मुंबई: ‘एक ऑक्सीजन बेड अभी खाली हुआ है, क्या बेड के लिए कोई रिक्वेस्ट आई है’ डॉ. दिव्या कास्पे टेलीफोन रिसीवर को पकड़े हुए ही चिल्लाई. उनके आसपास 15 अन्य लोग भी हैं, जो इसी तरह फोन संभाल रहे हैं. यह टीम बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के जी नॉर्थ वार्ड कार्यालय के कमरा नंबर 4 में है—जो शहर में बनाए गए 24 कोविड वार रूम में से एक है.
कास्पे की आवाज गूंजते ही कमरे में हलचल तेज हो गई है, वहां मौजूद बाकी लोग रजिस्ट्रर और अपने फोन खंगालने लगे कि क्या कहीं से कोई ऑक्सीजन बेड की मांग आई थी. ऐसे एक आग्रह की जानकारी सामने आते ही नागरिक निकाय के साथ मिलकर काम कर रही एक डॉक्टर डॉ. कास्पे ने टेलीफोन लाइन पर दूसरी तरफ इंतजार कर रहे अस्पताल को इस बारे में सूचित किया.
कोविड वार रूम के अंदर का यह एक आम नजारा है. पिछले महीने से, कोविड-19 की दूसरी लहर तेज होने के बीच, ये वार रूम कोविड मरीजों और अस्पतालों के बीच संपर्क का एक प्रमुख माध्यम बने हुए हैं.
अस्पताल ने मंगलवार को जी नॉर्थ वार्ड स्थित वार रूम में कुछ घंटे बिताए ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे अस्पताल के साथ कैसे समन्वय बैठाते हैं.
जी नार्थ वार्ड की 33 फीसदी से अधिक आबादी मध्य मुंबई के धारावी-सायन-कुर्ला इलाकों में रहती है. इसमें दादर और माहिम जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं.
बीएमसी के आंकड़ों के अनुसार, 27 अप्रैल तक जी नॉर्थ वार्ड में 5,731 सक्रिय केस थे. माहिम (2,427) में सबसे अधिक सक्रिय मामले सामने आए, उसके बाद दादर (2,354) में दर्ज किए गए. कभी हॉटस्पॉट कहे जाने वाले धारावी में 950 सक्रिय मामले सामने आए.
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गंभीर मरीजों पर विशेष ध्यान
जी नॉर्थ वार्ड स्थित कोविड वार रूम के बीच में रखी गई एक लंबी मेज पर सोलह समन्वयक, डॉक्टर और मेडिकल छात्र बैठते हैं. कम से कम 10 लैंडलाइन फोन, नोटबुक, मोबाइल फोन और दो कंप्यूटर मेज पर पड़े हुए हैं.
एक कोने में दो अन्य कोऑर्डिनेटर बैठते हैं, जो पूरी सावधानी के साथ अपने-अपने घरों में आइसोलेट मरीजों की स्थिति पर नजर रखे हैं, जिसे वे लाइन-लिस्ट कहते हैं. वे मरीजों को फोन मिलाते हैं और उनके लक्षणों के बारे में पूछताछ करते हैं.
फोन लगभग हर दूसरे मिनट बजता है. कई कॉल गहन चिकित्सा इकाइयों (आईसीयू) और ऑक्सीजन बेड की मांग करने के संदर्भ में आती हैं.
वार रूम में मौजूद डॉक्टरों में से एक डॉ. काजल ध्रुव सोनी प्रोटोकॉल के बारे में बताती हैं.
यदि कोई मरीज या उसके रिश्तेदार वार रूम को कॉल करते हैं, तो समन्वयक या डॉक्टर उनकी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में पूछता है. इसमें उनका ब्लड सैचुरेशन लेवल, उनका ब्लड प्रेशर और कोमोर्बिडिटी के बारे में जानकारी लेना शामिल होता है. यदि मरीज के पास ऑक्सीमीटर उपलब्ध नहीं होता है तो डाटा एकत्र करने के लिए एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता को उसके घर पर भेजा जाता है.
सोनी ने बताया, ‘सबसे अहम यह होता है कि उनका (ऑक्सीजन) सैचुरेशन लेवल क्या है. इसी से हमें पता चलता है कि क्या उन्हें ऑक्सीजन बेड उपलब्ध कराने की जरूरत है या फिर आईसीयू बेड या वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ेगी….यह सब उनके ऑक्सीजन लेवल पर निर्भर करता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘यदि किसी का ऑक्सीजन लेवल करीब 95 से 97 है और यदि उन्हें कोई शिकायत नहीं है, तो यह सामान्य है. इसलिए हम उन्हें कोविड केयर सेंटर में भर्ती कराते हैं….यहां तीन केंद्र हैं. यदि उनका ऑक्सीजन लेवल 94 या 88-90 तक है, तो उन्हें सांस लेने में हल्की-फुल्की तकलीफ होगी. हम उन्हें किसी ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर पर रखने की सलाह देते हैं. अगर उन्हें सांस लेने में अधिक परेशानी महसूस हो रही है और नीचे बैठने पर भी उन्हें सांस लेने में मुश्किल हो रही है तो उन्हें आईसीयू बेड दिलाने की आवश्यकता होगी.’
यह मेडिकल ट्राइएज की अवधारणा है—यह एक एक प्रोटोकॉल है जिसे बीएमसी विभिन्न मरीजों को बेड आवंटित कराने में अपना रहा है. मेडिकल ट्राइएज तय करता है कि मरीज की स्थिति की गंभीरता के आधार पर उसके इलाज को प्राथमिकता दी जाए.
सोनी के सामने ही बीएमसी के समन्वयकों में से एक आकाश कदम बैठता है. उनकी नजरें सामने रखे कंप्यूटर स्क्रीन पर ही गड़ी रहती हैं, खासकर ‘बीएमसी बेड ट्रैकर’ साइट पर. केवल नागरिक निकाय की एक्सेस में होने वाली इस साइट में शहर में विभिन्न अस्पतालों में बेड की उपलब्धता बताने के लिए एक रियल टाइम ट्रैकर है.
बेड को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है—जैसे संदिग्ध कोविड-19 मरीजों के लिए क्वारेंटाइन बेड, पॉजिटिव मरीजों के लिए आइसोलेशन बेड, आईसीयू बेड, बच्चों के लिए आईसीयू बेड, नवजात शिशुओं के लिए आईसीयू बेड और गर्भवती महिलाओं, डायलिसिस पर होने वाले मरीजों और कैंसर पीड़ितों के लिए बेड आदि.
इन सभी कैटगरी को आगे भी दो हिस्सों में रखा जाता है, ऑक्सीजन वाले बेड और बिना ऑक्सीजन वाले बेड.
कदम ने बताया, ‘पिछला महीना सभी के लिए बेहद तनावपूर्ण था. हम शिफ्ट के दौरान रोजाना 10-15 घंटे काम करते थे. हम सबके लिए प्राथमिकता यही थी कि मरीजों को किसी तरह एक बेड मिल जाए. हम ऐसा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार थे…हम मरीजों को एक बेड मुहैया कराने की हरसंभव कोशिश करते थे.
वार रूम प्रभारी मंजुला चिंबालकर के अनुसार, ट्राइएज सिस्टम से कुछ सुधार आया है.
उन्होंने बताया. ‘शुरू में जब भी कोई अनुरोध आता हम उन्हें आईसीयू बेड आवंटित कराने की कोशिश करते, भले ही उन्हें आईसीयू बेड की जरूरत हो या नहीं. अब वैसा नहीं है. अगर आपको सच में जरूरत पड़ेगी तो ये आपको मिल जाएगा. आपकी जो जरूरत है, वो आपको मिलेगा. इससे स्थिति काफी संतुलित हो गई है.’
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एक व्यस्त महीना
यह आइडिया बीएमसी प्रमुख इकबाल सिंह चहल का ही था कि वार्ड स्तर के कोविड वार रूम बनाए जाएं, जिन्हें 8 जून 2020 को शुरू किया गया था.
अन्य सभी वार रूम की तरह जी नॉर्थ वार्ड की वार रूम भी 24×7 सक्रिय रहता है, जो सुबह 8 बजे से शुरू होने वाली तीन पारियों में काम करता है. मौजूद समय में हर शिफ्ट में चार डॉक्टर, चार से पांच कोऑर्डिनेटर और डाटा एंट्री ऑपरेटर काम कर रहे होते हैं.
चिंबालकर ने बताया, ‘जब अचानक मामलों में वृद्धि हुई तो वाररूम में पर्याप्त लोग नहीं थे. इसलिए हमें तुरंत कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी पड़ी.’
कदम ने आगे जोड़ा कि पिछले महीने हर दिन आने वाली कॉल की संख्या बढ़कर 1,000 से अधिक हो गई है.
उन्होंने बताया, ‘इस समय स्थिति बहुत खराब है, लोगों को आईसीयू बेड नहीं मिल पा रहे हैं और सामान्य बेड की भी कमी हो गई है.’
कमरे के मौजूद अधिकांश कर्मचारी ऐसी घटनाओं के बारे में बता सकते हैं जिनमें वह जिस मरीज के संपर्क में रहे हों और उसकी बीमारी के कारण मौत हो गई हो. सोनी ने ऐसे ही एक मामले का जिक्र किया.
उन्होंने बताया, ‘हम 2 दिनों से एक मरीज के लिए आईसीयू बेड का इंतजाम करने की कोशिश में लगे थे… हमेशा की तरह हमने उन्हें सायन अस्पताल के कैजुअल्टी वार्ड में जाने को कहा. मरीज को वहां ऑक्सीजन दिया गया और थोड़ी देखभाल के बाद वह वहां से वापस आ गए. हमने उन्हें रात में कॉल किया और फिर सुबह भी हाल-चाल जानने के लिए फोन किया, तभी हमें पता चला कि उनकी अचानक मौत हो चुकी है.’
कोऑर्डिनेटर अखिलेश तिवारी ने बताया, ‘असली चुनौती यह होती है कि हमारे पास बहुत सारी कॉल आती हैं लेकिन हमारे लिए उतने बेड मुहैया कराना संभव नहीं होता है. हमें समझ नहीं आता कि मरीजों को कैसे जवाब दिया जाए. हम उनसे कहते रहते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं….यह इतना आसान नहीं है.’
बीएमसी के डैशबोर्ड पर 29 अप्रैल के डाटा के मुताबिक 11,147 ऑक्सीजन बेड में से 9,667 और 2,887 आईसीयू बेड में 2,814 फुल हो चुके हैं.
नई उम्मीद
लंच ब्रेक जैसी कोई व्यवस्था यहां पर नहीं है. कर्मचारी जब भी मौका मिलता है, कभी-कभी फोन कॉल के बीच में जो खा पाते हैं, खा लेते हैं. इन छोटे-मोटे ब्रेक के दौरान भी वह आपस में एक-दूसरे से बात करते हुए बेड या टेस्ट रिपोर्ट के बारे में जानकारी साझा करते रहते हैं. वार रूम रिपोर्ट मुहैया कराने के लिए कोविड टेस्टिंग लैब के संपर्क में भी रहते हैं.
हालांकि, पिछले कुछ दिन उम्मीद की किरण लेकर आए हैं.
बीएमसी में सहायक आयुक्त और वार्ड प्रभारी किरण दिघवेकर ने कहा, ‘पिछले दो-तीन दिनों में केस संख्या में भारी कमी आई है. एक समय था जब हमारे सामने प्रतिदिन 200-300 मामले अ रहे थे. लेकिन अब मामले मुश्किल से 80-85 रह गए हैं. बड़ी राहत यह है कि धारावी ने पिछले दो दिनों में 20 से 30 केस की ही जानकारी दी है. हालांकि, अभी भी हमें आईसीयू और ऑक्सीजन बेड के लिए तमाम आग्रह मिल रहे हैं.’
गुरुवार को मुंबई में 4,174 नए मामले आए और 78 मौतें हुईं, जो कि 4 अप्रैल को सामने आए 11,163 मामलों की तुलना में एक बड़ी गिरावट है.
कोऑर्डिनेटर में से एक मोहम्मद सिकंदर शेख ने दिप्रिंट से कहा, ‘अब आप जो कुछ भी देख रहे हैं वह तो कुछ भी नहीं है.’
एक और कॉल का जवाब देने में व्यस्त होने से पहले उसने कहा, ‘एक हफ्ते पहले तो हमें मरने के लिए भी फुर्सत नहीं थी. लेकिन अब तो हम एक-दूसरे के साथ बात कर पा रहे हैं और चीजों के बारे में चर्चा कर पा रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ दिनों में मामलों की संख्या घटी है.’
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