नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस फिलहाल भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं और मंगलवार की रात गुजरात के राजकोट पहुंचने के बाद उन्होंने राज्य सरकार की तरफ से उनके ‘गर्मजोशी भरे स्वागत’ के लिए धन्यवाद वाला ट्वीट किया.
डॉ टेड्रोस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके गृह राज्य में कई कार्यक्रमों में भाग लेना हैं, जिसमें जामनगर में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (जीसीटीएम) की आधारशिला रखना, जो मंगलवार को किया गया था, और ग्लोबल आयुष इन्वेस्टमेंट एंड इनोवेशन समिट का उद्घाटन शामिल है.
जीसीटीएम समारोह में बोलते हुए डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा, ‘यह वास्तव में एक वैश्विक परियोजना है. इसका अर्थ होगा है कि भारत पूरी दुनिया के पास जाएगा और पूरी दुनिया भारत आएगी.’ वहीं पीएम मोदी ने डॉ टेड्रोस के ‘भारत के प्रति स्नेह’ का उल्लेख किया.
हालांकि इन तारीफ भरे बयानों के बावजूद विश्व की शीर्ष स्वास्थ्य संस्था और भारत सरकार के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. और यह बात सबको खुले में मालूम है.
इन दोनों के बीच भारत में कोविड की मृत्यु दर की लेकर मतभेद रहे हैं, डब्ल्यूएचओ के विश्लेषण में यह आंकड़ा ‘4 मिलियन (40 से 50 लाख) से भी अधिक’ है, जबकि भारत सरकार का आधिकारिक आंकड़ा सिर्फ 5,20,000, या आधा मिलियन से कुछ ही अधिक है.
इसी शनिवार को स्वास्थ्य मंत्रालय ने द न्यूयॉर्क टाइम्स में ‘इंडिया इज़ स्टालिंग द डब्लूएचओज़ एफर्ट्स टू मेक ग्लोबल कोविड डेथ टोल पब्लिक’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख के जवाब में एक बड़ा ही सख्त बयान जारी किया. भारतीय पक्ष ने डब्ल्यूएचओ द्वारा भारत में कोरोनावायरस से होने वाली मौतों का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली (मेथोडोलोजि) पर सवाल उठाया है.
भारत के इस तीखे बयान में कहा गया है, ‘यह बड़े आश्चर्य की बात है कि हालांकि द न्यूयॉर्क टाइम्स भारत के संबंध में कथित रूप से कोविड -19 की अधिक मृत्यु दर से जुड़े तथाकथित आंकड़े तो प्राप्त कर सकता है, मगर यह ‘अन्य देशों के बारे में ऐसे ही अनुमानों को जानने में असमर्थ’ रहा है.’ साथ ही इसमें कहा गया है, ‘भारत ने डब्ल्यूएचओ को जारी किए गए छह पत्रों सहित औपचारिक संवाद की एक पूरी श्रृंखला के माध्यम से अन्य सदस्य राष्ट्रों के साथ इसकी कार्यप्रणाली के बारे में अपनी चिंताओं को साझा किया है.’
एक अन्य कदम जिसने भारत के लिए बहुत असुविधा पैदा कर दी है, वह यह है कि डब्ल्यूएचओ ने इस महीने की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र की खरीद वाली एजेंसियों के माध्यम से भारत में निर्मित कोवैक्सिन की आपूर्ति को निलंबित कर दिया था, और उसने यह भी सिफारिश की थी कि इस वैक्सीन का उपयोग करने वाले देश ‘जैसा उचित समझें’ वैसी कार्रवाई करें.
सूत्रों के अनुसार, हालांकि भारत को पूरी-पूरी उम्मीद है कि कोवैक्सिन वाला विवाद समय के साथ अपने आप हल हो जाएगा, मगर यह कोविड की मौत के अनुमानों वाला मामला है जिसने स्वास्थ्य अधिकारियों को अधिक आहत किया है.
एक सूत्र ने कहा कि हाल ही में हुई एक बैठक में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस मुद्दे पर बिना किसी लाग लपेट के अपनी नाराजगी खुलकर व्यक्त की.
इस सूत्र का कहना था, ‘स्वास्थ्य मंत्री ने इस बात पर स्पष्ट रूप से नाराज दिखे जब उन्होंने कहा कि अगर आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) या कोई अन्य भारतीय संस्थान अमेरिका, इटली या किसी अन्य विदेशी देश में अधिक मृत्यु दर का अनुमान लगाने का प्रयास नहीं करता है, तो फिर किसी विदेशी संस्थान को भारत में हुई मौतों की संख्या को लेकर परेशान होने की क्या जरुरत है?’
सरकारी अधिकारियों का यह भी मानना है कि भारत के मामले में कोविड की मृत्यु दर से जुड़े अनुमानों के बारे वैश्विक मीडिया में ख़बरें डब्ल्यूएचओ द्वारा ‘जानबूझकर लीक की जा रहीं हैं’. एक अधिकारी ने कहा, ‘यह सब लंबे समय से चल रहा है. हमने इस पर शोर न मचाने का विकल्प चुना. लेकिन वे स्पष्ट रूप से विदेशी प्रकाशनों से बात कर रहे हैं.’
डब्ल्यूएचओ के एक अधिकारी ने उनकी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर दिप्रिंट को व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से बताया कि ये अनुमान अभी तक जारी नहीं किए गए हैं.
इस मुद्दे पर टिप्पणियों के लिए दिप्रिंट ने डब्ल्यूएचओ के मुख्यालय और डब्ल्यूएचओ के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र कार्यालय दोनों से ई-मेल के माध्यम से सम्पर्क किया, लेकिन उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. डब्ल्यूएचओ की दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय निदेशक डॉ पूनम खेत्रपाल सिंह को भेजे व्हाट्सएप संदेश का भी कोई जवाब नहीं आया.
‘एक साजिश’
स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने निजी तौर पर बात करते हुए डब्ल्यूएचओ मॉडलिंग के अनुमानों को भारत को बदनाम करने के लिए एक ‘विशिष्ट’ विदेशी साजिश बताया.
एक अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, उन्होंने कहा, ‘वे हमारे देश को समझते ही नहीं हैं. उन्होंने पहले भविष्यवाणी की थी कि इस महामारी के दौरान भारत में काफी अधिक मौतें और तबाही होगी और अब जब हमने उन्हें गलत साबित कर दिया है, तो वे इसे हजम नहीं कर पा रहे हैं. यह हमें बदनाम करने की साजिश है. असल तथ्य तो यह है कि हम दुनिया के सामने भीख का कटोरा लेकर नहीं गए, और हमने टीकाकरण और रोग नियंत्रण दोनों पर इतना अच्छा प्रदर्शन किया कि यह सब पचा पाना उनके लिये मुश्किल साबित हो रहा है.’
अधिकारियों ने कहा, ‘यही कारण है कि इन तथाकथित अनुमानों के प्रति भारत का खंडन प्रेस विज्ञप्ति में उपयोग की जाने वाली सामान्य आधिकारिक भाषा के बजाय मजबूत सांख्यिकीय शब्दावली के साथ किया गया है.‘
भारत इस तरह की मॉडलिंग के अनुमानों के बारे में डब्ल्यूएचओ के खिलाफ मुखर रहा है, और अपने खंडन वाले बयान में इसने कहा है कि डब्ल्यूएचओ को जारी किए गए छह पत्रों (17 नवंबर, 20 दिसंबर और 28 दिसंबर 2021 तथा 11 जनवरी, 12 फरवरी और 2 मार्च 2022को भेजे गए) के माध्यम से इस मामले को उठाया गया था. 16 दिसंबर, 28 दिसंबर 2021, तथा 6 जनवरी और 25 फरवरी 2022 को आयोजित वर्चुअल मीटिंग के साथ ही 10 फरवरी 2022 को आयोजित SEARO के क्षेत्रीय वेबिनार में भी यह मामला उठाया गया था.
एक विशेषज्ञ का जवाब
डब्ल्यूएचओ के मृत्यु दर आकलन वाली इस साऱी कवायद से जुड़े विशेषज्ञों में से एक, जोनाथन वेकफील्ड ने सोमवार को द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के बारे में भारत के खंडन की लेकर एक जवाबी ट्वीट किया.
वेकफील्ड उस वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में स्टैटिस्टिक्सऔर बायोस्टैटिस्टिक्स के प्रोफेसर हैं जिसने पहले भी भारत के कोविड मृत्यु दर अनुमानों पर कई पेपर प्रकाशित किए थे, लेकिन उन्हें भारत सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया था, और इसके शीर्ष विशेषज्ञ उस डब्ल्यूएचओ पैनल का भी हिस्सा हैं जो महामारी के दौरान अधिक मृत्यु दर के मामलों की पड़ताल कर रहा है.
वेकफील्ड ने अभी तक प्रकाशित नहीं हुए एक पेपर के कुछ अंश भी ट्वीट किए, जो विभिन्न देशों में सभी कारणों से हुई मृत्यु दर की पड़ताल करता है.
इस प्रोफेसर द्वारा अपलोड किए गए ‘एस्टिमॅटिंग कंट्री0-स्पेसिफिक एक्सेस मोर्टेलिटी ड्यूरिंग द कोविड -19 पन्डेमिक’ शीर्षक वाले एक आगामी पेपर से लिये गए उद्धरण में लिखा गया है, ‘भारत के मामले में हम राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश स्तर पर दर्ज की गई मौतों की संख्या के लिए विभिन्न स्रोतों का उपयोग करते हैं. ये सूचना या तो राज्यों द्वारा सीधे जारी की गई आधिकारिक रिपोर्टों एवं स्वचालित महत्वपूर्ण पंजीकरण (आटोमेटिक वाइटल रजिस्ट्रेशन) के माध्यम से, या फिर पत्रकारों द्वारा सूचना के अधिकार के तहत किये गए अनुरोध के माध्यम से जुटाई गई मृत्यु पंजीकरण के सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी से, जुटाई गई थी. (इस समूचे पेपर की अनुपूरक सामग्री में इसका पूर्ण विवरण मौजूद है). हम इस बात पर जोर देते हैं कि भारत के मामले में वैश्विक रूप से पूर्वानुमान लगाने वाले सहसंयोजक (covariate) मॉडल का उपयोग नहीं किया गया है और इसलिए अधिक मृत्यु दर का अनुमान केवल भारत के आंकड़ों पर आधारित है.
पिछले महीने, द लैंसेट में प्रकाशित वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के नेतृत्व में किये गए एक अन्य अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि भारत में कोविड -19 के कारण संचयी अतिरिक्त मौतों की संख्या 40.7 लाख (37.1–43.6 लाख) थी.
भारत ने अपना खुद का रास्ता अपनाया
ऐसा भी नहीं है कि नई दिल्ली और जिनेवा स्थित मुख्यालय डब्ल्यूएचओ के बीच पहले भी सब कुछ ठीक-ठाक था. भारत ने महामारी के दो वर्षों के दौरान अक्सर डब्ल्यूएचओ की सलाह को दरकिनार करने का विकल्प चुना और अपना रास्ता खुद बनाया, जो अक्सर उस समय पर विश्व स्वास्थ्य संस्था द्वारा की सिफारिशों के विपरीत था.
कोविड के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण करने की अनिच्छा से लेकर, चीन से आने-जाने लोगों के लिए आरंभ में ही यात्रा प्रतिबंधों और फिर त्वरित लॉकडाउन तक, भारत ने वैश्विक महामारी के दौरान अपनी बनाई रणनीति अपनाई.
16 मार्च 2020 को इसके प्रमुख द्वारा व्यक्त की गई डब्ल्यूएचओ की सलाह ‘टेस्ट, टेस्ट, टेस्ट’ वाली थी. उसी वर्ष 22 मार्च को, आईसीएआर के डी.जी. डॉ बलराम भार्गव ने इस पर पलटवार करते हुए कहा : ‘कोई अंधाधुंध परीक्षण नहीं होगा. हमारी रणनीति होगी आइसोलेशन, आइसोलेशन, आइसोलेशन.‘
भारत ने स्वास्थ्य कर्मियों और देखभाल करने वाले लोगों के लिए रुमेटीइड आर्थराइटिस की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निवारक उपयोग किये जाने की अनुशंसा को लेकर भी बहुत आलोचना झेली, और इसने महामारी के शुरुआती दिनों में कोविड रोगियों के लिए एचआईवी दवाओं लोपिनवीर और रटनवीर को चिकित्सीय रूप में उपयोग करना शुरू कर दिया. हालांकि उस समय के डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इस वायरल बीमारी के लिए किसी विशिष्ट उपचार के सम्बन्ध में सबूतों की कमी है. अंततः ये दवाएं कोविड के इलाज में अप्रभावी साबित हुईं.
सभी देशों के लिए जारी डब्ल्यूएचओ के मार्गदर्शन वाले दस्तावेजों में प्रवासियों सहित हाशिए पर रह रहे समूहों तक पहुंचने और उनके बारे में योजना बनाने के बारे में काफी विस्तृत विवरण है. लेकिन भारत ने 25 मार्च 2020 को जनता को सिर्फ चार घंटे की पूर्व सुचना के साथ देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करते समय स्पष्ट रूप से इस पर ध्यान नहीं दिया.
एक मामले में भारत ने डब्ल्यूएचओ के मार्गदर्शन का भी सहारा लिया. 2021 की दूसरी छमाही में, जब कई देश तीसरे, और कुछ देश तो चौथे, बूस्टर वैक्सीन शॉट्स जारी कर रहे थे, भारत ने बार-बार अपने फैसले के बचाव के लिए बूस्टर शॉट्स पर डब्ल्यूएचओ के रुख का हवाला दिया.
कोवैक्सिन से थी बहुत साऱी उम्मीदें
डब्ल्यूएचओ और भारत के बीच अन्य तकलीफदेह मुद्दा कोवैक्सिन का रहा है.
कोवैक्सिन की आपूर्ति के निलंबन पर, डब्ल्यूएचओ ने कहा कि यह इसके निर्माता को अपनी सुविधाओं को अपग्रेड करने और निरीक्षण में पाई गई कमियों को दूर करने की छूट देने के लिए किया जा रहा है.
आईसीएमआर और हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक के बीच एक संयुक्त उद्यम के रूप में विकसित की गयी यह वैक्सीन भारत सरकार के लिए बहुत गर्व का विषय रही है.
भारत बायोटेक के अधिकारियों के अनुसार, डब्ल्यूएचओ द्वारा किये गए निरीक्षण के दौरान चिह्नित की गई कमियों को दुरुस्त करने में छह महीने तक का समय लग सकता है. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों को इस मामले का जल्द समाधान होने और इस वैक्सीन की वैश्विक आपूर्ति जल्द फिर से शुरू होने की उम्मीद है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने इसी महीने में कुछ दिनों पहले दिप्रिंट को बताया था, ‘डब्ल्यूएचओ ने एक छोटी सी क्वेरी (प्रश्न-सूची) भेजी है, जो जब भी निरीक्षण किया जाता है तो एक सामान्य बात होती है. हम लगातार हालात की निगरानी कर रहे हैं और भारत बायोटेक ने हमें आश्वासन दिया है कि वे इस मुद्दे को जल्द-से-जल्द से ठीक कर लेंगें और 15 दिनों के भीतर डब्ल्यूएचओ को अपना जवाब देंगे.‘
डब्ल्यूएचओ ने नवंबर में कोवैक्सिन को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी थी, क्योंकि इसकी अनुमोदन प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल थी, और पीएम मोदी भी इस वैक्सीन के उपयोग की हिमायत कर रहे थे.
‘इस बारे में बहुत कम संदेह है कि मौतों को कम करके आंका गया था’
कोवैक्सिन के मामले में डब्ल्यूएचओ के साथ हो रही परेशानी और कोविड की मौत के अनुमानों पर चल रहे कड़वे वाद-विवाद से यह भूलना आसान हो चला है कि डब्ल्यूएचओ की वर्तमान व्यवस्था में शामिल सबसे वरिष्ठ लोगों में से एक भारतीय शख्श भी है. आईसीएमआर की पूर्व महानिदेशक डॉ सौम्या स्वामीनाथन, जो 2017 में डब्ल्यूएचओ में चलीं गईं थीं और वर्तमान में वहां की मुख्य वैज्ञानिक हैं, ने अब तक मौत के अनुमानों पर चुप्पी साध रखी है.
डब्ल्यूएचओ में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, डॉ स्वामीनाथन ने अपने बयानों में संतुलन बिठाये रखा है. जब भी उनसे उनकी टिप्पणियों के लिए पूछ-ताछ की जाती है तो उन्होंने कई मौकों पर जवाब दिया है, ‘मुझे आईसीएमआर के साथ काम करना है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत ने डब्ल्यूएचओ के साथ इस सार्वजनिक तनातनी के मामले में डॉ स्वामीनाथन से संपर्क किया था, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘यह उनके विभाग से संबंधित नहीं है’.
कोविड से हुई मौतों की गिनती पर, अशोक विश्वविद्यालय में भौतिकी और जीव विज्ञान के प्रोफेसर गौतम मेनन ने कहा, ‘हमें कई कारणों में सही-सही संख्या पता करने की जरूरत है, जिसमें महामारी के दौरान प्रियजनों को खोने वालों के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी शामिल है’.
यह सलाह देते हुए कि भारत को ‘डेटा को बेहतर तरीके से एकत्र करने की आवश्यकता है’, उन्होंने कहा:, ‘डब्ल्यूएचओ को दिए गए भारत के प्रस्तुतीकरण (सबमिशन) के अनुसार, हम अभी भी कम्युनिटी ट्रांसमिशन (सामुदायिक प्रसार) वाले चरण में नहीं हैं. हम ऐसा कैसे कह सकते हैं कि जब की तर्कसंगत अनुमानों के साथ-साथ सरकार द्वारा स्वयं एकत्र किए गए सीरो सर्वे के आंकड़ों के अनुसार भी देश के 80 से 90 प्रतिशत लोग संक्रमित हो चुके हैं?’
मेनन ने कहा, ‘जहां तक मृत्यु दर का सवाल है, दुनिया भर में हुई मौतों की गिनती एक संवेदनशील मुद्दा है. सरकारों के लिए उन मॉडलों के बारे में चिंतित होना स्वाभाविक है जिनके निष्कर्ष उन्हें खराब रूप से दर्शाते हैं. लेकिन भारत के मामले में यह अंतर काफी बड़ा है. मॉडल द्वारा पेश किये गए अनुमान आधिकारिक अनुमानों से 8 गुना अधिक हैं.’
डब्ल्यूएचओ और भारत के बीच जारी तनातनी पर, उन्होंने कहा, ‘भविष्य में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम डेटा को बेहतर तरीके से एकत्र करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह भरोसेमंद है.’
मेनन ने कहा, ‘भारत में कोविड की मौतों के सभी अनुमानों को अप्रत्यक्ष तरीकों का उपयोग करके एक साथ जोड़ दिया गया है. कोई भी उनके बारे में सवाल उठा सकता है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि मौतों को कम करके आंका गया था. यह तो दुनिया भर में हुआ है. इसमें शर्म जैसी कोई बात नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘भारत सरकार को उन सभी दृष्टिकोणों का स्वागत करना चाहिए जो कोविड-19 मृत्यु दर की अधिक सटीक गणना करने का प्रयास करते हैं, अगर जरुरत हो तो इनकी कार्यप्रणाली के बारे में वैध वैज्ञानिक प्रश्न भी उठाये जाने चाहिए.’
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