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Sunday, 3 November, 2024
होमहेल्थ‘दो बच्चों वाले कानून की भारत को जरूरत नहीं’- NFHS के आंकड़ें बताते हैं कि जनसंख्या विस्फोट का कोई खतरा नहीं

‘दो बच्चों वाले कानून की भारत को जरूरत नहीं’- NFHS के आंकड़ें बताते हैं कि जनसंख्या विस्फोट का कोई खतरा नहीं

राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट आई है जो इस बात को दर्शाती है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि स्थिर हो रही है. विशेषज्ञ इसके कई कारण बताते हैं जिसमें गर्भनिरोधक उपायों में वृद्धि भी शामिल है.

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नई दिल्ली: भारत की आबादी में अनियंत्रित वृद्धि के खतरों को लेकर जताई जा रही तमाम आशंकाएं अक्सर हम सबको सुनाई देती रहती हैं और राजनेताओं की तरफ से जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग करना भी गाहे-बगाहे सुर्खियों में आ जाता है.

लेकिन 12 दिसंबर को जारी केंद्र सरकार के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवें संस्करण (एनएफएचएस-5) से ऐसा लगता है कि ये आशंकाएं निराधार हो सकती हैं. सर्वेक्षण में सामने आए प्रजनन दर के आंकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या वृद्धि स्थिर है.

जनसंख्या को तब स्थिर कहा जाता है जब यह रिप्लेसमेंट-लेवल फर्टिलिटी यानी प्रतिस्थापन-स्तरीय प्रजनन क्षमता पर पहुंच जाती है— यह वो स्थिति होती है जिसमें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने के दौरान प्रजनन की दर समान ही रहती है.

प्रतिस्थापन-स्तर की प्रजनन क्षमता प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चे है, हालांकि यह मृत्यु दर से थोड़ी भिन्न हो सकती है. इसका मतलब है कि अगर दो वयस्कों के दो बच्चे हैं तो अगली पीढ़ी में पुरानी पीढ़ी की तरह प्रभावी तौर पर यही अनुपात रहेगा, इसमें कोई अतिरिक्त आंकड़ा जोड़े बिना.

एनएफएचएस-5 में शामिल डाटा अभी 17 राज्यों और पांच केंद्रशासित प्रदेशों का ही है क्योंकि बाकी क्षेत्रों में कोविड-19 महामारी के कारण सर्वेक्षण आगे टाल दिया गया था.

हालांकि, कुछ बड़े राज्यों जैसे देश में सबसे ज्यादा आबादी वाले उत्तर प्रदेश और जनसंख्या के लिहाज से शीर्ष राज्यों में शामिल मध्य प्रदेश के आंकड़ों का अभी इंतजार है, सर्वेक्षण में शामिल अन्य क्षेत्रों ने आशाजनक नतीजे दिखाए हैं.

तीन राज्यों बिहार, मणिपुर और मेघालय को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अब तक के सर्वे में कुल प्रजनन दर 2 दर्ज की गई है. बिहार, मणिपुर और मेघालय में भी 2015-16 में हुए पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले प्रजनन दर में गिरावट आई है.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) नामक एनजीओ की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्रेजा ने कहा, ‘हमें दो-बच्चों के नियम की जरूरत नहीं है और जनसंख्या विस्फोट जैसा कोई खतरा नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘इसमें एक सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जनसंख्या सभी राज्यों में स्थिर हो रही है, यह प्रवृत्ति केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं है.’

बेंगलुरू निवासी सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एक प्राथमिक बाल चिकित्सा स्वास्थ्य केंद्र एड्रेसहेल्थ के संस्थापक-मुख्य कार्यकारी अधिकारी आनंद लक्ष्मण कहते हैं कि यहां तक कि 2011 की जनगणना ने भी इसकी पुष्टि की थी कि भारत की जनसंख्या स्थिर है.


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कई फैक्टर प्रजनन दर को प्रभावित करते हैं

विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भनिरोधक के उपयोग समेत कई फैक्टर हैं जो प्रजनन दर को प्रभावित करते हैं.

देशभर के घरों के प्रतिनिधित्व वाले नमूनों से कई चरणों में किए गए सर्वेक्षण से सामने आया एनएफएचएस का डाटा यह बताता है कि गर्भनिरोधक के इस्तेमाल में वृद्धि से प्रजनन दर में गिरावट आई है.

असम में प्रजनन दर 2.2 से घटकर 1.9 हो गई जहां परिवार नियोजन के तरीकों का उपयोग 52.4 प्रतिशत से बढ़कर 60.8 प्रतिशत हो गया है.

बिहार में 2015-16 में 3.4 की तुलना में 2019-20 में कुल प्रजनन दर घटकर 3.0 रह गई है. इसमें 55 प्रतिशत परिवार अब परिवार नियोजन के विभिन्न तरीकों का उपयोग कर रहे हैं जबकि पिछले सर्वेक्षण में यह आंकड़ा 24 प्रतिशत था.

लक्ष्मण ने कहा, ‘आंकड़ों से पता चलता है कि गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल में पिछले चार सालों में काफी वृद्धि हुई है.’

एनजीओ पॉपुलेशन काउंसिल के एक शोधकर्ता डॉ. राजीब आचार्य ने कहा कि प्रजनन दर को प्रभावित करने वाले अन्य फैक्टर में गर्भपात, शादी करने वाली महिलाओं का अनुपात और शिक्षा शामिल हैं.

गर्भपात के संदर्भ में आचार्य ने कहा कि इसका कोई डाटा उपलब्ध नहीं है और ऐसे में यह मानने का कोई कारण नहीं है कि यह काफी बढ़ गया है.

दूसरे फैक्टर के बारे में उन्होंने कहा, ‘15-49 के बीच आयु वर्ग— जो प्रजनन आयु समूह है— में शादी करने वाली महिलाओं का अनुपात पिछले कुछ वर्षों में 97 से 98 प्रतिशत रहा है.’

भारत में शादी की उम्र लगातार बढ़ रही है. एनएफएचएस-5 के मुताबिक पश्चिम बंगाल को छोड़ बाकी सभी राज्यों ने विवाहित महिलाओं के अनुपात में गिरावट दर्ज की है. उन्होंने कहा, ‘यह एक और फैक्टर होगा जो प्रजनन क्षमता में गिरावट की वजह बना.’

उन्होंने कहा कि शोध बताते हैं कि महिलाओं की शिक्षा का प्रजनन दर में गिरावट पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘जब लड़कियां स्कूल जाती हैं, तो उनकी शादी देर से होती है. उनके बातचीत कौशल में भी सुधार होता है.’


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केरल में प्रजनन दर में वृद्धि दिखी

केरल इस सर्वेक्षण में शामिल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां एनएफएचएस-4 की तुलना में प्रजनन दर में वृद्धि हुई है, यह 1.6 से 1.8 हो गई है.

लक्ष्मण के अनुसार, केरल जैसे अपेक्षाकृत विकसित राज्य में ऐसा क्यों हुआ होगा, इस पर किसी नतीजे पर पहुंचना आसान नहीं है. हालांकि, उन्होंने कहा कि यह विश्लेषण करना दिलचस्प होगा कि केरल में काम करने वाली प्रवासी आबादी के कारण तो प्रजनन दर नहीं बढ़ी है.

उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में बिहार और बंगाल के मजदूर जिनकी शिक्षा का स्तर कम है— काम करने के लिए केरल जाते हैं और यह प्रजनन दर में वृद्धि की वजह हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह विशुद्ध रूप से एक अनुमान है. इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें सूक्ष्म स्तर के डाटा के विश्लेषण की आवश्यकता होगी.’

सर्वेक्षण के अन्य उल्लेखनीय निष्कर्षों के मुताबिक महिला नसबंदी अब भी आंध्र प्रदेश (98 प्रतिशत), तेलंगाना (93 प्रतिशत), केरल (88 प्रतिशत), कर्नाटक (84 प्रतिशत), बिहार (78 प्रतिशत) और महाराष्ट्र (77 प्रतिशत) जैसे कई राज्यों में गर्भनिरोधक का सबसे लोकप्रिय आधुनिक तरीका है.

पीएफआई की मुत्रेजा के अनुसार, परिवार नियोजन केवल महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ महिलाओं का मुद्दा नहीं है, पुरुषों की भी उतनी ही जिम्मेदारी है…कंडोम और पुरुष नसबंदी गर्भनिरोधक में सबसे आसान तरीके हैं. इसलिए, पुरुषों को आगे बढ़कर कदम उठाना होगा. ये गर्भनिरोधक के सबसे सुरक्षित तरीके हैं.’

मुत्रेजा ने कहा कि एनएफएचएस-5 अच्छी खबर है लेकिन साथ ही आगाह किया है कि ‘हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है.’

मुत्रेजा ने कहा, ‘हमें अभी भी उन राज्यों और जिलों में ठोस प्रयास करना चाहिए जहां उच्च प्रजनन दर और अवांछित गर्भावस्था के मामले हैं.’

उन्होंने अन्य बातों के अलावा सर्वेक्षण के इस निष्कर्ष को लेकर भी संतुष्ट होकर न बैठने की सलाह दी कि जिसमें कहा गया है कि अधिकांश परिवारों तक परिवार नियोजन की पहुंच है.

उन्होंने कहा, ‘भारत को संतुष्ट होकर नहीं बैठना चाहिए क्योंकि परिवार नियोजन सेवाएं चाहने वाले और गर्भनिरोधक तक पहुंच की जरूरत वाले लोगों की संख्या अभी भी बहुत अधिक है.’

मुत्रेजा ने कह भी कहा कि इस तथ्य को देखते हुए कि जनसंख्या स्थिर हो रही है, भारत को खुद को बुजुर्ग आबादी के लिए तैयार करना होगा. उन्होंने कहा, ‘जनसांख्यिकी को देखते हुए वास्तव में हमें बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा के लिए योजनाएं शुरू करनी होगी.’

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ लक्ष्मण ने इससे सहमति जताई लेकिन कहा कि जनसांख्यिकीय बदलाव में लंबा वक्त लगेगा क्योंकि भारत एक बड़ा देश है. उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी बुजुर्ग आबादी अभी बहुत छोटी है. लेकिन कुछ ज्यादा विकसित राज्य निश्चित रूप से उस दिशा में बढ़ रहे हैं.

लक्ष्मण ने कहा कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के आंकड़ों का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है क्योंकि भारत के लिए समग्र आंकड़े पर उनका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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1 टिप्पणी

  1. ये दर हिंदुओं में घट रही है व मुस्लिमों में बढ़ रही है। आपने इस पर कुछ नही लिखा। क्योंकि आपका एजेंडा दूसरा रहता है।

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