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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थसरकारी आंकड़ों में हुआ बड़ा खुलासा, भारत में एक कोविड केस पकड़ा जाता है लेकिन 90 मिस हो जाते हैं

सरकारी आंकड़ों में हुआ बड़ा खुलासा, भारत में एक कोविड केस पकड़ा जाता है लेकिन 90 मिस हो जाते हैं

डीएसटी पैनल के ताज़ा विश्लेषण जिसमें भविष्यवाणी की गई थी कि फरवरी 2021 तक भारत में कोविड महामारी खत्म हो जाएगी, में पता चला है कि अभी तक तकरीबन 60 प्रतिशत भारतीय संक्रमित हो चुके हैं.

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नई दिल्ली: भारत की तेज़ी से गिरती कोविड-19 संख्या भले ही एक राहत लेकर आई हो लेकिन नवंबर तक देश में आए हर केस पर करीब 90 संक्रमित केसो को मिस किया है.

जहां दिल्ली और केरल ने हर केस पर करीब 25 इनफेक्शंस मिस किए हैं वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार ने हर एक केस पर अनुमान के मुताबिक करीब 300 केस मिस किए हैं. मेडिकल भाषा में केस उस संक्रमण को कहते हैं जिसका चिकित्सकीय रूप से निदान किया गया हो.

ये आंकड़े पिछले महीने तक भारत में कोविड संक्रमण की संख्या के विश्लेषण से सामने आए हैं. ये विश्लेषण विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से गठित एक पैनल के सदस्यों ने किया. वही कमेटी जिसने भारत-विशिष्ट सुपर मॉडल विकसित किया, जिसने भविष्यवाणी की थी कि भारत में फरवरी 2021 तक महामारी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी. सितंबर में एक विश्लेषण ने दिखाया था कि भारत ने हर एक पकड़े गए केस पर करीब 60-65 इनफेक्शंस मिस किए थे.

डीएसटी कमेटी के सदस्य और आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर मनींद्र अग्रवाल ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम राज्य-वार विश्लेषण करते रहे हैं और फिलहाल उससे पता चलता है कि करीब नवंबर मध्य तक दिल्ली और केरल ने हर एक संक्रमण पर करीब 25 इनफेक्शंस मिस किए. यूपी और बिहार में हर केस के लिए ये संख्या करीब 300 है. अधिकतर राज्य 70-120 की रेंज में हैं’.

उन्होंने कहा, ‘पूरे भारत में हर एक केस पर मिस हुए इनफेक्शंस की संख्या 90 के करीब है. अगर आप इसकी तुलना इटली और युनाइटेड किंग्डम जैसे देशों से करें तो वहां हर केस पर मिस होने वाले इनफेक्शंस की संख्या करीब 10-15 है’.

अग्रवाल ने आगे कहा, ‘दरअसल हमारे मॉडल से पता चलता है कि दिल्ली में तीसरा पीक ज़्यादा बड़ा था लेकिन संक्रमण का असली फैलाव तकरीबन उतना ही था. दूसरे पीक के दौरान दिल्ली ने हर एक केस पर 43 इनफेक्शंस मिस किए जबकि तीसरे में उसने केवल 21 मिस किए. ऐसा इसलिए हुआ चूंकि दिल्ली सरकार ने टेस्टिंग बढ़ा दी थी’.

अग्रवाल के अलावा डीएसटी कमेटी में आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर एम विद्यासागर, सीएमसी वेल्लौर की डॉ गगनदीप कांग, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरू के प्रोफेसर बिमान बागची, भारतीय सांख्यिकीय संस्थान कोलकाता के प्रोफेसर अरूप बोस और प्रोफेसर शंकर पॉल और रक्षा मंत्रालय से ले.जन. माधुरी कानिटकर शामिल थे.

पिछले परिणाम इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक प्री-प्रिंट लेख में छपे थे जिसे अग्रवाल, विद्यासागर और कानिटकर ने लिखा था.


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‘भारत की अक्षमता ने मदद की’

अग्रवाल को पूरा यकीन है कि सुपर मॉडल के अनुमानों के मुताबिक भारत में अब दूसरा पीक नहीं आएगी और वो कमेटी के फरवरी 2021 के मूल अनुमानों पर कायम हैं कि लगभग 20,000 एक्टिव मामलों के साथ देश में महामारी का अंत हो जाएगा. इसकी एक आंशिक वजह ये है कि इनफेक्शंस की एक बहुत संख्या का पता ही नहीं चला.

उन्होंने कहा, ‘भारत के स्तर पर अब हम एक और पीक की अपेक्षा नहीं करते. मोटे तौर पर ये संख्या लगातार गिरती जाएगी. फिलहाल, मॉडल के हिसाब से करीब 60 प्रतिशत भारतीय पहले ही संक्रमित हो चुके हैं, उनके अंदर एंटीबॉडीज़ हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘उसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि त्योहारी सीज़न के बाद भी दिल्ली के अलावा अन्य ज़्यादातर राज्यों में उछाल नहीं देखा गया. कुछ सूबों में ये संख्या थोड़ी बढ़ सकती है. उत्तराखंड में फिलहाल ये बढ़ रही है और मेघालय में भी यही स्थिति है’.

अगर भारत में एक अकेले पीक के साथ ही इसका अंत हो जाता है तो वो दुनिया में अकेला ऐसा देश होगा. दुनिया के अधिकतर देशों में कई पीक देखे गए हैं. युनाइटेड किंग्डम फिलहाल एक पीक से गुज़र रहा है, जर्मनी ने एक दूसरा लॉकडाउन लागू किया है और हर्ड इम्यूनिटी का मूल समर्थक स्वीडन फिलहाल संघर्ष कर रहा है.

ये पूछे जाने पर कि भारत के सिर्फ एक पीक के साथ सितंबर में बच निकलने का क्या कारण है, अग्रवाल ने कहा: ‘यहां हमारी अक्षमता ने हमारी मदद की है. मसलन, जब जर्मनी ने लॉकडाउन घोषित किया तो हर चीज़ बंद थी, लोगों ने बाहर निकलना बंद कर दिया. लेकिन यहां पहले करीब एक महीने के बाद लॉकडाउन उतना सख्त नहीं रहा है और मास्क का अनुपालन कम ही रहा है.

‘इसलिए संक्रमण आबादी में फैल गया. जर्मनी जैसे देशों में एक बड़ी आबादी गैर-संक्रमित है. कुछ दूसरे फैक्टर्स भी हैं, जैसे साउथ एशिया, अफ्रीका आमतौर से कम संक्रमित रहे हैं. उसकी एक वजह युवा आबादी हो सकती है या फिर कुछ दूसरे कारण हो सकते हैं. एक्सपर्ट्स उसका विश्लेषण कर रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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