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Friday, 1 November, 2024
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टाटा 1एमजी की स्टडी में दावा- ‘हर 4 में से 3 भारतीय विटामिन D की कमी से पीड़ित’

देश के जिन 27 शहरों में स्टडी की गई, उनमें वड़ोदरा (89%) और सूरत (88%) में सबसे अधिक विटामिन डी की कमी वाली आबादी मौजूद थी.

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नई दिल्ली: टाटा समूह की ऑनलाइन फार्मेसी 1एमजी ने एक नई स्टडी में पाया कि हर 4 में से 3 भारतीय विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं. इस स्टडी के लिए देश के 27 शहरों और 2.2 लाख लोगों के डेटा का उपयोग किया गया था.

टाटा 1एमजी लैब्स द्वारा की गई स्टडी ने निष्कर्ष निकाला कि लगभग 76 प्रतिशत आबादी में पर्याप्त मात्रा में “सनशाइन विटामिन” की कमी है.

वृद्ध पार्टिसिपेंट्स और महिलाओं के मुकाबले युवाओं (25 वर्ष से कम) और पुरुषों में विटामिन डी की कमी का प्रसार अधिक था.

स्टडी में सामने आए आंकड़ों से पता चला है कि 84 प्रतिशत युवा विटामिन डी की कमी से पीड़ित थे, जबकि 81 प्रतिशत पार्टिसिपेंट्स (25 से 40 वर्ष) में इसका स्तर कम था.

इसके अलावा, 79 प्रतिशत पुरुषों के शरीर में विटामिन डी का स्तर पर्याप्त से भी कम पाया गया, जबकि महिलाएं 76 प्रतिशत से बहुत पीछे नहीं थीं.

भारत के जिन 27 शहरों में स्टडी को किया गया था, उनमें से वड़ोदरा और सूरत में विटामिन डी की कमी वाली आबादी सबसे अधिक थी. वडोदरा में, टेस्ट किए गए लोगों में से 89 प्रतिशत में यह निम्न स्तर का था, जबकि सूरत में यह 88 प्रतिशत था.

दिल्ली में इसका स्तर सबसे कम (72 प्रतिशत) था. हालांकि, सभी शहरों में यह संख्या 70 प्रतिशत से अधिक थी.

टाटा 1एमजी लैब्स के मेडिकल मामलों के वाइस प्रेसिडेंट डॉ. राजीव शर्मा ने कहा, “खान-पान की बदलती आदतों और सूरज की रोशनी के संकेत में कम आने और इनडोर लाइफस्टाइल के कारण विटामिन डी की कमी के मामले बढ़े हैं”.

उन्होंने कहा, “युवाओं में विटामिन डी युक्त खान-पान की आदतों में मोटे अनाज और मछली की कमी को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. हालांकि, विशेष रूप से सर्दियों के दौरान, सूरज की रोशनी के संपर्क में मौसमी बदलाव भी एक संभावित कारण हो सकता है. पर्याप्त भोजन न करने वाली महिलाओं में प्लान्ड और अनप्लान्ड प्रेग्नेंसी से मां और बच्चे दोनों में विटामिन डी की स्थिति बिगड़ सकती है.”

टाटा 1एमजी ने खासकर मोटापे, रिकेट्स और टीबी के मामलों में रेगुलर तौर पर विटामिन डी के लेवल की जांच कराने को भी ज़रूरी बताया.

टाटा 1एमजी लैब्स के क्लिनिकल हेड डॉ. प्रशांत नाग ने कहा, “रेगुलर फुल-बॉडी चेकअप के साथ-साथ विटामिन डी के लेवल की भी जांच की जा सकती है, जिसे हर छह महीने या साल में कम से कम एक बार करने की सलाह दी जाती है. पांच साल से कम उम्र के शिशु, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएं, किशोर और युवा महिलाएं, 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोग, और सीमित धूप में रहने वाले लोग विटामिन डी की कमी के लिए सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, विटामिन डी शरीर में कैल्शियम और सल्फेट जैसे पोषक तत्व जो हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होते हैं, उनकी मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है. यह ग्रोथ, डेवलपमेंट,मेटाबोलिस्म, इम्युनिटी, हड्डियों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है. इसकी कमी को प्रोस्टेट कैंसर, डिप्रेशन,डायबिटिज़, गठिया, और रिकेट्स जैसे स्वास्थ्य संबंधि डिसोर्डर से जोड़ा गया है.

ह्यूमन स्किन पर एक प्रकार का कोलेस्ट्रॉल होता है, जो विटामिन डी के अग्रदूत का काम करता है. सूर्य से यूवी-बी रेडिएशन के संपर्क में आने पर, यह विटामिन डी में बदल जाता है. सूरज की पर्याप्त रोशनी में रहने और उसमें समृद्ध खाद्य पदार्थों जैसे अंडे की जर्दी, तैलीय मछली, रेड मीट और मोटे अनाज का सेवन करने से, विटामिन डी की कमी को रोकने में मदद मिल सकती है.

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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