scorecardresearch
Friday, 11 October, 2024
होमहेल्थक्या सर्जरी का सीधा प्रसारण करना सही है? नियम तय करने के लिए NMC द्वारा पैनल बनाने पर अलग-अलग राय

क्या सर्जरी का सीधा प्रसारण करना सही है? नियम तय करने के लिए NMC द्वारा पैनल बनाने पर अलग-अलग राय

SC ने डॉक्टरों के सम्मेलन के दौरान सर्जरी के सीधे प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से विचार मांगे हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: रेगुलेटरी बॉडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने सर्जिकल प्रक्रियाओं के सीधे प्रसारण पर अपना रुख तय करने के लिए एक पैनल बनाने का फैसला किया है.

एनएमसी के मेडिकल एथिक्स एंड रजिस्ट्रेशन बोर्ड के डॉ. योगेन्द्र मलिक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर उनकी राय मांगी थी लेकिन सदस्यों के बीच इसको लेकर काफी विरोधाभास था.

13 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने उस याचिका पर केंद्र और एनएमसी सहित अन्य से जवाब मांगा था, जिसमें सर्जिकल प्रक्रियाओं के सीधे प्रसारण पर कानूनी और नैतिक सवाल उठाए गए थे. याचिकाकर्ताओं ने सर्जरी के दौरान दर्शकों से बातचीत करने वाले सर्जनों की तुलना क्रिकेटर विराट कोहली की एक ही समय में बल्लेबाजी और कमेंट्री करने से की थी. जनहित याचिका (पीआईएल) कई दिल्ली निवासियों द्वारा दायर की गई थी.

याचिकाकर्ता डॉ. राहिल चौधरी ने दिप्रिंट को बताया कि लाइव सर्जरी का उद्देश्य मरीजों की जान की कीमत पर “सर्जनों का महिमामंडन करना और उन्हें फायदा पहुंचाना” है.

उन्होंने कहा, “सम्मेलनों में प्रसारित होने वाली लाइव सर्जरी के दौरान, सैकड़ों डॉक्टरों को ऑपरेशन करने वाले सर्जन के साथ बातचीत करने की अनुमति दी जाती है, जो दर्शकों से सवाल पूछते रहते हैं.” उन्होंने तर्क दिया कि इससे डॉक्टर का ध्यान भटक सकता है.

उन्होंने कहा, “ये काम अक्सर चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों द्वारा आयोजित किए जाते हैं और ये बिल्कुल भी मरीजों के हित में नहीं हैं.”

नेत्र रोग विशेषज्ञ चौधरी ने 2015 में ऐसी ही एक लाइव प्रक्रिया के दौरान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एक मरीज की मौत का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि कई देशों ने पहले ही इस पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन भारत में इस पर कोई स्पष्ट नियम नहीं है.

उन्होंने कहा कि लाइव प्रक्रियाएं पहले केवल डॉक्टरों के एक छोटे संघ द्वारा ही की जाती थीं, लेकिन ऑल इंडिया ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी (एआईओएस) – देश में नेत्र डॉक्टरों का सबसे बड़ा नेटवर्क – ने पिछले महीने इस पर एक आयोजन किया था.

उन्होंने कहा, “फिर हमने याचिका डाली, क्योंकि हम इस प्रथा को डॉक्टरों के बड़े संघों द्वारा अपनाने की अनुमति नहीं दे सकते. कई मौकों पर लाइव प्रसारण के दौरान सर्जरी विफल हो जाती है, लेकिन इसे उजागर नहीं किया जाता है, क्योंकि इससे डॉक्टरों की छवि खराब होगी.”

चौधरी ने यह भी कहा कि लाइव सर्जरी के बजाय, डॉक्टरों को कौशल बढ़ाने के लिए पहले से रिकॉर्ड की गई प्रक्रियाएं दिखाई जा सकती हैं.

संपर्क करने पर, एआईओएस अध्यक्ष डॉ. हरबंश लाल ने कहा कि “सर्जरी कौशल को ट्रांसफर करने और डॉक्टरों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए लाइव सर्जरी से बेहतर कोई उपकरण नहीं है”.

उन्होंने कहा, “यहां तक ​​कि जब किसी सर्जरी को किसी सम्मेलन में लाइव नहीं दिखाया जाता है, तो मेडिकल कॉलेजों में इसे नियमित रूप से निवासियों और सीखने वाले डॉक्टरों को दिखाया जाता है.”

जहां तक ​​लाइव प्रक्रिया के दौरान सर्जन पर तनाव का सवाल है, लाल ने कहा कि यह आधुनिक जीवन का अभिन्न अंग है.

उन्होंने पूछा, “क्या सर्जन अतिरिक्त तनाव में वीआईपी मरीजों पर प्रक्रियाएं नहीं कर रहे हैं.” उन्होंने कहा कि सम्मेलनों में प्रक्रियाओं का प्रदर्शन करने वाले सर्जन शीर्ष स्तर के डॉक्टर हैं और तनाव को बहुत अच्छी तरह से संभाल सकते हैं.

डिवाइस निर्माताओं द्वारा प्रायोजित की जा रही लाइव सर्जरी पर लाल ने कहा कि एनएमसी नियमों के तहत इसकी अनुमति है.

लाल कहते हैं, “अगर एनएमसी या सुप्रीम कोर्ट यह निर्देश देता है कि ऐसी प्रथाओं को रोका जाना चाहिए, तो हम दिशानिर्देशों का पालन करेंगे, लेकिन मेरे विचार में हजारों डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने में कुछ भी गलत नहीं है, जिनके पास हमेशा उच्च गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुंच नहीं हो सकती है.”

ऐसे कई और डॉक्टर भी हैं, जो लाइव प्रक्रियाओं को मंजूरी देने की बात करते हैं, बशर्ते वे कुछ शर्तों को पूरा करते हों.  देश में डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. आर.वी. अशोकन ने कहा कि लाइव टीच-इन के लिए मरीजों की गुणवत्तापूर्ण सर्जरी और सहमति होनी चाहिए.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि ज्ञान और कौशल का प्रसार ही अगली पीढ़ी के छात्रों को पढ़ाने का एकमात्र तरीका है. कई शिक्षार्थियों के लाभ के लिए मीडिया और संचार की उन्नत तकनीकों का पूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस खब़र को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: टेक्नोलॉजी बदल रही स्वास्थ्य सेवा, ‘समान, प्रगतिशील नियमों’ की जरूरत: FICCI रिपोर्ट में सरकार से आग्रह


 

share & View comments