नई दिल्ली: हम अक्सर ही यह देखते या सुनते हैं कि माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल में लगने वाले समय, ऊर्जा और संसाधनों के कारण खुद के लिए समय नहीं निकाल पाते और जिसकी वज़ह से वो ‘पेरेंटल बर्नआउट’ की समस्या का शिकार हो जाते है.
‘पेरेंटल बर्नआउट’ एक तरह की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक थकावट है जो कि बच्चों के लगातार देख-भाल के कारण उत्पन्न तनाव की वजह से पैदा होती है.
रिसर्च के अनुसार ‘पेरेंटल बर्नआउट’ की समस्या विश्व के विभिन्न समुदायों एवं संस्कृतियों में मौजूद है. यह दुनिया भर के देशों में पाई जाने वाली समस्या है तथा पोलैंड, अमेरिका एवं बेल्जियम में बड़ी संख्या में माता-पिता इससे जूझ रहे हैं.
ऐसा कहा और माना जाता हैं कि थोड़ा आराम करके और कुछ देर सोकर इस समस्या से से बचा जा सकता हैं, लेकिन सच्चाई ऐसी नहीं है. पेरेंटल बर्नआउट से बचना या फिर इसका इलाज इतना आसान नहीं हैं.
पेरेंटल बर्नआउट के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि अपने पालन-पोषण के तरीकों को लेकर शर्मिंदा होना या यह सोचना कि आप उतने अच्छे माता-पिता नहीं बन पा रहे, जितने अच्छे आप बनना चाहते हैं या फिर पहले थे. माता-पिता की जिम्मेदारी को लेकर ‘परेशान’ होना इसके बारे में बार बार सोचना और अपने बच्चों से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ महसूस नहीं करना.
हालांकि कई लोग ऐसे संकेत महसूस करते हैं, लेकिन हालिया शोध में पता चला है कि 60 प्रतिशत माता-पिता आराम करने और स्वयं को फिर से ऊर्जावान बनाने के लिए कुछ नहीं करते है.
रिसर्च से पता चलता है कि पांच में से दो माता-पिता को लगता है कि थकान के कारण वे उस तरह के माता-पिता नहीं बन पाते, जैसे वे बनना चाहते हैं. लगभग आधे माता-पिता सोचते हैं कि सब कुछ करने के लिए दिन में पर्याप्त समय नहीं है और यही समस्या है कि माता-पिता के लिए अपने लिए समय नहीं निकाल पाते है.
लेकिन जब वे ऐसा करते हैं, तो इसका उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इससे उन्हें पालन-पोषण से जुड़ी मांगों को पूरा करने में मदद मिलती है और इससे बच्चों और परिवारों को भी लाभ होता है.
खुद की तुलना दूसरों से न करें
ऐसे काफी सारे तरीके है जिसे अपनाकर माता पिता अपनी थकान, तनाव को दूर कर सकते हैं. माता पिता को हमेशा अपने प्रति कम आलोचनात्मक होना चाहिए और खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए.
उन्हें हमेशा अपने द्वारा की गयी देखभाल को महत्वपूर्ण समझना चाहिए और अपने और अपने बच्चों पर काम करते रहना चाहिए. माता पिता को यह याद रखना कि हर रोज अपने लिए थोड़ा समय निकाले.
यह स्वीकार करना अहम है कि आमतौर पर बच्चों की देखभाल का अधिक भार महिलाएं उठाती हैं और उनके जीवनसाथियों, नियोक्ताओं और परिवार को बर्नआउट के संकेतों पर नज़र रखनी चाहिए और उनके कहने से पहले ही मदद की पेशकश करनी चाहिए.
प्रतिस्पर्धा के इस दौर में महिलाएं भी घर से बाहर निकल कर काम करती हैं. इस स्थिति में उनके लिए विभिन्न भूमिकाओं में सामंजस्य बनाए रखना बहुत मुश्किल होता है. यदि उन्हें जीवनसाथियों, नियोक्ताओं और परिवार की ओर से कुछ सहयोग मिल जाए तो बहुत बड़ी समस्या दूर की जा सकती है.
माता-पिता या देखभाल करने वाले होने की वास्तविकताओं के आसपास माता-पिता का बर्नआउट एक बड़ी बातचीत का एक हिस्सा है. बर्नआउट के कारण अक्सर कई होते हैं, जैसे समर्थन की कमी, जिम्मेदारी का उच्च स्तर, प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव, बूढ़े माता-पिता की देखभाल और वित्तीय चिंताएं.
माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए बर्नआउट के संकेतों के प्रति सचेत रहना और जहां जरूरत हो वहां मदद लेना बहुत जरुरी होता है.
(भाषा के इनपुट्स के साथ)
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