नई दिल्ली: दिल्ली सरकार द्वारा संचालित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलिएरी साइंसेज (आईएलबीएस) ने अपने कर्मचारियों को अस्पताल परिसर में एक-दूसरे से अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में बात करने पर पाबंदी लगा दी है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक यह कदम अस्पताल आने वालों की इन शिकायतों के बाद उठाया गया है कि कई बार वह खुद को ‘अपमानित’ महसूस करते हैं और उन्हें अक्सर ऐसा लगता है कि कर्मचारी उनके या उनके मरीज के बारे में बात कर रहे हैं.
अस्पताल ने अपने परिसर के अंदर कोई ‘धार्मिक आयोजन’ करने पर भी रोक लगा दी है.
दिप्रिंट के पास मौजूद 21 अक्टूबर को जारी आदेश की एक प्रति के मुताबिक, ‘सभी संबंधितों को सलाह दी जाती है कि संस्थान परिसर के अंदर क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत नहीं की जानी चाहिए.’
अस्पताल, जहां जुलाई में देश का पहला प्लाज्मा बैंक खोला गया था, ने स्पष्ट किया है कि ‘अस्पताल में मरीजों के देखभाल वाले क्षेत्रों में कर्मचारियों को केवल हिंदी और अंग्रेजी भाषा में बात करनी चाहिए.’
यह आदेश आईएलबीएस में डिप्टी हेड, ऑपरेशन, मेडिकल डॉ. दीपक कुमार बड़वाल की तरफ से जारी किया गया है.
बड़वाल ने दिप्रिंट से फोन पर बातचीत में कहा, ‘हमें कुछ अजीब शिकायतें मिलीं थीं जिसके मुताबिक मरीजों के परिजनों ने खुद को तब अपमानित महसूस किया जब कर्मचारी अपनी क्षेत्रीय भाषा में एक-दूसरे के साथ बात कर रहे थे और उन्हें लगा कि कर्मचारी उनके और उनके मरीज के बारे में बात कर रहे हैं.’
यह स्पष्ट करते हुए कि ‘संस्थान सभी धर्मों का सम्मान करता है’ एडवायजरी में कहा गया है, ‘…अस्पताल परिसर के अंदर किसी धार्मिक गतिविधि का आयोजन नहीं किया जाना चाहिए.’
यह एडवायजरी आईएलबीएस के प्रशासनिक प्रमुख, सभी उप प्रमुख, सहायक प्रमुख, वरिष्ठ प्रबंधक (नर्स) और निदेशक डॉ. शिव कुमार सरीन के वरिष्ठ निजी सचिव को संबोधित करते हुए जारी की गई है.
इसे विभाग के इंट्रानेट पर अपलोड करने के लिए आईटी विभाग को भी मार्क किया गया है.
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‘भीड़भाड़ से बचने के लिए धार्मिक गतिविधियां रोकीं’
बड़वाल ने कहा कि कर्मचारियों के क्षेत्रीय भाषा में बातचीत करने पर रोक लगाने का फैसला ‘मरीजों के परिजनों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जो कई बार बहुत संवेदनशील हो जाते हैं’ और नर्स और अन्य स्टाफ का अपनी मातृभाषा में बोलना उन्हें कतई नहीं भाता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘इससे भ्रम फैलता है और परिजनों को लगता है कि वे उनके या उनके मरीज के बारे में अपनी भाषा में कुछ बात कर रहे हैं.’
बड़वाल ने यह भी स्पष्ट किया कि संस्थान ने परिसर के अंदर धार्मिक गतिविधियों को रोकने का कदम ‘भीड़भाड़ जुटने’ से रोकने के लिए उठाया है.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमने पाया कि कुछ रिश्तेदार अपने मरीज के ठीक होने की प्रार्थना करने के लिए एक जगह जुटते हैं और वहीं पूजा-अर्चना शुरू कर देते हैं. हालांकि, हम नहीं चाहते कि दूसरे लोग धार्मिक आयोजन या गतिविधियों से परेशान हों. हमें परिजनों के एक साथ बैठने और शांति से प्रार्थना करने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन किसी अन्य गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी.
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