नई दिल्ली: जापानी वैज्ञानिकों ने पहली बार चावल को जेनेटिकल मॉडीफाई करके उससे तैयार अनाज को पीसकर हैजे से बचाने के लिए एक नया टीका ‘ड्रिंक’ विकसित किया है. द लांसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, पहले ह्यूमन ट्रायल में इम्युनिटी पर इसकी अच्छी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दिखी है.
म्यूकोराइस-सीटीबी नाम से जाने जाने वाले इस टीके को जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी और चिबा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने विकसित किया है और इस वैक्सीन के पहले चरण के क्लीनिकल ट्रायल में कोई स्पष्ट दुष्प्रभाव नहीं दिखा है. इसका ट्रायल 23 जून 2015 से 31 मई 2016 के बीच किया गया.
म्यूकोराइस-सीटीबी वैक्सीन सामान्य तापमान पर स्थिर रहती है, जिससे पारंपरिक टीकों, जिनके लिए अक्सर कोल्ड स्टोरेज चेन की जरूरत पड़ती है- की तुलना में इसे वितरित किया जाना आसान है.
परीक्षण के दौरान 30 वालंटियर को एक प्लेसीबो दिया गया और दस-दस वालंटियर के तीन समूहों को हर दो हफ्ते में टीके की कुल चार खुराक दी गईं. द लांसेट में 25 जून को प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि तीनों समूहों को अलग-अलग क्षमता की खुराक क्रमशः 3 मिलीग्राम, 6 मिलीग्राम और 18 मिलीग्राम (प्रति खुराक) दी गई.
आखिरी खुराक दिए जाने के दो और चार महीने बाद किए गए परीक्षणों से पता चला कि जिन वालंटियर पर इसकी प्रतिक्रिया हुई (30 वालंटियर में से 11 ने प्रतिक्रिया दी) उनमें हैजा टॉक्सिन बी (सीटीबी) का मुकाबला करने वाले विशिष्ट एंटीबॉडी थे. जिन वालंटियर को टीके की हाई डोज दी गई, उनमें सीटीबी-स्पेशिफिक एंटीबॉडी होने की संभावना अधिक थी.
म्यूकोराइस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाले टोक्यो यूनिवर्सिटी के हिरोशी कियोनो ने कहा, ‘मैं अपनी म्यूकोराइस-सीटीबी वैक्सीन के भविष्य को लेकर बहुत आशावादी हूं, खासकर खुराक बढ़ाए जाने से सामने आए नतीजों को देखते हुए. वालंटियर ने वैक्सीन की लो, मीडियम और हाई डोज पर प्रतिक्रिया दी और इम्युनिटी पर सबसे ज्यादा असर हाई डोज का दिखा.’
हैजे का बैक्टीरिया ज्यादातर सीवेज के कारण दूषित हुए पानी को पीने से फैलता है. अगर इलाज में लापरवाही बरती जाए तो दस्त के कारण पानी की गंभीर कमी होने से हैजा कुछ ही घंटों में जानलेवा साबित हो सकता है.
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ड्रिंक मौजूदा टीकों की तुलना में कैसे बेहतर है
रिसर्च टीम के मुताबिक, चार आधुनिक टीके हैं जिनमें सुई लगाने की जरूरत नहीं होती और उन्हें ड्रॉप के तौर पर दिया जाता है लेकिन इनके लिए कोल्ड स्टोरेज की जरूरत पड़ती है. ये सभी हैजे की कोशिकाओं को पूरी तरह से नष्ट या कमजोर करके बनाए जाते हैं.
हैजे का नया टीका आनुवंशिक रूप से संशोधित जापानी शॉर्ट-ग्रेन चावल के पौधों से तैयार होता है जो कि सीटीबी के एक गैर-विषाक्त हिस्से का उत्पादन करता है और इम्यून सिस्टम इसकी पहचान कर लेता है.
शोधकर्ताओं ने एक इनडोर हाइड्रोपोनिक फार्म में चावल के पौधे उगाए, जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि वैक्सीन दूषित न हो पाए और पौधे प्राकृतिक वातावरण से एकदम अलग-थलग रहें.
पौधों ने अपने बीजों यानी खाद्य अनाज चावल में सीटीबी सबयूनिट का उत्पादन किया और एंटीजन को वसा से बनी झिल्ली के साथ प्रोटीन बॉडी कही जाने वाली बूंदों में संग्रहित किया.
डॉ. कियोनो ने कहा, ‘चावल की प्रोटीन बॉडी शरीर में एक प्राकृतिक कैप्सूल की तरह व्यवहार करती है, जिससे एंटीजन इम्यून सिस्टम तक पहुंचते हैं.’
जब पौधे बड़े हो जाते हैं, तो इससे निकलने वाले चावल को पीसकर महीन पाउडर बना लिया जाता है, फिर एल्यूमीनियम के पैकेट में सील करके स्टोर कर दिया जाता है. जब लोग टीकाकरण के लिए तैयार होते हैं, तो पाउडर को लगभग 90 मिलीलीटर लिक्विड के साथ मिला लिया जाता है और टीके को ओरल फॉर्म दिया जाता है.
शोधकर्ताओं ने अभी तक केवल सलाइन के साथ मिलाकर टीके का ट्रॉयल किया है लेकिन उन्हें उम्मीद है कि यह सादे पानी के साथ भी समान रूप से अच्छी तरह काम करेगा.
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यह काम किस प्रकार करता है
म्यूकोराइस-सीटीबी आंतों की म्यूकोसल मेंब्रेन (रोगाणुओं के खिलाफ शरीर की पहली श्रेणी की प्रतिरक्षा) के जरिये शरीर में पहुंचता है, जो कीटाणुओं से लड़ने और उससे बचाने में एकदम प्राकृतिक तरीके से काम करता है. म्यूकोसल इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करने पर दो श्रेणी के एंटीबॉडी, आईजीजी और आईजीए, उत्पन्न होते हैं जो कीटाणुओं की पहचान करते हैं और उन्हें हटाना सुनिश्चित करते हैं. जो टीके त्वचा के नीचे या मांसपेशियों में इंजेक्ट किए जाते हैं, वो आमतौर पर केवल आईजीजी एंटीबॉडी बढ़ाते हैं, आईजीए नहीं.
हालांकि, टीका लेने वाले 30 वालंटियर में से 11 ने कम या एकदम औसत दर्जे की ही प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दिखाई.
सभी वालंटियर के मल के नमूनों के व्यापक आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला है कि जिन लोगों में अधिक विविध गट माइक्रोबायोम थे, उन्होंने टीकों पर ज्यादा बेहतर प्रतिक्रिया दी.
चूंकि अध्ययन वालंटियर के एक छोटे-से समूह पर किया गया था, इसलिए यह समझने के लिए और शोध की जरूरत है कि आंतों में पाए जाने वाले माइक्रोब्स टीके की प्रभावकारिता पर कैसे असर डालते हैं.
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