नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा समनवयित किए जा रहे सोलिडैरिटी थेराप्युटिक ट्रायल के अंतरिम नतीजे बताते हैं कि रेमडेसिविर, हाइड्रोक्लोरोक्वीन, लोपिनाविर/रीटनावीर और इंटरफैरॉन का 28 दिन तक कोरोना पीड़ितों को मरने से बचाने में कोई फायदा नज़र नहीं आया. अस्पताल में इलाज करा रहे कोविड मरीज़ों की सेहत पर भी इन दवाईयों का कोई खास असर नहीं दिखा. अभी तक इन्ही दवाओं का इस्तेमाल कोविड के इलाज के लिए किया जा रहा था.
छह महीने तक किया गया ये दुनिया का सबसे बड़ा रैंडम ट्रायल था जिसमें मौजूदा दवाइयों के कोविड के इलाज में प्रभाविकता की जांच की गई.
ये शोध 30 से ज्यादा देशों में किया गया और अलग-अलग ट्रीटमेंट का मृत्यु दर पर क्या असर होता है इसपर शोध किया गया. साथ ही कितने दिन में इन दवाइयों को लेने वाले मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी और इनको कितने दिनों तक अस्पतालों में रहना पड़ा इसका भी आंकलन किया गया. इन दवाओं के अन्य उपयोग जैसे समुदाय में मरीज़ों के रोग से बचाव के लिए इस्तेमाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े सवालों का उत्तर खोजने के लिए दूसरे ट्रायल करने पड़ेंगे.
इस शोध ने ये भी दिखाया है कि महामारी के दौर में बड़े अंतरराष्ट्रीय शोध करना भी संभव है और कोविड से निपटने के लिए उठ रहे सवालों का जवाब खोजने के लिए ये एक अच्छा जरिया हो सकता है.
इस ट्रायल के नतीजो का पुनर्आंकलन किया जाएगा ताकि इनको मेडिकल जर्नल में छापा जा सके और इसे अभी इस वेबसाइट पर डाल दिया गया है.
सोलिडैरिटी ट्रायल नए इलाज के तरीकों का इस ट्रायल से जुड़े 500 अस्पतालों मेंं शोध कर रहा है. नए एंटी वायरल दवाइयों, इम्यूनोमोड्युलेटर और एंटी सार्स-सीओवी-2 मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ पर शोध किया जायेगा.
यह भी पढ़ें: प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ डॉक्टरों ने दिल्ली में कोविड के बढ़ने की चेतावनी दी