जौनपुर: जौनपुर ज़िला अस्पताल के इमरजेंसी वॉर्ड में मंगलवार को 70 वर्षीय बमाउ राम कनौजिया की सांस फूली हुई थी और उनका तीमारदार जो एक 25 वर्षीय रिश्तेदार था भौंचक्का था.
अपने दिमाग़ में कनौजिया के कोविड संक्रमण के संभावित स्रोत की लिस्ट पर ग़ौर करते हुए रिश्तेदार ने कहा, ‘ये तो अपने गांव से निकले ही नहीं. ज़्यादातर घर के पास ही रहे. इन्हें कोविड कैसे हो सकता है?’
कनौजिया अस्पताल के उन कई मरीज़ों में से एक थे- सब आसपास के गांवों से थे- जिनमें कोविड लक्षण, ख़ासकर बुख़ार और सांस फूलना, दिख रहे थे.
उनकी तरह, ज़्यादातर लोग नहीं बता पा रहे थे कि संक्रमण का स्रोत क्या था, क्योंकि उन सभी का कहना था कि वो अपने गांव से बाहर निकले ही नहीं थे.
इमरजेंसी वॉर्ड के बग़ल में दो डॉक्टर बैठकर हर मरीज़ के लक्षण लिख रहे थे. वॉर्ड में मौजूद कुछ मरीज़ों के तीमारदार तो मास्क भी नहीं लगाए थे और डॉक्टर्स उन्हें अपने से दूर रखने का संघर्ष कर रहे थे.
उनमें से एक डॉक्टर ने कहा, ‘ये स्थिति देखिए, बिल्कुल विस्फोटक है. हर आदमी जो हमारे पास आ रहा है, कोविड पॉज़िटिव है. ये सब गांवों से आ रहे हैं’.
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण ज़िले जौनपुर में, जिसमें 1,740 गांव और 21 ब्लॉक्स हैं, दूसरी कोविड लहर के बीच संक्रमण के मामलों में, ज़बर्दस्त उछाल देखा जा रहा है.
ज़िला स्वाथ्य बुलेटिन के अनुसार, 27 अप्रैल को जौनपुर में 5,000 एक्टिव कोविड मामले थे, जो 11 अप्रैल को केवल 867 थे. इससे केंद्र सरकार की मार्च में उस बात की पुष्टि होती दिख रही है कि संक्रमण में कमी के बाद, मामलों में फिर से उछाल के साथ, कोविड ‘ग्रामीण इलाकों की ओर बढ़ रहा है’.
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ज़िले की आबादी 44 लाख से अधिक है, लेकिन यहां सिर्फ एक एल-1 सरकारी अस्पताल है- जिसमें हल्के कोविड मरीज़ों के लिए आइसोलेशन बेड्स हैं- और चार एल-2 सरकारी सुविधाएं हैं, जिनमें ऑक्सीजन बेड्स हैं. ज़िले के अस्पताल में 28 बिस्तर वेंटिलेटर से लैस हैं.
बढ़ते संक्रमण के मद्देनज़र, ज़िला प्रशासन ने छह निजी अस्पतालों को अपने साथ ले लिया है. कुल मिलाकर कोविड मरीज़ों के लिए जौनपुर के अस्पतालों में 598 बिस्तर हैं, जिनमें निजी और सरकारी दोनों शामिल हैं.
लेकिन, मरीज़ों के इलाज के प्रयासों के बीच, संक्रमण के स्रोत को लेकर भी ख़ूब माथा-पच्ची चल रही है. एक कारण जो अधिकारी बता रहे हैं, वो है एक लाख के क़रीब प्रवासियों की घर वापसी, जो होली (29 मार्च) के कुछ दिन पहले से आने लगे थे.
प्रवासियों की वापसी
जौनपुर ज़िला मजिस्ट्रेट मनीष कुमार वर्मा ने कहा कि पिछले एक महीने से प्रवासी श्रमिकों की वापसी का तांता लगा हुआ है.
उन्होंने आगे कहा, ‘लोगों ने होली के लिए आना शुरू किया, फिर फसल कटाई के लिए और उसके बाद पंचायत चुनावों के लिए आए. कुल मिलाकर एक लाख प्रवासी, ज़िले में वापस आए. उनमें से बहुत से लोगों ने ख़ुद को अलग नहीं रखा’.
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव दिसंबर में कराए जाने थे, लेकिन कोविड महामारी की वजह से उन्हें आगे बढ़ा दिया गया था.
चुनाव आख़िरकार 15-29 अप्रैल के बीच, चार चरणों में कराए गए. जौनपुर में दूसरे चरण में मतदान हुआ.
शहर से 5 किलोमीटर दूर चटकली ग्राम पंचायत के पूर्व प्रमुख, अनिल यादव ने कहा कि उनका कार्यकाल, दिसंबर में समाप्त हो गया था, जिसका मतलब है कि वापस आने वालों को लेकर कुछ लापरवाही बरती गई.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें तैयार रहने के लिए नहीं कहा गया था, क्योंकि हमारा कार्यकाल दिसंबर में पूरा हो गया था. प्रवासी लोग आते रहे और उनकी कोई स्क्रीनिंग या टेस्टिंग नहीं हुई. न तो ग्राम सभाएं तैयार थीं और न ही ज़िला प्रशासन तैयार था. मेरे अपने गांव में, 20 से अधिक लोग वोट डालने के लिए बाहर से आए, जबकि कोविड के आंकड़े चिंताजनक हो गए थे’.
मुख्य शहर से 40 किलोमीटर दूर, गुहका पंचायत के पूर्व प्रमुख, मनोज यादव ने कहा कि उन्होंने निजी तौर पर स्थिति पर नज़र रखने की कोशिश की.
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उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा कार्यकाल 25 दिसंबर को ख़त्म हो गया था. उसके बाद हम प्रशासन के लिए ज़िम्मेदार नहीं थे. जब ग्रामीण इलाक़ों में दूसरी लहर ने हिट किया, तो आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं ही, ब्लॉक विकास अधिकारियों (बीडीओ) के साथ मिलकर काम कर रहीं थीं’.
मनोज ने बताया कि पिछले एक महीने में 100 से अधिक लोग गांव लौटकर आए हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘अगले पंचायत प्रमुख की घोषणा 2 मई को की जाएगी. तब तक हमें कोई भूमिका नहीं दी गई है. लेकिन हम अपनी निजी हैसियत में, स्थिति पर नज़र रखे हैं और लोगों की सहायता कर रहे हैं’.
चटकली गांव की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, अनिता यादव ने कहा कि 10 अप्रैल से पहले जो भी गांव में आया, उसे चेक नहीं किया गया क्योंकि हमें, उनकी निगरानी के लिए ‘कहा नहीं गया था’.
उसने आगे कहा, ‘लेकिन 11 अप्रलै के बाद से, हम एक रजिस्टर रख रहे हैं. हम घार-घर जाकर लोगों से, ब्लॉक जाकर टेस्टिंग कराने के लिए कह रहे हैं. लेकिन लोग अपने लक्षण छिपा रहे हैं और खुल नहीं रहे हैं’.
मुम्बई में काम करने वाले चटकली के निवासी भैयालाल यादव, 14 अप्रैल को गांव लौट आए थे और उन्होंने बताया कि ज़िले के अधिकारी उनकी जांच के लिए आए थे.
उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे इलाहबाद रेलवे स्टेशन पर स्क्रीन किया गया था. अपने गांव पहुंचने के लिए मैंने वहां से एक बस ली. ज़िले से कुछ लोग मुझे चेक करने के लिए आए, लेकिन मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे कोई लक्षण नहीं हैं’.
‘निगरानी समितियां और लक्षित टेस्टिंग’
जौनपुर में फिलहाल 500 से अधिक कंटेनमेंट ज़ोन हैं- वो जगहें जहां से संक्रमण की ख़बरें हैं, और इस कारण वहां कुछ प्रतिबंध हैं- जो ब्लॉक्स और गांवों दोनों में हैं.
ज़िला मजिस्ट्रेट वर्मा ने कहा कि वायरस को क़ाबू करने के लिए, वो ‘स्मार्ट टेस्टिंग’ कर रहे हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘हम ऐसे लोगों की स्मार्ट टेस्टिंग कर रहे हैं, जो वायरस के संपर्क में ज़्यादा हैं, जैसे सड़कों पर विक्रेता और वो लोग जो कोविड हॉट स्पॉट्स से आ रहे हैं’.
प्रशासन ने 1,740 गांवों में ‘निगरानी समितियां’ गठित की हैं और ऐसी ही 164 समितियां शहरी क्षेत्रों में बनाई हैं. अन्य सदस्यों के अलावा, हर समिति में एक आशा वर्कर और एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता होती हैं.
वर्मा ने कहा, ‘समिति को ये ज़िम्मा दिया गया है कि ऐसे लोगों पर निगाह रखें जिन्हें वायरस से ख़तरा है और अधिकारियों को सतर्क कर दें. वो गांवों में ऐसे लोगों को एक मेडिकल किट भी मुहैया कराएंगे जो बीमार हैं. हमारे पास ऐसी किट्स तैयार हैं, जिनमें कोविड के लिए बताई गई दवाएं मौजूद हैं’.
इधर अधिकारी कोविड को क़ाबू करने के अपने प्रयास तेज़ कर रहे हैं, उधर मरीज़ ठीक होने के इंतज़ार में हैं. जौनपुर ज़िला अस्पताल में 14 कोविड मरीज़ ऑक्सीजन पर हैं. महामारी के खिलाफ संघर्ष करते अस्पताल की उदासी के बीच, ऑक्सीजन पर रखे हुए एक मरीज़ कनौजिया ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की.
जैसे ही डॉक्टर उन्हें देखने आया, कनौजिया ने अपने सारे लक्षण गिना दिए, लेकिन साथ में ये भी जोड़ दिया कि उसकी सबसे बड़ी चिंता न तो बुख़ार थी, न सांस फूलना.
खाने के शौक़ीन कनौजिया ने कहा, ‘बाकी सब तो ठीक है, बुखार नहीं जा रहा, सांस नहीं आ रही, खाना कैसे खाऊंगा?’
डॉक्टर ने जवाब दिया, ‘जल्दी ही…जल्दी ही ठीक होकर खाना खाएंगे’.
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