में रुचि रखते हैं तो बेहतर होगा कि अभी कदम उठाए जाएं.
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