नई दिल्ली: अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने बुधवार को देश में पहली बार डायबिटीज के इलाज के लिए बायोसिमिलर इंटरचेंजेबल इंसुलिन उत्पाद के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी.
बेंगलुरू स्थित फार्मास्युटिकल कंपनी बायोकॉन बायोलॉजिक्स द्वारा निर्मित सेमग्ली अमेरिका में पहले से स्वीकृत और लंबे समय से इस्तेमाल किए जाने वाले इंसुलिन उत्पाद लैंटस की तरह और बायोसिमिलर इंटरचेंजेबल दोनों है.
बायोसिमिलर उत्पादों और पहले ही बाजार में स्वीकृत अन्य संदर्भ उत्पादों (इस मामले में लैंटस) में क्लीनिकल दृष्टि से कोई विशेष अंतर नहीं होता है. एक इंटरचेंजेबल बायोसिमिलर उत्पाद का मतलब है कि उस दवा को किसी डॉक्टर से पूछे बिना भी मरीज एक विकल्प के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. यह एक ही दवा के एक अलग ब्रांड को खरीदने जैसा है.
एफडीए के मुताबिक, कोई भी बायोसिमिलर उत्पाद से उसी तरह सुरक्षा और प्रभावशीलता की उम्मीद कर सकता है, जैसी संदर्भ उत्पाद से होती है और स्वीकृत की गई नई दवा मधुमेह से निपटने में उतनी ही प्रभावी होगी जितनी इंसुलिन होती है.
एफडीए के बयान में कहा गया है, ‘सेमग्ली (इंसुलिन ग्लार्गिन-वाईएफजीएन) को लैंटस (इंसुलिन ग्लार्गिन) के साथ इंटरचेंजेबल बायोसिमिलर के तौर पर मंजूरी यह दर्शाने वाले साक्ष्य पर आधारित है कि उत्पाद एकदम समान हैं और सुरक्षा, शुद्धता और क्षमता (सुरक्षा और प्रभावशीलता) के संदर्भ में सेमग्ली (इंसुलिन ग्लार्गिन-वाईएफजीएन) और लैंटस (इंसुलिन ग्लार्गिन) के बीच क्लीनिकल दृष्टि से कोई बड़ा अंतर नहीं हैं.’
साथ ही यह भी कहा गया कि सेमग्ली को टाइप 1 और टाइप 2 से पीड़ित वयस्कों के साथ-साथ डायबिटीज के शिकार बच्चों में ग्लाइसेमिक स्तर (ग्लूकोज) को नियंत्रण में लाने में कारगर पाया गया है.
डायबिटीज एक असाध्य रोग है जो शरीर में ऊर्जा के लिए चीनी और अन्य पोषक तत्वों को संग्रहीत और इस्तेमाल करने के तरीके को प्रभावित करता है. किसी डायबिटीज रोगी का शरीर शर्करा का स्तर सामान्य सीमा के भीतर रखने के लिए अग्न्याशय की तरफ से छोड़ जाने वाले हार्मोन इंसुलिन का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन नहीं करता है.
एफडीए के कार्यवाहक कमिश्नर डॉ. जेनेट वुडकॉक ने बयान में कहा, ‘यह उन लोगों के लिए बहुत अहम दिन है जो डायबिटीज के इलाज के लिए हर दिन इंसुलिन पर निर्भर रहते हैं, क्योंकि बायोसिमिलर और इंटरचेंजेबल उत्पादों से हेल्थकेयर पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है.’
बायोकॉन लिमिटेड की एक्जीक्यूटिव चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने कहा, ‘यह ऐतिहासिक घटना है क्योंकि यह बायोकॉन के इंसुलिन ग्लार्गिन को मूल दवा के इंटरचेंजेबल डेजिगनेशन के तौर पर पुष्टि स्थापित करती है.’
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह उत्पाद दुनिया का पहला इंटरचेंजेबल बायोसिमिलर है और बड़ी बात यह है कि यह सब हमारी लैब और बेंगलुरू स्थित फैसिलिटी में ही विकसित किया गया है. यह हमारे वैज्ञानिक कौशल को भी दर्शाता है.’
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इंसुलिन पर खर्च ज्यादा
डायबिटीज को नियंत्रित रखने के सबसे प्रभावी तरीके इंसुलिन पर बहुत ज्यादा खर्च आता है. खासकर अमेरिका में, जो वैश्विक इंसुलिन बाजार में केवल 15 प्रतिशत की भागीदारी रखता है लेकिन करीब 50 प्रतिशत राजस्व कमाता है.
फुटकर में इन शीशियों की कीमत 175 से 300 डॉलर के बीच होती है और उनके लिस्ट प्राइस औसतन 15 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाते हैं.
2018 में अमेरिकी बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण भारत में चुनिंदा इंसुलिन ब्रांड की कीमतें 20 प्रतिशत तक बढ़ गई थीं.
हालांकि, भारत में इंसुलिन काफी किफायती कीमतों पर उपलब्ध होती है, जिसकी कीमत 150 रुपये से लेकर 3,000 रुपये प्रति शीशी तक होती है. दुनियाभर में हर छह में से एक डायबिटीज रोगी भारत में ही है.
मौजूदा समय में तीन कंपनियों- एली लिली, नोवो नॉर्डिस्क और सनोफी का वैश्विक इंसुलिन बाजार में 90 प्रतिशत नियंत्रण है और अमेरिका में मरीजों के पास चुनने के लिए कोई जेनरिक विकल्प उपलब्ध नहीं है, जो कीमतें बढ़ने की एक सबसे बड़ी वजह है.
एफडीए के मुताबिक, बायोसिमिलर उत्पाद इलाज पर खर्च को भी कम करते हैं. इसके बयान में कहा गया है, ‘अमेरिकी बाजार में बायोसिमिलर का लॉन्च आमतौर पर प्रारंभिक लिस्ट प्राइस में 15% से 35% की कमी के साथ होता है जो अन्य संदर्भ उत्पादों की तुलनात्मक लिस्ट प्राइस से कम है.’
कुछ अनुमानों के मुताबिक, बाजार में बायोसिमिलर उत्पादों के आने से अमेरिकी करदाताओं का इंसुलिन पर खर्च 2.5 अरब डॉलर बचेगा.
(डिस्क्लोजर: बायोकॉन की एक्जीक्यूटिव चेयरपर्सन किरण मजूमदार-शॉ दिप्रिंट के प्रतिष्ठित संस्थापक-निवेशकों में शामिल हैं. निवेशकों के बारे में जानकारी के लिए कृपया यहां क्लिक करें)
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