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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थभारत में जनवरी के बाद जीनोम सिक्वेंसिंग में भेजे गए 45% नमूनों में ओमीक्रॉन था: कोविड लैब नेटवर्क INSACOG

भारत में जनवरी के बाद जीनोम सिक्वेंसिंग में भेजे गए 45% नमूनों में ओमीक्रॉन था: कोविड लैब नेटवर्क INSACOG

इन्साकोग ने अपने नवीनतम बुलेटिन में इस बात का खुलासा किया कि है इस साल जनवरी के बाद से भारत में जीनोमिक सिक्वेंसिंग के लिए भेजे गए सभी कोविड -19 नमूनों में से लगभग आधे की पहचान ओमिक्रॉन के रूप में की गई है.

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नई दिल्ली: देश में सार्स-कोव -2 के वेरिएंट के प्रसार की निगरानी करने वाली जीनोम सिक्वेंसिंग प्रयोगशालाओं के एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क इन्साकोग के नवीनतम बुलेटिन के अनुसार, इस साल जनवरी के बाद से भारत में अनुक्रमित (सेक्वेंसेड) सभी कोविड-19 के नमूनों में से लगभग आधे की पहचान सार्स-कोव -2 वायरस के ओमीक्रॉन संस्करण के साथ हुई है.

इसी बुलेटिन से यह भी पता चलता है कि भारत में बहुत कम रीकॉम्बिनेंट वेरिएंट हैं.

इन्साकोग जनवरी के बाद से अपने साप्ताहिक कोरोनावायरस बुलेटिन को प्रकाशित नहीं कर रहा था, लेकिन मंगलवार को इसने अपनी वेबसाइट पर 11 अप्रैल 2022 की तारीख वाला एक बुलेटिन अपलोड किया, जिसमें यह खुलासा किया गया है कि उस तिथि तक देश भर में कुल 2,40,570 नमूनों की सिक्वेंसिंग की गयी थी. जनवरी के बुलेटिन में यह संख्या 1,50,710 थी.

बीच की अवधि में सेक्वेंसेड 89,860 नमूनों में से 45 प्रतिशत नमूनों (44,100) को ओमीक्रॉन के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जबकि इसी अवधि में डेल्टा संस्करण वाले नमूनों की संख्या 2,705 थी. जनवरी वाले बुलेटिन में केवल 3,007 नमूनों में ही ओमीक्रॉन की पहचान की गई थी.

कुल मिलाकर, डेल्टा संस्करण के मामलों के 2021  में पहली बार सामने आने के बाद से 43,538 नमूनों में इसकी पहचान की गई है, जबकि 5,607 नमूनों में डेल्टा प्लस संस्करण, 4,266 में अल्फा, 220 में बीटा और सिर्फ तीन में गामा संस्करण शामिल है.


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‘कुछ ही रेकॉम्बीनैंट वैरिएंट्स पाए गए’

इन्साकोग बुलेटिन में कहा गया है, ‘जीनोम सिक्वेंसिंग विश्लेषण के आधार पर, भारत में कोविड के बहुत कम पुनः संयोजक स्वरूपों (रेकॉम्बीनैंट वैरिएंट्स) की पहचान की गई है. अब तक, किसी ने न तो बढ़ा हुआ ट्रांसमिशन स्तर (स्थानीय रूप से या अन्य रूप से) दिखाया है न ही इनमें से कोई गंभीर बीमारी या अस्पताल में भर्ती होने से जुड़ा है.’

रेकॉम्बीनैंट वैरिएंट्स तब बन सकते हैं जब किसी वायरस के दो स्वरूप किसी एक ही मेजबान कोशिका (होस्ट सेल) को संक्रमित करते हैं.

नोवेल कोरोनावायरस के मामले में, विभिन्न स्वरूपों के बीच आनुवंशिक सामग्री का आदान-प्रदान मुख्य रूप से उस तरीके के कारण होता है जिसके तहत आरएनए वायरस जीनोम की नकल करते हैं.  नक़ल अथवा प्रतिकृति तैयार होने के दौरान, वे एंजाइम जो प्रतिकृति निर्माण (रेप्लिकेशन) के लिए वायरस का उपयोग करते हैं, विभिन्न स्वरूपों के अंशो को एक साथ कर सकते हैं.

इन्साकोग  के बुलेटिन में इस बात का उल्लेख किया गया है कि दो रेकॉम्बीनैंट वेरिएंट -एक्सडी और एक्सई- की पूरी दुनिया भर में बारीकी से निगरानी की जा रही है.

एक्सडी , जिसमें डेल्टा जीनोम में शामिल ओमीक्रॉन स्वरूप के स्पाइक प्रोटीन में उत्परिवर्तन (म्युटेशन) होता है, मुख्य रूप से फ्रांस में पाया गया है.

इस बीच, एक्सई, ओमीक्रॉन के दो उप- प्रजातियों– बीए.1 और बीए.2 – का एक रेकॉम्बीनैंट है. इसके स्पाइक प्रोटीन जीन सहित अधिकांश जीनोम की पहचान बीए.2 के रूप में हो चुकी है.

इन्साकोग  बुलेटिन में कहा गया है, ‘संदिग्ध रेकॉम्बीनैंट वैरिएंट्स के मामलों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए इसकी संभावित प्रासंगिकता की बारीकी से निगरानी की जा रही है.’

पिछले हफ्ते, आधिकारिक सूत्रों ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया था कि दिल्ली में कोविड -19 मामलों का संक्षिप्त तौर पर से फिर से उभर कर आना संभवतः एक नए संस्करण, बीए.2.12.1 – ओमीक्रॉन की एक और उप- प्रजाति – से जुड़ा था.

हालांकि, इन्साकोग के नवीनतम बुलेटिन में भारत में इस नए संस्करण का पता लगाने का कोई उल्लेख नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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