नई दिल्ली: कोविड की वैक्सीन के लिए जारी कवायद के बीच अमेरिकी फार्मास्यूटिकल दिग्गज फाइजर ने यह दावा करके खासी हलचल मचा दी है कि एक अंतरिम विश्लेषण के दौरान इसकी वैक्सीन 90 फीसदी तक प्रभावकारी पाई गई है. जबकि दुनिया भर में ज्यादातर टीके विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित 50 फीसदी प्रभावकारिता का बेंचमार्क हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं.
यदि पीर रिव्यू के बजाये एक बयान में किया गया कंपनी का 90 प्रतिशत का दावा आगे भी टिका रहता है तो फाइजर का मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) आधारित यह टीका पोलिया और खसरा जैसे सर्वश्रेष्ठ टीकों के शुरुआती दौर की सफलता वाली स्थिति में आ जाएगा.
अपनी इस रिपोर्ट में दिप्रिंट आपको बता रहा है कि आने वाले समय के लिहाज से इन दावों के क्या मायने हैं और क्यों भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न टीके की प्रभावकारिता नहीं बल्कि इसकी लागत है.
फाइजर ने क्या घोषणा की है?
फाइजर ने सोमवार को एक बयान जारी करके कहा कि इसके एमआरएनए आधारित वैक्सीन कैंडीडेट बीएनटी162बी2 ने दिखाया कि वह ट्रायल में शामिल प्रतिभागियों में से 90 प्रतिशत में सार्स-कोव-2 वायरस का संक्रमण रोकने में प्रभावी है. यह वैक्सीन का पहला अंतरिम विश्लेषण है जिसका कोविड की पुष्टि वाले 94 मामलों में ट्रायल किया गया. अंतिम विश्लेषण 194 मामलों में किया जाएगा.
बीएनटी162बी2 का तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल 27 जुलाई को शुरू हुआ और इसमें अब तक 43,538 प्रतिभागियों को शामिल किया गया है, जिनमें से 38,955 को 8 नवंबर तक वैक्सीन कैंडीडेट की दूसरी खुराक दी गई है.
कंपनी ने अपने बयान में कहा, ‘टीके के जरिये कोविड-19 की गंभीर बीमारी की रोकथाम के अलावा से यह अध्ययन वैक्सीन कैंडीडेट के उन लोगों में कोविड-19 के प्रति सुरक्षात्मक क्षमता का मूल्यांकन भी करेगा, जो पूर्व में सार्स-कोव-2 के संपर्क में आ चुके हैं.
बयान के मुताबिक, ‘प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए अंतरिम विश्लेषण में एंडप्वाइंट आकलन पुष्ट कोविड-19 वाले प्रतिभागियों को दूसरी खुराक के सात दिन बाद किया गया और अंतिम विश्लेषण में एफडीए की मंजूरी के बाद सेकेंडरी एंडप्वाइंट आकलन दूसरी डोज के 14 दिन बाद की स्थिति के आधार पर किया जाएगा.’
जर्मन कंपनी बायोएनटेक के सहयोग से फाइजर द्वारा 2020 में 50 मिलियन वैक्सीन खुराक और 2021 तक वैश्विक स्तर पर 1.3 बिलियन डोज का उत्पादन किए जाने की उम्मीद है.
यह अच्छी खबर क्यों है?
भारत सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में वर्तमान में अधिकांश टीके विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत प्रभावकारिता बेंचमार्क को ध्यान में रखकर तैयार किए जा रहे हैं.
टीके की प्रभावकारिता को सामान्य स्थिति में बिना टीके वाले समूह की तुलना में टीकाकरण कराने वाले लोगों के समूह में बीमारी घटने के प्रतिशत के आधार पर निर्धारित किया जाता है. यह किसी कोविड वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण का पहला अंतरिम विश्लेषण है जिसने फाइजर की वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की सीएचएडीओएक्स1 एनकोव-19 के आगे ला दिया है जिसका मौजूदा समय में भारत सहित कई देशों में तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है.
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वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल साइंसेज डिपार्टमेंट में प्रोफेसर और ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की पूर्व कार्यकारी निदेशक डॉ. गगनदीप कंग, जो कोविड-19 कार्यबल में भी शामिल रही हैं, ने माना कि नतीजे काफी आश्चर्यजनक हैं.
हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि प्रभावकारिता आम तौर पर अंतिम विश्लेषण में थोड़ी कम ही रह जाती है.
डॉ. कंग ने कहा, ‘यह बहुत अच्छी खबर है लेकिन यह एक बयान है. जब आप कोई वैक्सीन तलाशते हैं तो यही चाहते हैं कि बीमारी को रोकने वाली हो हो और आप यह भी चाहते हैं कि यह गंभीर बीमारी से बचा सके. आमतौर पर दोनों साथ ही आते हैं लेकिन मैं निश्चित रूप से गंभीर बीमारी से निपटना चाहती हूं. और यह भी कि ये कितने समय तक प्रतिरोधक क्षमता मुहैया कराएगी. यह अध्ययन शुरुआती है और इसमें प्रभावकारिता बेहतर दिख सकती है. लेकिन लंबी अवधि में इसके प्रभावी होने के दर गिर सकती है. मुझे बहुत संदेह है कि यह 90 प्रतिशत पर टिकी रहेगी. लेकिन फाइजर 60 फीसदी प्रभावकारिता का लक्ष्य बना रहा था, यह निश्चित रूप से हासिल हो सकेगा. आम तौर पर अंतिम विश्लेषण में प्रभावकारिता में 4-5 प्रतिशत की कमी आती है.’
डॉ. कंग ने कहा कि यह तथ्य कि वैक्सीन के बारे में जितना सोचा गया था उससे ज्यादा प्रभावशाली निकली है, अन्य सभी टीकों के लिए उम्मीद जगाता है. हालांकि, एमआरएनए टीकों को अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है लेकिन इन्हें एफडीए की तरफ से निर्धारित दो महीने के सुरक्षा उपायों पर खरा उतरना पड़ता है.
अन्य टीके भी दौड़ में शामिल
दुनियाभर में कई टीकों पर आखिरी चरण का परीक्षण जारी है. इनमें भारत में बायोटेक, जाइडस कैडिला और सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा किए जा रहे तीन परीक्षण शामिल हैं. इसके अलावा गामलेया इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित की जा रही रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-वी और कैन्सिनो बायोलॉजिक्स की चीनी वैक्सीन भी है, और वह वैक्सीन भी है जिसे मॉडर्न थेरेप्यूटिक्स ने विकसित किया है और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज में ट्रायल के चरण में हैं. आखिरी वाली वैक्सीन भी फाइजर की ही तरह एमआरएनए आधारित है.
जब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि अंतत: कौन-सा टीका सबसे पहले आखिरी मुकाम पर पहुंचेगा, भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह भी होगा कि टीके की लागत कितनी आएगी.
एमआरएनए टीके आमतौर पर महंगे होते हैं और मॉडर्ना वैक्सीन के बारे में शुरुआती अनुमान 37 डॉलर (लगभग 2,750 रुपये) है. सीरम की तरफ से 3 डॉलर (लगभग 220 रुपये) के वादे की तुलना में करीब 1.3 बिलियन आबादी के टीकाकरण के मद्देनजर उसकी वैक्सीन की लागत कम से कम दस गुना बढ़ सकती है. एमआरएन टीकों को स्टोर करना भी अधिक कठिन होता है क्योंकि उन्हें माइनस 80 डिग्री के तापमान पर रखने की जरूरत होती है.
एमआरएनए टीका कैसे काम करता है?
एमआरएनए या मैसेंजर आरएनए प्रोटीन का उत्पादन करने वाले राइबोसोम के न्यूक्लियस तक संबंधित प्रोटीन के निर्माण का कोड पहुंचाने का काम करते हैं. कोविड के मामले में आइडिया यह है कि कोशिकाओं को सार्स-कोव-2 बढ़ाने वाले प्रोटीन के बारे में जानकारी पहुंचाई जाए जिसके आधार पर शरीर एंटीबॉडी तैयार कर सकता है ताकि जब वास्तव में इसका संक्रमण हो तो तेजी से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया हो और बीमारी की रोकथाम की जा सके.
एमआरएनए और डीएनए वैक्सीन दोनों की ही अन्य वैक्सीन की अपेक्षा अधिक सुरक्षित माना जाता है.
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