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Thursday, 28 March, 2024
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ओमीक्रॉन से बचाव के लिए N-95 मास्क खरीद रहे हैं? ऐसे पता करें कि कौन-सा मास्क लेना सही है

सरकारी दिशानिर्देश इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं करते हैं कि किस तरह की सेटिंग में कौन-सा मास्क उपयुक्त हैं, या नकली मास्क को कैसे पहचानें. लेकिन ऐसे मानकीकृत लोगो और मार्क होते हैं जिनसे सही मास्क की पहचान की जा सकती है.

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नई दिल्ली: कोविड-19 के मामले तेजी से बढ़ने के साथ ही महामारी की पहली और दूसरी लहरों की तरह ही फिर ऐसी चिंताएं जोर पकड़ने लगी हैं कि संक्रमण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए.

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, ओमीक्रॉन वैरिएंट के दौर के बीच देश में 19 जनवरी को 3,17,532 नए मामले दर्ज किए गए हैं.

कोविड-19 के मद्देनजर कार्यस्थल, रेस्तरां और जिम जैसे कॉमन और सार्वजनिक स्थलों में सावधानी बरतने संबंधी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के विस्तृत दिशानिर्देशों में मास्क पहनना सबसे महत्वपूर्ण उपायों में शामिल है.

बाजार भी तमाम तरह के मास्क से भरे पड़े हैं, लेकिन सरकारी दिशानिर्देश यह स्पष्ट नहीं करते हैं कि कौन-से मास्क किस सेटिंग के लिए सही हैं, या फिर नकली उत्पादों की पहचान कैसे की जाए.

विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोनावायरस के ओमीक्रॉन वैरिएंट के तेजी से फैलने की क्षमता को देखते हुए सर्जिकल मास्क की तुलना में एन-95 मास्क अधिक प्रभावी हैं, क्योंकि इससे संक्रमण की चपेट में आने का खतरा काफी कम हो जाता है.

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एन-95, केएन-95, एफएफपी-2 के बीच क्या अंतर है?

आमतौर पर मास्क की मार्केटिंग के संदर्भ में ‘एन-95’ सबसे ज्यादा चर्चित शब्द है जिसका आशय ऐसे मास्क से होता है जो हवा में मौजूद 95 फीसदी हानिकारक कणों को फिल्टर कर सकता है. चूंकि ये प्रदूषक तत्वों और माइक्रोब्स को बहुत हद तक फिल्टर कर सकते हैं इसलिए वायरस, बैक्टीरिया और प्रदूषण आदि से अधिकतम सुरक्षा के लिए ऐसे मास्क की ही सिफारिश की जाती है.

दरअसल, ‘एन-95’ शब्द इस विशेष श्वासयंत्र के लिए एक अमेरिकी सर्टिफिकेशन मानक के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है. ‘केएन-95’ और ‘एफएफपी-2’ मास्क भी 95 प्रतिशत पार्टिकल को फिल्टर करने में समान तरह से काम कर करते हैं लेकिन ये दूसरे देशों में प्रमाणन के मानक है. केएन-95 मानका जहां चीन में इस्तेमाल होता है, एफएफपी-2 यूरोप का मानक है.

एन-95 मास्क बनाने वाली दिल्ली स्थित कंपनी पार्को एब्रेसिव्स के मैनेजिंग पार्टनर प्रशांत अग्रवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत में इन मास्क के लिए हमारे अपने मानक हैं, जो भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा तय किए गए हैं. मास्क के संबंध में उनकी एक तय चेकलिस्ट होती है और उत्पाद को जांच में उसके अनुरूप पाए जाने के बाद ही मैन्युफैक्चरर को लाइसेंस मिलता है.’

95 प्रतिशत पार्टिकल के फिल्टर में सक्षम श्वसनयंत्रों के लिए बीआईएस का मानक ‘आईएस-9473’ है. ये मास्क चार से पांच लेयर में बने होते हैं और कम के कम तीन तरह की सामग्री का इस्तेमाल होता है—नॉन वूवेन फैब्रिक, मेल्ट-ब्लोन फिल्टर और हॉट एयर कॉटन.

एक अन्य एन-95 मास्क निर्माता कंपनी ऑक्सीगार्ड वेंचर्स के संस्थापक तरुण गोयल ने बताया, ‘इन मास्क का मानवीय दखल के बिना एक लैब टेस्ट किया जाता है. बीआईएस ने क्लॉगिंग, क्लीनिंग और डिसइंफेक्शन के टेस्ट और मास्क में इस्तेमाल कपड़ों की जांच के लिए अपने मानक तय कर रखे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर तो एन-95 और केएन-95 मास्क के बीच कोई खास अंतर नजर नहीं आता है. अंतर केवल विभिन्न देशों में जांच के अलग-अलग तरीकों और मानकों के कारण होता है.

कैसे पता करें कि मास्क मानकों के अनुरूप है

एक नजर में यह पता लगाना तो मुश्किल है कि एन-95 मास्क प्रामाणिक है या नकली, लेकिन कुछ ऐसे मार्क होते हैं जिन्हें देखकर इसका पता लगाया जा सकता है.

अमेरिकी सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की तरफ से अनुमोदित एन-95 मास्क पर स्पष्ट तौर पर ‘एनआईओएसएच’ का लेबल होना चाहिए, जिसका फुल फॉर्म है नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ. यह एक शोध एजेंसी है जो वर्कर्स सेफ्टी पर काम करती है. उसमें एक अल्फान्यूमेरिक टेस्टिंग कोड और मॉडल टाइप भी अंकित होना चाहिए जो स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा हो.

असली एन-95 मास्क में आमतौर पर उपलब्ध होने वाले इयरलूप की बजाये इलास्टिक के साथ हेडलूप होंगे, क्योंकि वे नाक और मुंह पर अच्छी तरह से फिट हो जाते हैं.

कुछ सीडीसी-अनुमोदित एन-95 मास्क भारत में भी उपलब्ध हैं. 3एम और हनीवेल जैसे ब्रांड ‘एनआईओएसएच’ मार्क वाले एन-95 मास्क पेश करते हैं.

पार्को एब्रेसिव्स के अग्रवाल ने कहा, ‘कोई भी एन-95 मास्क जिसमें फिर इस्तेमाल योग्य होने का दावा किया जाता है, वो भी नकली होने की संभावना है, क्योंकि मास्क के अंदर इस्तेमाल मेल्ट-डाउन फिल्टर धोने से नष्ट हो जाएगा.’ साथ ही जोड़ा, ‘आम तौर पर आपको एन-95 मास्क का बार-बार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. लेकिन उन्हें हटाने से पहले एक बार में पांच दिनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है.’

Graphic: Ramandeep Kaur/ThePrint

2020 में चीनी सरकार ने केएन-95 मास्क पर ‘जीबी 2626-2019’ कोड अंकित करना अनिवार्य कर दिया था ताकि पता लग सके कि वे चीन के नए मानकों को पूरा करते हैं. प्रामाणिक केएन-95 ईयरलूप और हेडलूप दोनों में उपलब्ध हो सकते हैं लेकिन बाजार में मौजूद अधिकांश मास्क ईयरलूप वाले हो सकते हैं, जिन्हें सही फिट न होने के कारण इस्तेमाल न करने की सलाह दी जाती है. सीडीसी ने कथित तौर पर पाया है कि अमेरिकी बाजार में उपलब्ध 60 प्रतिशत केएन-95 मास्क नकली थे.

प्रामाणिक एफएफपी-2 मास्क पर स्पष्ट तौर पर ‘एफएफपी-2’ अंकित होना चाहिए और जिसके साथ ‘सीई’ चिह्न और चार अंकों का कोड भी लिखा होना चाहिए.

बीआईएस मानकों का पालन करने वाले भारतीय निर्माता उन उत्पादों पर मानक आईएसआई (भारतीय मानक संस्थान) लोगो उपयोग कर सकते हैं, जिन्हें एक कोड संख्या (इस मामले में आईएस 9473) के साथ लाइसेंस मिला हो. किसी उत्पाद पर ‘एनआईओएसएच’ या ‘बीआईएस’ के मार्क का इस्तेमाल नहीं किया गया हो तो इसका मतलब है कि उसे किसी भी निकाय से अनुमोदित नहीं किया गया है और ऐसे उत्पाद गैर-प्रामाणिक हो सकते हैं.

गलत स्पेलिंग का इस्तेमाल इसका स्पष्ट संकेत हैं कि वह मास्क मानकों के अनुरूपप नहीं है. इसके अलावा, एक्सहेलेशन वाल्व वाले मास्क के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि सीडीसी के मुताबिक यह संक्रमण फैलाने में सहायक हो सकते हैं.

यूएस सीडीसी की वेबसाइट पर प्रामाणिक मास्क निर्माताओं की एक सूची उपलब्ध है और इन निर्माताओं के लिए अपने उत्पाद पर इसके अनुसार मार्क करना अनिवार्य है. देश में भी कपड़ा मंत्रालय की वेबसाइट पर एन-95 और एफएफपी-2 मास्क के अधिकृत निर्माताओं की सूची मौजूद है.

डबल-मास्किंग पर

डबल-मास्किंग पर सीडीसी की सिफारिश है कि सर्जिकल मास्क को अच्छी तरह से फिट और उपयोगी बनाने के लिए उसके साथ कपड़े के मास्क को इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसमें यह आगाह भी किया गया है कि दो सर्जिकल मास्क पहनना अनुपयोगी है, और सर्जिकल मास्क के साथ केएन-95 या एन-95 मास्क का इस्तेमाल न करने की भी सिफारिश की गई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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