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Sunday, 3 November, 2024
होमहेल्थ'मोदी, शाह, खट्टर रैलियां, मीटिंग करते हैं लेकिन हम काम नहीं कर सकते?’- हरियाणा के गांवों में लॉकडाउन का बहिष्कार

‘मोदी, शाह, खट्टर रैलियां, मीटिंग करते हैं लेकिन हम काम नहीं कर सकते?’- हरियाणा के गांवों में लॉकडाउन का बहिष्कार

हरियाणा के आठ गांवों का कहना है कि लॉकडाउन का मतलब है भूख और गरीबी से मर जाना. कई अन्य भी किसान आंदोलन को लेकर ‘सत्तारूढ़ दल का बहिष्कार’ करना चाहते हैं.

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जींद/कैथल/हिसार: मेवा सिंह नियमों को चुनौती दे रहे हैं. हरियाणा में कोविड-19 मामले बढ़ने के कारण लॉकडाउन 31 मई तक कर दिया गया है लेकिन मेवा सिंह जींद जिले के करसिंधु गांव में अपनी छोटी-सी दुकान खोलते हैं, जहां वे घास काटने वाली मशीनों की मरम्मत और ऑयलिंग करते हैं.

यदि क्षेत्र में गश्त करने वाला कोई पुलिसकर्मी उसे दुकान बंद करने को कहता है, तो 68 वर्षीय ये बुजुर्ग गाली-गलौज करने पर उतर आते हैं और फिर लौटकर अपना काम शुरू कर देते हैं.

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के गढ़ में शुमार करसिंधु में मेवा सिंह और उनके जैसे कई लोगों के लिए लॉकडाउन का मतलब भूख और गरीबी से मर जाना है, खासकर दिहाड़ी मजदूरों के लिए राज्य में कोई व्यवस्था न होने के कारण.

लॉकडाउन का उल्लंघन किसान आंदोलन से जुड़े कई लोगों के लिए ‘सत्तारूढ़ पार्टी और उसके नेताओं के बहिष्कार’ का एक तरीका भी है, जिन पर वे आंदोलन खत्म कराने की कोशिश में फर्जी मामले दर्ज करके ‘उनकी पीठ में छुरा घोंपने’ का आरोप लगाते हैं.

इसके अलावा, लॉकडाउन के बीच मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के हिसार में एक कोविड फैसिलिटी का उद्घाटन करने पहुंचने के दौरान वहां करीब 400 लोगों की मौजूदगी का भी राज्य में अच्छा संदेश नहीं गया है.

इन सभी मुद्दों पर राज्य प्रशासन के प्रति गुस्से ने जींद, कैथल और हिसार के आठ गांवों के लोगों को ‘लॉकडाउन का बहिष्कार’ करने और कोविड केयर और टेस्टिंग सेंटर जैसी ‘राज्य की किसी भी पहल’ का विरोध करने के लिए प्रेरित किया है.

मेवा सिंह पूछते हैं, ‘क्या सरकारें केवल फरमान जारी करने के लिए हैं ?’

मेवा सिंह इस बार कुछ गालियों के बीच सवालिया लहजे में कहते हैं, ‘एक दिन उनकी आंख खुलती है और वो लॉकडाउन घोषित कर देते हैं. अगर हम इसका उल्लंघन करें तो हमें मारने के लिए पुलिसकर्मियों को भेजते हैं. अगर हम बाहर नहीं निकलेंगे तो अपने भोजन की व्यवस्था कैसे करेंगे? अगर सरकार मुझे मेरी दिहाड़ी दिला दे तो मैं दुकान बंद करके घर लौट जाऊं. क्या वे ऐसा करेंगे?’

Mewa Singh's shop in Karsindhu village in Haryana. | Photo: Reeti Agarwal/ThePrint
हरियाणा के करसिंधु गांव में मेवा सिंह की दुकान | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

उन्होंने आगे कहा, ‘वे कहते हैं कि यह एक घातक बीमारी है, डॉक्टर कहां हैं… और दवाएं? सरकार के बनाए कोविड केयर सेंटर में स्टाफ नहीं होने के कारण बड़ा-सा ताला लटका रहता है. हमें इन नेताओं की बात क्यों सुननी चाहिए, जबकि हम उनके लिए कोई मायने ही नहीं रखते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘बहुत संभव है कि वायरस हमारी जान ले ले लेकिन हम काम पर बाहर नहीं गए तो यह भूख तो निश्चित रूप से हमें मार डालेगी.’

दिप्रिंट की टीम ने तीन गांवों- जींद में करसिंधु और कैथल में सोंगल और पाई का दौरा किया, जिन्होंने लॉकडाउन के बहिष्कार का आह्वान कर रखा है. इसके अलावा पांच गांवों ने भी बहिष्कार कर रखा है जिसमें जींद में दानौदा कलां और दहोला, हिसार का मसूदपुर और दत्ता और कैथल का खड़क पांडव शामिल है.


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‘हमें गांव के अंदर नहीं जाने दिया गया’

सोंगल और पाई में तो ग्रामीणों ने अधिकारियों को कोविड केयर सेंटर या टेस्टिंग सेंटर तक स्थापित नहीं करने दिया.

इस महीने के शुरू में जब राज्य के स्वास्थ्य विभाग की एक टीम मुख्य चिकित्सा अधिकारी और तहसीलदार के साथ सोंगल गई तो उन्हें वापस लौटा दिया गया.

टीम में शामिल राजस्व अधिकारी धर्मवीर बताते हैं, ‘हम गांव में बेड, गद्दे और अन्य सामान लेकर पहुंचे थे ताकि अगर गांव वालों में कोविड जैसे कोई लक्षण दिखें तो उन्हें क्वारेंटाइन किया जा सके. लेकिन लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया और हमें वापस लौटना पड़ा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने उन्हें समझाने की लाख कोशिशें की कि वायरस ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैल रहा है और कई लोग बीमार पड़ रहे हैं लेकिन उन्होंने हमें अंदर घुसने तक नहीं दिया. उसके बाद फिर हम नहीं गए.’

लेकिन स्थानीय लोग अपने विरोध की वजह अधिकारियों को बताते हैं.

सोंगल की एक किसान उषा देवी कहती हैं, ‘अब हम उन पर क्यों भरोसा करें? अगर वे इतने ही अच्छे होते तो यहां के स्वास्थ्य केंद्र में पेशेवर डॉक्टर नहीं होते. लेकिन यह महज एक इमारत भर है. यह सब भी एक दिखावा है. हमें उनकी मदद की जरूरत नहीं है. अब तक, अपने दम पर व्यवस्था करते आए हैं तो आगे भी इसे संभाल सकते हैं.’

कुछ ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने किसानों के आंदोलन पर नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जताने के लिए टीम को बैरंग वापस लौटाया था.

इसी गांव के एक अन्य किसान शेर सिंह का कहना है, ‘जब वे हमारा समर्थन नहीं करते हैं, तो हम भी उनकी बात क्यों सुनें. अगर हमारी लड़ाई में वो हमारा साथ देते है और कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया जाता है तो हम सभी टीकाकरण कराएंगे और सरकार जो कहेगी, उसे सुनेंगे.’

Farmers in Songal village in Haryana. | Photo: Reeti Agarwal/ThePrint
हरियाणा के सोंगल गांव के किसान | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

‘कोविड महज एक कल्पना है’

पाई में पिछले महीने हुई एक पंचायत में तय किया गया था कि कोई भी टेस्ट नहीं कराएगा. उनका कहना है कि यह कदम ग्रामीणों की ‘मानसिक शांति’ सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था.

पाई गांव के एक किसान राम मेहर सिंह ने कहा, ‘एक पंचायत हुई थी, जिसमें यह तय किया गया कि किसी का टेस्ट नहीं किया जाएगा. यह कोविड और कुछ नहीं बल्कि कल्पना की उपज है. यदि किसी व्यक्ति का टेस्ट हुआ और रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो वह व्यक्ति डर से ही मर जाएगा. साथ ही हमें इस सरकार पर भरोसा नहीं है. वे हमें हमारे घरों में बंद रखने के लिए भी पॉजिटिव बता सकती है.’

अधिकारियों की ओर से काफी समझाने-बुझाने के बाद पाई ने इस महीने की शुरुआत में गांव के बाहर कोविड केयर सेंटर बनाने दिया है.

राम मेहर कहते हैं, ‘हमने उन्हें गांव में प्रवेश नहीं करने दिया. हमने उन्हें ‘नकारात्मकता’ का केंद्र गांव के बाहर ही रखने को कहा. वहां भी उन्होंने सिर्फ बेड और कुछ गद्दे लगाए हैं लेकिन कोई मदद उपलब्ध न होने के कारण कोई वहां जाता नहीं है. ये अधिकारी सिर्फ कागज पर काम दिखाना चाहते हैं.’

Locked Covid care facility set up in Karsindhu village. | Photo: Reeti Agarwal/ThePrint
हरियाणा के करसिंधु गांव में स्थित कोविड केयर सेंटर जो बंद पड़ा है | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

‘केवल गरीबों ने फैलाया वायरस?’

जींद, हिसार और कैथल के ग्रामीणों के मुताबिक 16 मई को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का अपनी पार्टी के सदस्यों के साथ हिसार में एक कोविड फैसिलिटी सुविधा का उद्घाटन करने आना भी बहिष्कार का एक कारण था.

इलाके के किसानों की पुलिस से झड़प हुई थी, जिसमें दोनों पक्षों के दर्जनों लोग घायल हुए थे. उनके खिलाफ 300 से अधिक एफआईआर दर्ज की गईं और कई को हिरासत में भी लिया गया था.

सोंगल के एक किसान मंजीत करोरा कहते हैं, ‘अगर खट्टर 400 लोगों को इकट्ठा करके लॉकडाउन तोड़ते हैं, तो ठीक है. गृह मंत्री (अमित शाह) और प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) बंगाल में रैली कर सकते हैं, तब भी ठीक है. तब कोरोना नहीं है. लेकिन हम अपनी जीविका चलाने के लिए बाहर निकलते हैं, तो लाठियां बरसाई जाती हैं, हमारे खिलाफ मामले दर्ज होते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अब, हम इस सरकार से कुछ नहीं चाहते हैं क्योंकि यह सब बस दिखावा है. गरीबों को ही क्यों भुगतना चाहिए? क्या कोरोना केवल गरीबों को मारता है, राजनेताओं को नहीं?’

खट्टर के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग को लेकर भारतीय किसान यूनियन ने हरियाणा पुलिस के पास औपचारिक तौर पर शिकायत भी दर्ज कराई है.

जींद में भारतीय किसान यूनियन के जिला प्रधान आजाद पहलवान ने कहा, ‘यह तो मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लॉकडाउन का उल्लंघन किया. महामारी के दौरान उन्हें 400 लोगों के साथ उद्घाटन करने आने की क्या जरूरत थी? उनके खिलाफ ही धारा 144 और आपदा प्रबंधन अधिनियम के उल्लंघन का मामला दर्ज किया जाना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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