scorecardresearch
Wednesday, 15 May, 2024
होमहेल्थमानव मल के भी अपने फायदे- कैंसर और लीवर की बीमारी का नया इलाज बना फीकल ट्रांसप्लांट

मानव मल के भी अपने फायदे- कैंसर और लीवर की बीमारी का नया इलाज बना फीकल ट्रांसप्लांट

विश्व स्तर पर कई अस्पतालों में इस्तेमाल किए जाने वाला यह ट्रीटमेंट गट बैक्टीरिया को बहाल करता है और आंत व पेट के स्वास्थ्य में सुधार लाता है. केरल का एक इंस्टीट्यूट शराब की वजह से होने वाले हेपेटाइटिस के इलाज में इसका नियमित इस्तेमाल कर रहा है.

Text Size:

बेंगलुरू: करीब साढ़े तीन साल पहले जोसेफ की हालत काफी खराब थी. वह केरल के अलुवा के राजागिरी अस्पताल में ‘सेमी-कोमा’ में पड़े थे. उन्हें शराब संबंधित हेपेटाइटिस (अल्कोहल एसोसिएटिड हेपेटाइटिस) के साथ-साथ फेफड़ों का तपेदिक भी था, जिसकी वजह से 65 साल के जोसेफ का लीवर तेजी से खराब हो रहा था.

वह अस्पताल में भर्ती थे. इसी दौरान उनकी बेटी की सगाई थी. वह मेडिकल अटेंडेंट के साथ समारोह में शामिल हुए थे. लेकिन उन्हें डर था कि वह शायद अपनी बेटी की शादी देखने के लिए जिंदा नहीं रहेंगे.

टीबी के कारण वह अपने लीवर के ट्रीटमेंट के लिए स्टेरॉयड नहीं ले पा रहे थे. उन्हें बताया गया कि लीवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है जो उन्हें बचा सकती है. चूंकि वह एसएएच से भी पीड़ित थे, इसलिए दोबारा संक्रमण होने के जोखिम को रोकने के लिए, उन्हें सर्जरी से पहले छह महीने तक शराब को हाथ नहीं लगाना था.

लेकिन यूसुफ के पास समय नहीं था. फिर उनके सामने इलाज के लिए एक असामान्य विकल्प रखा गया- ‘फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन’ यानी स्टूल ट्रांसप्लांट.

जैसा आप सोच रहे हैं यह ठीक वैसा ही है. फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन (एफएमटी) को बैक्टीरिया थेरेपी भी कहा जाता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक सेहतमंद डोनर से जांच करने के बाद लिए गए अच्छे बैक्टीरिया वाले मानव मल को मुंह, नाक या एनीमा के जरिए मरीज की आंत में प्रत्यारोपित किया जाता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

प्रक्रिया आंत और कोलन स्वास्थ्य में सुधार करने वाले गट बैक्टीरिया – आंतों को कवर करने वाले फायदेमंद बैक्टीरिया- को रिस्टोर करती है. इसे इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम और अन्य गैस्ट्रोइन्टेस्टलन संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया है. लेकिन अभी यह ट्रीटमेंट एक्सपेरिमेंटल स्टेज पर है.

गट माइक्रोबायोम (आंतों में लाभकारी बैक्टीरिया) के फायदे की वजह से ही राजगिरी के अस्पताल में हेपेटोलॉजिस्ट (लीवर विशेषज्ञ) ने लीवर के इलाज के लिए एफएमटी को अपनाया है.

जोसेफ की 29 साल की बेटी शेरविया ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें यह उपचार काफी अजीब लगा था. लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि यह एक जीवन रक्षक उपचार है. भले ही प्रायोगिक हो, लेकिन यह उनके जीवन के लिए आखिरी मौका था.’

जोसेफ के परिवार ने अपनी सहमति दी और 2019 की शुरुआत में इलाज शुरू हो गया. फेकल मैटेरियल सस्पेंशन – अघुलनशील ठोस पदार्थ के साथ मिश्रित तरल – एक डोनर के स्टूल से बनाया गया था और सीधे जोसेफ की नाक और छोटी आंत में जाने वाली ट्यूब में डाला गया. उसे सात से आठ दिनों के लिए 100 मिलीलीटर तैयार किया गया तरल दिया गया था.

शेरविया ने बताया, ‘इसका रिस्पॉन्स मिलना शुरू हो गया और उनकी तबीयत में तेजी से सुधार आने लगा.’

एक महीने बाद यानी शेरविया की शादी से बहुत पहले जोसेफ को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. यह सभी के लिए काफी हैरान कर देने वाला था, लेकिन अब वो सब चिंतामुक्त थे.

तीन साल पहले अपनी बीमारी को कहीं पीछे छोड़ देने वाले जोसेफ ने कहा, ‘मुझे अब कोई समस्या नहीं है. अनुभव अच्छा था. इलाज के कारण ही मैं अपनी बेटी की शादी में शामिल हो पाया. जबकि इलाज से पहले डॉक्टरों ने मुझसे कह दिया था कि वे मुझे बेटी की शादी में शामिल होने के लिए अस्पताल से छुट्टी नहीं देंगे. लेकिन आज मैं ठीक हूं. और मैं सामान्य रूप से ड्राइव भी कर लेता हूं.’

शेरविया ने कहा कि वह हर किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एफएमटी ट्रीटमेंट को अपनाने की सिफारिश करेंगी, जिसके सामने लीवर ट्रांसप्लांट का विकल्प नहीं बचा है. इलाज की यह प्रक्रिया ‘सस्ती, आसान और कारगार’ है.

FMT प्रक्रिया को 1950 के दशक के शुरुआती अध्ययनों से क्लीनिकल सहमति मिलती आ रही है. इलाज का यह मेथड एंटीबायोटिक दवाओं से बेअसर हो चुके गेस्ट्रोटेस्टीनल बैक्टीरियल इंफेक्शन के इलाज में लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है और काफी सफल भी साबित हुआ है.

इसे दुनिया भर के कई अस्पतालों में एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट के रूप में अपनाया गया है. इसका इस्तेमाल इस बात के बढ़ते प्रमाण के साथ बढ़ रहा है कि गट बैक्टीरिया एलर्जी, अस्थमा, कैंसर और लीवर की बीमारियों सहित कई परेशानियों को ठीक करने में कारगर है.

इसके बावजूद भारत के कुछ ही अस्पतालों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. केरल में राजगिरी दुनिया का एकमात्र संस्थान है जिसने गंभीर एसएएच मामलों के लिए केस-दर-केस के आधार पर लगातार एफएमटी का इस्तेमाल किया है.


यह भी पढ़ेंः येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सूअरों के मरने के कुछ घंटे बाद फिर से धड़काया उनका दिल


स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक दवाओं के बिना तेजी से सुधार

राजागिरी अस्पताल में एफएमटी की बागडोर वरिष्ठ सलाहकार और द लिवर इंस्टीट्यूट के क्लीनिकल साइंटिस्ट, हेपेटोलॉजिस्ट डॉ सिरिएक एब्बी फिलिप्स के हाथों में है.

डॉ फिलिप्स, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन माइक्रोबायोम स्टडीज के एक विशेषज्ञ सदस्य भी हैं. यह केरल सरकार द्वारा तैयार किया गया एक आगामी वैज्ञानिक कार्यक्रम है. उन्होंने 2014 में इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंस, नई दिल्ली में अपने हेपेटोलॉजी प्रशिक्षण और थीसिस कार्य के हिस्से के रूप में अपना पहला एफएमटी किया था.

अपनी थीसिस के लिए विषयों की पहचान करते हुए, डॉ फिलिप्स ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि उन्हें बारीकी से अध्ययन किए गए कई कागजात मिले हैं, जो लीवर की कई बीमारियों खासतौर पर शराब से होने वाली बीमारियों के कारण और इलाज में सहायक इंस्टेस्टाइनल माइक्रोब की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बता रहे हैं.

चूंकि FMT पहले से ही दवा प्रतिरोधी क्लोस्ट्रीडायोइड्स डिफिसाइल संक्रमण (CDI) के लिए एक अनुशंसित इलाज था, इसलिए फिलिप्स ने SAH मरीजों का इलाज करने के लिए पहले ह्यूमन पायलट ट्रायल करने की मांग की. ये सारे मरीज वो थे, जिनके पास वैकल्पिक इलाज का मौका नहीं था.

उन्होंने कहा, ‘अपनी थीसिस के एक हिस्से के तौर पर, मैंने 2014 में (एसएएच) मरीजों के समूह के लिए दुनिया का पहला स्टूल ट्रांसप्लांट प्रोटोकॉल शुरू किया था. उस समय हमारे पास संस्थान में सबसे निचले स्तर पर मेरे अस्थायी, डिंगी स्टोरेज रूम सह ‘एफएमटी लैब’ में ताजा मल को समरूप बनाने के लिए, मेरी पत्नी टीना द्वारा दान किए गया किचन ब्लेंडर था और इसने काम किया.’

वह बताते हैं, ‘अपने अध्ययन में मैंने पाया कि नॉन-एफएमटी स्टैंडर्ड केयर पर रहे 33 फीसदी की तुलना में एफएमटी पर करीब 85 फीसदी मरीज एक साल तक जीवित रहे.’

Faecal Microbiota Transplant | Image courtesy: Dr Cyriac Abby Philips / Rajagiri Hospital, Kerala
फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन प्रोसेस | इमेज कर्ट्सी: डॉ साइरियक ऐबी फिलिप्स / राजगिरी हॉस्पिटल, केरल

नतीजतन, एफएमटी ने राजगिरी में लीवर की बीमारियों से जूझ रहे कई मरीजों की जान बचाई .

ऐसे ही एक शख्स हैं 37 साल के दीपेश. वह 2018 में लीवर सिरोसिस से पीड़ित थे. कोयंबटूर में उनका इलाज चल रहा था. वह बेहद कमजोर थे, उनके पैर कांप रहे थे और वह खा भी नहीं पा रहे थे. उनके पेशाब का रंग अलग था, जो उनके खराब हो चुके लीवर की ओर इशारा कर रहा था. उनके डॉक्टरों ने उनसे राजगिरी में एफएमटी इलाज कराने के लिए कहा.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने (राजगिरी में) डॉक्टर पर भरोसा किया. हर कोई जानता है कि वह एक विशेषज्ञ है.’

दीपेश की नाक के जरिए आठ दिनों तक एफएमटी ट्रीटमेंट को अंजाम दिया गया. जब वह ठीक होने लगे तो उन्होंने कुछ ‘अलग’ ही एहसास हुआ.

दीपेश कहते हैं, ‘इलाज के बाद मुझे कोई परेशानी नहीं हुई. मेरी एनर्जी वापिस आ गई थी. मुझे भूख भी लगने लगी थी.’ दीपेश अभी भी सेहतमंद बने हुए हैं.

FMT सिर्फ लीवर की बीमारी को ही ठीक नहीं करता है. वास्तव में, यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल से जुड़ी बीमारियों मसलन इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम और अन्य बहुत सी बीमारियों के इलाज के लिए अपनाया जा रहा है.

भारत में पहला एफएमटी ट्रीटमेंट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट और हेपेटोलॉजिस्ट डॉ अवनीश सेठ ने 2014 में किया था. वह फिलहाल द्वारका, दिल्ली के मणिपाल अस्पताल के साथ जुड़े हैं.

उन्होंने गुरुग्राम में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में अल्सरेटिव कोलाइटिस के एक मरीज पर इस ट्रीटमेंट को किया था. उसे सीडीआई के कारण यह बीमारी लगी थी और उसकी हार्ट सर्जरी भी हुई थी.

44 साल का यह मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर था और उसकी किडनी ने भी काम करना कम कर दिया था. इसलिए इस प्रक्रिया को कोलोनोस्कोपी के जरिए तीन बार किया गया.

स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक दवाओं के बिना मरीज में तेजी से सुधार हुआ और फिर इसके बाद सेठ एफएमटी ट्रीटमेंट लेते रहे.

लुधियाना में दयानंद मेडिकल कॉलेज में डॉ अजीत सूद के सुपरविजन में अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन डिजीज, दोनों तरह की इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) के लिए एफएमटी ट्रीटमेंट दिया जाता हैं.

दिप्रिंट ने ईमेल के जरिए डॉ सूद और डॉ सेठ से संपर्क करना चाहा था, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला.

‘रिपल्सिव नहीं’

डॉ फिलिप्स आश्वस्त करते हुए कहते हैं, एक फीडिंग ट्यूब के जरिए इन्फ्यूजन स्टूल को शरीर में पहुंचाना घिनौना लगता है, लेकिन यह इससे बहुत दूर है.

एक सेहतमंद डोनर को सावधानी से चुना जाता है और उसकी जांच की जाती है, खास तौर से जीवाणु सीडीआई के लिए, जो आमतौर पर एंटीबायोटिक की वजह से होता है. 100 ग्राम तक ताजा मल को सेलाइन, दूध या पानी से पतला करके मिक्स किया जाता है. फिर इस सस्पेंशन को एक फीडिंग ट्यूब के जरिए मुंह या नाक के नीचे छोटी आंत में, या फिर एक कोलोनोस्कोपी के जरिए एनीमा के रूप में शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है.

डॉ फिलिप्स ने कहा, ‘बेडसाइड पर स्टूल सस्पेंशन दिया गया और पूरी प्रक्रिया 10 मिनट के भीतर खत्म हो जाती है. चूंकि इसे छोटी आंत में गहराई तक पहुंचाया जाता है, इसलिए इसके मुंह से वापिस आने और गैसीयस जैसी संभावना नहीं होती है.’ वह नियमित रूप से एसएएच और लीवर के अन्य बीमारियों के लिए इस प्रक्रिया से इलाज कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि किसी भी मरीज को प्रक्रिया के बाद गंध या घिन आने की शिकायत नहीं होती है. उन्हें ट्रीटमेंट के बाद एक घंटे तक बैठने के लिए कहा जाता है और सस्पेंशन को आगे गहराई तक जाने के लिए दवा भी दी जाती है.

डॉ फिलिप्स की टीम ने शराब की लत, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस और नशीली दवाओं से लीवर को होने वाले नुकसान को ठीक करने के लिए एफएमटी प्रक्रिया को अपनाया है और लोगों को इससे फायदा भी हुआ है.

डॉ फिलिप्स के अनुसार, उन्होंने अल्कोहल से जुड़े हेपेटाइटिस में एफएमटी पर ‘पहला, सबसे बड़ा और सबसे लंबा’ फोलो-अप अध्ययन भी किया है. वह खराब बैक्टीरियल प्रोफाइल से अच्छे बैक्टीरियल बदलाव को साफ तौर पर दिखाने में सक्षम है.

अवनीश सेठ के अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए लंबे समय तक किए गए फोलो-अप स्टडी में मरीजों को रखरखाव और बचाव के लिए समय-समय पर एफएमटी इलाज दिया जाता था, जो पांच सालों तक सफलता का प्रदर्शन करता है.


यह भी पढ़ेंः विश्व रैंकिंग में IITs, IIMs को पीछे छोड़ते हुए IISc शीर्ष पर कैसे बना रहता है


गट फ्लोरा- हमारी आंतों का इकोसिस्टम

स्टूल ट्रांसप्लांट को पहली बार चौथी शताब्दी के चीन में चिकित्सक जीई होंग ने रिकॉर्ड किया था. और बाद में 16वीं शताब्दी में चिकित्सक ली शिज़ेन ने अपने मरीजों को पेट के विकारों के इलाज के लिए ‘पीला सूप’ पिलाया था. इंसानों पर FMT के लिए आधुनिक चिकित्सा में पहला पेपर 1958 में प्रकाशित हुआ था.

इलाज की इस प्रक्रिया को जानवरों के डाक्टरों ने भी व्यापक रूप से अपनाया है. जंगलों में भी स्वाभाविक तौर पर कई जानवर ऐसा करते मिल जाते है, जहां वह अक्सर अपनी या अन्य प्रजातियों के मल का सेवन करते हैं.

जोसेफ, दीपेश और कई अन्य मरीजों पर एफएमटी ट्रीटमेंट से फायदा मिलने का कारण, गट माइक्रोबायोम या बैक्टीरिया, फंगी के कंबाइंड इकोसिस्टम और हमारे शरीर में रहने वाले अन्य रोगाणुओं की बढ़ी हुई क्लीनिकल समझ है. ये सब हमारी सेहत और प्रतिरक्षा प्रणाली को विनियमित करने में मदद करते हैं.

इसे गट फ्लोरा या माइक्रोबायोटा भी कहा जाता है, यह पाचन और इंटेस्टाइन के हेल्दी तरीके से काम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. माना जाता है कि गट माइक्रोबायोम में रुकावट शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर बढ़ाने, वजन में उतार-चढ़ाव, डायबिटीज, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज और कैंसर जैसी कई बीमारियों का कारण बनता है.

दो-तरफा बायोकैमिकल सिगनलिंग मैकेनिज्म की वजह से यह ब्रेन और नर्वस को भी प्रभावित करता है. इस मकैनिज्म को गट-ब्रेन एक्सिस भी कहा जाता है, जिसके कारण आंत में बनने वाले मोलेक्युल्स दिमाग पर असर डालते हैं. इस तरह से गट माइक्रोबायोम समझने की शक्ति और मानसिक स्वास्थ्य में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है.

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) का अध्ययन करने वाले ट्रायल से यह भी पता चला है कि जो मरीज डिप्रेशन से जूझ रहे थे, FMT के बाद उनके मानसिक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार देखा गया.

गट फ्लोरा की सेहत हमारी जीवनशैली व न्युट्रीशन और बीमारी व एंटीबायोटिक दवाओं से प्रभावित होती है. इसका विघटन एंटीबायोटिक इस्तेमाल करने से तेज हो जाता है और यह कई तरह की पेट की ख़राबी, सूजन, पेट फूलना और यहां तक कि चिंता और डिप्रेशन के रूप में सामने आ सकता है.

जिन लोगों को कोई बीमारी नहीं है उनमें आमतौर पर इसे चीनी और मांस के सेवन को कम करके, फर्मंटेड और प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थों की मात्रा को बढ़ाकर और एक्सरसाइज करके कम किया जा सकता है. लेकिन गंभीर बीमारी वाले लोग जिनमें लीवर सिरोसिस और एसएएच जैसे गट बैक्टीरिया भी शामिल हैं, एफएमटी के जरिए ठीक किए जाते हैं.

जब स्टूल ट्रांसप्लांट होता है, तो यह नियमित रूप से छोटी आंत को हेल्दी गट फ्लोरा से भर देता है. इससे अस्वस्थ बैक्टीरिया के अगले कुछ दिनों में विस्थापित होने और मर जाने की संभावना बढ़ जाती है. क्योंकि गुड बैक्टीरिया इंटेस्टाइन में यहां बने रहने के लिए उनके साथ मुकाबला करते हैं.

संभावना है कि शरीर में स्वस्थ मल के साथ जाने वाले बैक्टीरियोफेज और एंजाइम एफएमटी के प्रभाव को बढ़ा देते हैं.

जोखिम भी है

सीडीआई इलाज के लिए पहले रेंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल में FMT की सफलता का ग्राफ काफी अच्छा रहा था. लेकिन यह अभी भी प्रायोगिक चरण में है और इसके साथ काफी सख्त कलीनिकल प्रोटोकॉल जुड़े हैं.

अगर पूरी तरह से जांच के बिना यह ट्रांसप्लांट किया जाता है, तो डोनर से मरीज के शरीर में संक्रमण आने का खतरा बना रहता है. ट्रायल के दौरान मरीजों में हल्के और अल्पकालिक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल जोखिम को देखा गया है. हालांकि इलाज पूरा होने तक ये परेशानियां खुद ब खुद दूर हो जाती हैं, लेकिन कुछ मरीजों में इर्रिटेटड बाउल सिंड्रोम में और ज्यादा सामने आई थीं.

अमेरिका में 2019 में ड्रग-रेजिस्टेंट बैक्टीरिया वाले एक व्यक्ति की एफएमटी के बाद मौत हो गई थी. इससे एक अन्य व्यक्ति भी संक्रमित हुआ था, जिसने एक ही डोनर का नमूना एक अलग बैच से गोलियों में प्राप्त किया था.

फिलिप्स ने चेतावनी दी, ‘एसएएच के लिए एक चिकित्सीय विकल्प के रूप में एफएमटी की भूमिका अभी भी शुरुआती अवस्था में है. मौजूदा समय में एफएमटी सिर्फ अनुसंधान प्रोटोकॉल के भीतर किया जाना चाहिए और संभवतः सहमति के बाद इसमें रुचि रखने वालों के लिए मामला-दर-मामला आधार पर किया जाना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘हमें नियमित क्लिनिकल प्रैक्टिस में एफएमटी को चिकित्सीय विकल्प के रूप में शामिल करने के लिए दृढ़, उच्च गुणवत्ता वाले रेंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल और उन परीक्षणों से सत्यापन और दोहराने योग्य परिणामों की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः दक्षिण कोरिया में दुनिया की सबसे बड़ी खगोल विज्ञान की बैठक में भारतीय छात्रों ने जीते 4 पुरस्कार


 

share & View comments