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Thursday, 3 October, 2024
होमहेल्थरिसर्च में खुलासा, भारतीय महिलाओं में पुरुषों की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा लीवर कैंसर

रिसर्च में खुलासा, भारतीय महिलाओं में पुरुषों की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा लीवर कैंसर

जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरीमेंटल हेपेटोलॉजी में प्रकाशित समीक्षा में यह भी पाया गया है कि महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और गोवा सबसे आम प्रकार के लीवर कैंसर के नए हॉटस्पॉट हैं.

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नई दिल्ली: एक नए विश्लेषण से पता चला है कि भारतीय महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अत्यधिक घातक यकृत कैंसर यानि कि लीवर कैंसर की घटनाएं कहीं अधिक तेजी से बढ़ रही हैं, हालांकि वे अभी भी पुरुषों को अधिक प्रभावित करते हैं.

इस सप्ताह साइंसडायरेक्ट के जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरीमेंटल हेपेटोलॉजी में प्रकाशित भारत में हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा की महामारी विज्ञान – 2024 के लिए एक अद्यतन समीक्षा शीर्षक से समीक्षा में यह भी दिखाया गया है कि बड़ी संख्या में लीवर कैंसर – 30 प्रतिशत मामलों तक – अब बिना लीवर सिरोसिस के देखे जा रहे हैं, जिसे अक्सर लीवर कैंसर का प्रमुख कारण माना जाता है.

हालांकि, समीक्षा में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि देश में ये दरें वैश्विक आंकड़ों की तुलना में कम हैं, लेकिन इन मापदंडों में परिवर्तन की वार्षिक दरें, जिनमें मृत्यु भी शामिल है, भारत में अधिक हैं. वैश्विक स्तर पर, लीवर कैंसर छठा सबसे अधिक बार होने वाला कैंसर है, और कैंसर से संबंधित मौतों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या का कारण बनता है.

अध्ययन में कहा गया है कि 2025 तक, लीवर कैंसर की वैश्विक वार्षिक घटना 10 लाख प्रभावित व्यक्तियों को पार करने का अनुमान है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरल संक्रमण हेपेटाइटिस बी से संबंधित लीवर कैंसर की घटनाओं में कमी आ रही है. हालांकि, शराब और गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोगों से संबंधित मामलों में वृद्धि हो रही है.

ओडिशा में कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर और विश्लेषण के प्रमुख लेखक डॉ. सुप्रभात गिरि ने दिप्रिंट को बताया, “इस समीक्षा का प्राथमिक संदेश यह है कि भारत में लीवर कैंसर का एक बड़ा हिस्सा अब जीवनशैली, आहार और पर्यावरण से प्रेरित है.”

गिरि ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में बीमारी के बदलते महामारी विज्ञान पैटर्न से निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल, जागरूकता अभियान और केंद्रित उपचार सभी आवश्यक हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बीमारी के होने की दर उच्च है.

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चिंता का कारण

लीवर कैंसर से ग्रसित बहुत से लोगों में, यहां तक कि शुरुआती चरणों वाले कैंसर में भी, सापेक्षिक रूप से पांच साल तक जीवित रहने की दर बहुत कम है, जो कि केवल लगभग 36 प्रतिशत है. यदि कैंसर आसपास के ऊतकों/अंगों या क्षेत्रीय लिम्फ नोड्स में फैलता है, तो पांच साल की सापेक्षिक जीवित रहने की दर घटकर मात्र 13 प्रतिशत रह जाती है.

नवीनतम समीक्षा में मुख्य रूप से भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम और रोगों, चोटों और जोखिम कारकों के वैश्विक बोझ अध्ययन के आंकड़ों के अलावा भारत में अन्य अध्ययनों से प्राप्त इनपुट शामिल थे.

इसमें उल्लेख किया गया है कि पूर्वोत्तर राज्यों में एचसीसी से संबंधित घटनाएं, व्यापकता और मृत्यु दर अधिक हैं, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और केरल तीन मापदंडों में परिवर्तन की उच्च वार्षिक दरों के साथ नए हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहे हैं.

गिरि ने कहा, “यह इन स्थानों में तेजी से औद्योगिकीकरण के साथ-साथ अन्य पर्यावरण-संबंधी कारकों के कारण हो सकता है, जिनकी आगे जांच की जानी चाहिए.”

पारंपरिक रूप से, हेपेटाइटिस बी और सी वायरस से संबंधित पुराने लीवर संबंधी रोग एशियाई महाद्वीप में लीवर कैंसर के सबसे आम कारण रहे हैं. हालांकि, नए शोधपत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि गैर-अल्कोहल फैटी लीवर रोग और शराब का दुरुपयोग अब इस कैंसर के सबसे प्रमुख कारण बन रहे हैं.

भारतीय अनुमानों के अनुसार, 2000 से 2019 तक लीवर कैंसर मृत्यु दर का 11वां सबसे आम अनुमानित कारण था- पुरुषों में नौवां सबसे आम और महिलाओं में 12वां. लेकिन शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि 2000 से 2019 के बीच महिलाओं में इस बीमारी के होने का वार्षिक प्रतिशत परिवर्तन पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक था. मृत्यु दर में परिवर्तन की वार्षिक दर पुरुषों में 0.52 और महिलाओं में 0.76 पाई गई.

शोधकर्ताओं ने कहा, “भारत में लीवर कैंसर से मृत्यु दर में पुरुषों में कमी आई है, जबकि महिलाओं में काफी वृद्धि हुई है.”


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