बेंगलुरु: कोविड की संभावित तीसरी लहर की वर्तमान में चल रही तैयारी के मद्देनजर भारत के शीर्ष कॉर्डियक (हृदय रोग) सर्जनों में से एक, डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी ने अधिक सावधानी बरतने के लिए कहा है. दरअसल देशभर में कोविड वार्डों में काम करने वाले डॉक्टर और नर्स लगभग 18 महीने से लगातार कड़ी मेहनत कर रहे हैं और वे बुरी तरह से थके हुए हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को दिए गए एक साक्षात्कार में बताया कि भारत की तमाम राज्य सरकारों को देशभर में इस महामारी के मोर्चे पर तैनाती के लिए एक नए कार्यबल को तैयार करने के लिए त्वरित प्रयास करने की आवश्यकता है. डॉ. शेट्टी ने कहा, ‘हम उन्हीं घोड़ों को बार-बार कोड़े मारने जैसा क्रम जारी नहीं रख सकते, जो (हम) पिछले डेढ़ साल से कोविड आईसीयू में कार्यरत कर्मियों के साथ कर रहे हैं. वे सब काफी थके हुए हैं और उनमें से एक अच्छी-खासी संख्या में कर्मी स्वयं भी संक्रमित हुए हैं. हमें एक नए स्वास्थ्य कार्यबल की जरूरत है.’
बेंगलुरु स्थित मुख्यालय वाली मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पतालों की श्रृंखला, नारायण हेल्थ के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ. शेट्टी वर्तमान में कर्नाटक सरकार द्वारा तीसरी लहर से निपटने के लिए गठित विशेषज्ञों की एक समिति का नेतृत्व कर रहे हैं.
चिकित्साकर्मियों की संख्या बढ़ाने के तरीकों के बारे में बात करते हुए डॉक्टर देवी शेट्टी ने कहा कि राज्य सरकारों को वर्तमान में उपलब्ध कर्मचारियों की संख्या का डॉक्युमेंटेशन करना चाहिए और अधिक डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षित करने के लिए एक रोडमैप तैयार करना चाहिए.
वे आगे कहते हैं, ‘इसके लिए राज्य उन डॉक्टरों के समूहों का उपयोग कर सकते हैं, जो स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए एनईईटी द्वारा आयोजीत परीक्षा में पर्याप्त अंक नहीं ला सके थे अथवा जिन्होंने विदेश में अपनी मेडिकल डिग्री प्राप्त की थी और अब भारत में प्रमाणन (सर्टिफिकेशन) की प्रतीक्षा कर रहे हैं. (यहां यह उल्लेखनीय है कि वे डॉक्टर्स जिन्होंने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा के अलावा अन्य देशों से की है उन्हें भारत में चिकित्सक के रूप में काम करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए एक परीक्षा पास करना आवश्यक होता है.)
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तीसरी लहर से पहले स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की हालत
इस साल की शुरुआत में 15वें वित्त आयोग द्वारा बताए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर 1,511 लोगों की सेवा के लिए एक डॉक्टर है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए मानक – हर 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर – से काफी ऊपर है.
कोविड -19 की दूसरी लहर, जिसने मार्च में देशभर में अपने पैर पसारना शुरू किया और पिछले महीने ही थम पाई है, ने पूरे देश पर विनाशकारी प्रभाव डाला. मई में अपने चरम के दौरान कोविड की इस लहर ने प्रति दिन 4 लाख से अधिक नए मामलों की संख्या देखी, जबकि आधिकारिक रूप से कोविड से हुई मौतों का आंकड़ा भी 3,000 से 5,000 प्रति दिन के बीच रहा.
अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में भारी वृद्धि का सीधा मतलब डॉक्टरों और नर्सों के लिए और अधिक गंभीर तनाव था- एक ऐसा तनाव जो भारत के स्वास्थ्य ढांचे की सीमाओं के कारण उत्पन्न हो रहा था. उपलब्ध संसाधनों का अनुकूल उपयोग करने के लिए, डॉक्टरों को अक्सर काफी कठिन निर्णय लेने पड़ते थे और जीवित रहने की बेहतर संभावना वाले रोगियों के लिए उपचार को प्राथमिकता देनी पड़ती थी. कोविड के मामलों में बेतहाशा वृद्धि के साथ ही गहराई ऑक्सीजन के संकट का भी डॉक्टरों पर भारी असर पड़ा- अप्रैल में एक वायरल रिपोर्ट में यह बताया गया कि कैसे दिल्ली के एक डॉक्टर अपने अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी पर चर्चा करते समय बुरी तरह से रो पड़े थे.
पीपीई किट, जिसमें वॉशरूम जाना भी एक मुश्किल काम लगता है, में पूरे-पूरे दिन दर्जनों रोगियों की कई घंटों तक देखभाल करते हुए भी कुछ लोगों/ मरीजों को अपने ही सामने मरते हुए देखना इन डॉक्टरों और नर्सों के लिए दूसरी लहर के दौरान भोगा गया बुरा सपना था और उनके बर्नआउट और तनाव की ख़बरें मीडिया में व्यापक रूप से प्रकाशित की जा चुकी हैं.
इस ओर इशारा करते हुए कि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है. डॉक्टर शेट्टी ने कहा, ‘दुर्भाग्य से, हमें यह भी पता नहीं है कि कितने डॉक्टर काम कर रहे हैं या फिर कितनी नर्सें काम कर रही हैं. इस बारे में मेरा सुझाव है कि प्रत्येक राज्य सरकार के पास एक दस्तावेज होना चाहिए कि वर्तमान में उनके राज्य में कितने डॉक्टर कार्यरत हैं.’
वे कहते है, ‘राज्य सरकारों ने यह अजीब सा स्टैंड अपना लिया है कि यदि किसी राज्य में जनशक्ति (मैन पावर) की समस्या है, तो इसके लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया जाना चाहिए, जबकि वास्तव में राज्य की चिकित्सा सम्बन्धी जनशक्ति को केंद्र सरकार नहीं बल्कि राज्य सरकारें ही नियंत्रित कर रही हैं.‘
डॉक्टर शेट्टी ने कहा कि राज्य सरकारों को इस चुनौती को कम करने के लिए अपना खुद का पाठ्यक्रम बनाना चाहिए एवं और अधिक नर्सिंग कॉलेज खोलने चाहिए.
डॉ. शेट्टी का मानना है कि चिकित्साकर्मियों की मौजूदा कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकारों को एनईईटी पीजी सीट (1.4 लाख-1.5 लाख डॉक्टर) या विदेशी विश्वविद्यालयों (80,000-1 लाख डॉक्टरों) से चिकित्सा की योग्यता प्राप्त करने वालों डॉक्टर्स- जो भारत में प्रमाण पत्र पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं – की भर्ती करके कर्मचारियों की संख्या का त्वरित विस्तार करना चाहिए.
वे कहते हैं, ‘यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें अपने सरकारी अस्पतालों को जीवंत बनाना चाहिए… हर राज्य सरकार के पास एक चेकलिस्ट होनी चाहिए, जिसे हर सरकारी अस्पताल को एक मोबाइल फोन ऐप पर दैनिक आधार पर प्रकाशित करना चाहिए जिसमें जरूरी डेटा शामिल हो जैसे कि कितनी सर्जरी की गई अथवा उनकी ओपीडी में कितने मरीज आये, आदि.’
डॉ. शेट्टी ने कहा कि उनकी अपनी अंदरूनी भावना (गट फीलिंग) कहती है कि भारत में तीसरी लहर दूसरी लहर जितनी गंभीर नहीं होगी, लेकिन फिर भी मैं अपनी सभी बैठकों में कहता रहता हूं कि हमें कोविड की ऐसी तीसरी लहर के लिए तैयार रहना चाहिए, जो दूसरी लहर से कम से कम 30 प्रतिशत ज्यादा गंभीर हो.‘
तीसरी लहार का बच्चों पर असर?
ऐसी अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि तीसरी लहर मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करेगी, लेकिन डॉ. शेट्टी इसे खारिज करते हए इस सिद्धांत पर सवाल उठाने वाली एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया और डब्ल्यूएचओ के मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन सहित अन्य विशेषज्ञों की सूची में शामिल हो गए.
पिछले महीने, एम्स द्वारा एक सीरोलॉजिकल अध्ययन में पाया गया कि वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी वाले बच्चों की संख्या वयस्कों के आंकड़े के बराबर ही थी.
डॉ. शेट्टी ने कहा कि यह पूरा सच नहीं है कि तीसरी लहर मुख्य रूप से बच्चों पर ही हमला करेगी. लेकिन, उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि बच्चों का टीकाकरण नहीं किया जा सका है और इस तरह वे प्रतिरक्षित न होने के कारण एक असुरक्षित आबादी जैसे हैं.’
उन्होंने कहा. ‘वयस्कों के विपरीत, बाल चिकित्सा अस्पताल सेवाओं और बच्चों के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाना बहुत मुश्किल कार्य है.’
वे बताते हैं, ’उदाहरण के लिए पूरे देश में पांच किलो से कम वजन वाले बच्चों के लिए अनुमानित रूप से 1,000 वेंटिलेटर ही हैं.’
जून में, डॉ. देवी शेट्टी के नेतृत्व वाले पैनल ने ‘बच्चों के लिए विशिष्ट अस्पताल’ की स्थापना और मौजूदा बाल चिकित्सा इकाइयों को अपग्रेड करने की सिफारिश की थी. इस समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में स्कूलों और कॉलेजों को चरणबद्ध तरीके से फिर से खोलने की भी वकालत की थी.
हालांकि डॉ. शेट्टी ने स्पष्ट किया कि यद्यपि ऐसा निर्णय लिया गया था लेकिन समिति ने कभी भी यह निर्दिष्ट नहीं किया कि शैक्षणिक संस्थानों को कब फिर से खोलना चाहिए.
उनका कहना है, ‘यह एक बहुत ही जटिल निर्णय है, जिसका हजारों बच्चों और परिवारों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि किसी विशेषज्ञ समिति के पास यह स्पष्ट रूप से कहने का पर्याप्त ज्ञान है कि आप इस समय से स्कूल या कॉलेज शुरू कर सकते हैं.‘
लम्बी अवधि वाले कोविड के लक्षण
ऐसे कई रोगियों में जिन्हें कोविड हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है कि इस रोग का प्रभाव इसके संक्रमण काल से कहीं अधिक लम्बा है.
कई सारे डॉक्टरों के बीच कोविड के बाद की बीमारियां और अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताएं चिंता का एक महत्वपूर्ण कारण बनती जा रही हैं. इन जटिलताओं में रक्त के थक्के, हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियां और कई अन्य लोगों के बीच फुफ्फुसीय (रेस्पिरेटरी) जटिलताएं शामिल हैं. डॉ. शेट्टी ने कोविड के इन लंबे लक्षणों को ‘स्वास्थ्य सेवा के लिए अगले कुछ वर्षों में आने वाली एक बड़ी चुनौती’ के रूप में वर्णित किया.
उनका कहना है, ‘हमने बीमारियों का एक अलग समुच्चय देखा है जो आपके मस्तिष्क, आपके दिल और शरीर के बाकी हिस्सों को प्रभावित कर सकता है … यह देश की पहले से ही बोझिल स्वास्थ्य प्रणाली पर एक और बड़ा बोझ होने जा रहा है… हमें नहीं पता कि एक या दो साल बाद और क्या उभरेगा. डॉ. शेट्टी ने कहा कि उन्हें आश्चर्य नहीं होगा, अगर आने वाले समय में कोविड विशेषज्ञ एक अलग विशेषता/विधा (स्पेशलिटी) के रूप में उभरे.
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