अहमदाबाद: बढ़ी हुई ‘ग्राउंड ग्लास ओपैसिटी’, फेफड़ों को क्षति और अचानक निमोनाइटिस हो जाना (फेफड़ों में सूजन)- डॉक्टरों का कहना है कि ये कुछ समस्याएं हैं, जिनका फिलहाल अहमदाबाद में कोविड मरीज़ सामना कर रहे हैं.
देश भर से मिली रही खबरों से संकेत मिला है कि कोविड मामलों में उछाल एक ‘डबल म्यूटेंट सार्स-सीओवी-2’ की वजह से है लेकिन अहमदाबाद में ये न सिर्फ ज़्यादा खतरनाक है बल्कि अप्रत्याशित व्यवहार भी दिखा रहा है, जिसने डॉक्टरों को चिंता में डाल दिया है.
बुधवार को अहमदाबाद नगर निगम के इलाके में, 15 दिन से देखी जा रही उछाल के चलते कोविड के 2,500 नए मामले दर्ज किए गए और 24 मौतें हुईं. और ये अतिरिक्त जटिलताएं यहां के निवासियों को मजबूरन, ऑक्सीजन सिलिंडर्स और वेंटिलेटर्स की ओर धकेल रही हैं.
लेकिन, अहमदाबाद नगर निगम के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने, ऐसे किसी रुझान ने इनकार किया. नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मामलों की संख्या को देखते हुए, जटिलताएं बहुत कम हैं. हमारे पास बहुत से ‘हल्के’ लक्षण वाले मरीज़ हैं- करीब 60-70 प्रतिशत मामले हल्के हैं, जिनमें हम होम-आइसोलेशन से काम चला सकते हैं. अस्पताल जिस समस्या का सामना कर रहे थे, वो ऑक्सीजन सप्लाई और रेमडिसिविर की कमी थी’.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘वायरस विषैला नहीं है, और केवल वरिष्ठ (नागरिक) मरीज़, जिन्हें दूसरी बीमारियां भी हैं, इन जटिलताओं का सामना कर रहे हैं. और अगर किसी को पूरे टीके लग चुके हैं, तो फिर इन जटिलताओं की संभावनाएं, और भी कम हो जाती हैं’.
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आक्रामक स्ट्रेन
अहमदाबाद सिविल अस्पताल के अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ रजनीश पटेल, जिन्होंने दिप्रिंट को सबसे पहले शहर के रुझानों के बारे में बताया था, ने कहा: ‘नए स्ट्रेन के विषैलेपन और हालात की गंभीरता के कारण, ज़्यादा से ज़्यादा ऑक्सीजन और वेंटिलेटर बेड्स भर रहे हैं. पिछले साल के रुझान के मुताबिक ही, आने वाले 60-70 प्रतिशत मरीज़, 40 वर्ष से अधिक आयु के हैं’.
पटेल ने आगे कहा, ‘वायरस का म्यूटेंट स्ट्रेन मरीज़ों को, इतने आक्रामक ढंग से प्रभावित कर रहा है कि उन्हें ऑक्सीजन बेड्स की ज़रूरत होती है. साइकिल ऐसा है कि मरीज़ों के टेस्ट, 13-14 दिन के बाद निगेटिव आते हैं, जब वो बीमारी को फैलाना बंद करते हैं. लेकिन फेफड़ों की जटिलताएं तीन महीने तक रहती हैं. हालांकि दो हफ्ते बाद मरीज़ का आरटी-पीसीआर निगेटिव हो जाता है लेकिन उनके फेफड़ों की क्षमता इस हद तक, बिगड़ या पूरी तरह तबाह हो जाती है कि उन्हें तीन महीने तक ऑक्सीजन सपोर्ट और निगरानी की ज़रूरत होती है’.
शहर के एक वरिष्ठ निजी फिज़ीशियन डॉ सुनील मेहता भी इससे सहमत थे. ‘कोविड की ताज़ा उछाल में, मरीज़ों के फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. बाकी शरीर ठीक रहता है लेकिन मरीज़ की सांस फूलने लगती है और हमें पता चलता है कि उसे हाइपोक्सिया है. अब हम देख रहे हैं कि मरीज़ों में, पहले की अपेक्षा ग्राउंड ग्लास ओपैसिटी भी, कहीं ज़्यादा जल्दी सामने आ रही है. हम ये भी देख रहे हैं कि इस बार कोविड मरीज़ों में अचानक निमोनाइटिस भी हो रहा है’.
ग्राउंड ग्लास ओपैसिटी (जीजीओ), धुंधले भूरे रंग के उन क्षेत्रों को कहते हैं, जो फेफड़ों के सीटी स्कैन्स या एक्सरेज़ में दिखाई पड़ सकते हैं. ये भूरे क्षेत्र फेफड़ों के अंदर, बढ़े हुए घनत्व का संकेत होते हैं.
एक कंसलटेंट फिज़ीशियन डॉ मनोज विठलानी ने भी बताया कि उन्होंने जिन कोविड मरीज़ों को देखा है, उनमें अस्पताल में भर्ती के आठवें या दसवें दिन, गंभीर विपरीत प्रतिक्रिया देखी गई. उन्होंने कहा, ‘ये प्रवृत्ति चिंताजनक है; मरीज़ की हालत शुरू के दिनों में स्थिर रहती है और फिर अचानक हम देखते हैं कि आठवें या दसवें दिन उनकी हालत बिगड़ जाती है’.
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जीनोमिक अंतर
म्यूटेंट स्ट्रेन में जीनोमिक अंतर की बात करते हुए, विठलानी ने कहा, ‘पिछले साल जब दीवाली के बाद कोविड में उछाल आया था, तो मरीज़ों में ‘एस’ जीन मौजूद था. इस बार ‘एस’ जीन गायब है, जिससे पता चलता है कि ये एक म्यूटेंट है. लेकिन कुछ मामलों में हमने देखा कि एक अतिरिक्त ‘ई’ जीन भी मौजूद नहीं है. हमने ये भी देखा है कि मरीज़ों में आमतौर से ‘एन’ और ‘ओआरएफ’ मौजूद होते हैं’.
दो लक्षित जीन्स हैं जिन्हें उपकरण पकड़ पाते हैं, ‘ई’ और ‘ओआरएफ1ए’. ‘ओआरएफ1ए’ केवल सार्स-सीओवी-2 में होता है, इसलिए अगर सिर्फ यही जीन पकड़ में आता है, तो पॉज़िटिव होने की पुष्टि हो जाती है. लेकिन ‘ई’ जीन मूल सार्स वायरस, तथा अन्य बैट कोरोनावायरसों में साझा होता है.
डॉ तरुण पटेल ने भी, जो गुजरात की कोविड टास्क फोर्स का हिस्सा हैं, रुझान की पुष्टि की और कहा, ‘पिछले साल के मुकाबले, इस साल हम देख रहे हैं कि ज़्यादा संख्या में मरीज़ों को ऑक्सीजन सपोर्ट की ज़रूरत पड़ रही है. उनके फेफड़ों की स्थिति ज़्यादा तेज़ी से बिगड़ रही है और सीटी स्कैन्स में हम इसकी गंभीरता को 10-12 प्रतिशत तक जाते देख रहे हैं, जो पहले 5-6 हुआ करती थी. ये वायरस के एक अलग तरह के स्ट्रेन का संकेत हो सकता है. अपने बिस्तर से बाथरूम तक जाने में भी, मरीज़ों की सांस फूल रहा है’.
तरुण पटेल ने आगे कहा, ‘वायरस अब बहुत तेज़ी से म्यूटेट कर रहा है, क्योंकि अब ये ज़्यादा लोगों को प्रभावित कर रहा है. अगर परिवार का एक सदस्य भी संक्रमित होता है, तो पूरा परिवार उसका शिकार हो रहा है. फिलहाल, हमें इस स्ट्रेन के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है’.
मरीज़ों के आयु वर्ग की बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘प्रभावित हो रहे ज़्यादातर लोग युवा हैं, जिन्हें दूसरी बीमारियां नहीं हैं. बच्चे भी जिन्हें पहले बिना लक्षण वाले कैरियर्स समझा जाता था, अब संक्रमित हो रहे हैं और गंभीर लक्षण दिखा रहे हैं’.
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