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मंगलवार, 29 अप्रैल, 2025
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स्वास्थ्य मंत्री मंसुख मंडाविया ने 10 दिन में दिखा दिया कि वो हर्षवर्धन से किस तरह अलग हैं

अपनी शुरूआती बैठकों में ही मंसुख मंडाविया ने जता दिया है कि वो अनुशासन प्रिय हैं और मंत्रालय के अधिकारियों से भी यही अपेक्षा रखते हैं.

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नई दिल्ली: अभी मुश्किल से 10 दिन हुए हैं जब स्वास्थ्य मंत्री मंसुख मंडाविया ने राष्ट्रीय राजधानी में शास्त्री भवन से निर्माण भवन तक का छोटा सा सफर तय किया और मंत्री पद की सीढ़ी पर एक पायदान ऊपर चढ़ते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए.

अधिकारियों के साथ अपनी पहली बैठक में मंत्री ने वादा किया था कि वो वरिष्ठ अधिकारियों के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप तैयार करेंगे और उसका हिस्सा बनेंगे. हालांकि ग्रुप अभी तक बना नहीं है. लेकिन मंत्रालय के अंदरूनी सूत्रों का कहना है, कि बदलाव पहले ही महसूस होने लगा है.

हर्षवर्धन के पुराने और ढीले ढाले अंदाज़ से नए मंत्री का ज़्यादा कॉरपोरेट और लक्ष्य-संचालित दृष्टिकोण, संदेश स्पष्ट है कि अधिकारियों को हर समय सतर्क रहना है और समय पर ऑफिस आना है.

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘पहली ही मीटिंग में उन्होंने हम से कह दिया कि वो अनुशासन-प्रिय हैं और वो हर रोज़ सुबह 9.30- 10 बजे तक ऑफिस आ जाएंगे और वो हमसे भी यही अपेक्षा रखते हैं’.

अधिकारी ने कहा, ‘उन्होंने कहा कि वो स्वयं वरिष्ठ अधिकारियों का एक व्हाट्सएप ग्रुप तैयार करेंगे, जिसमें वो हर समय उपलब्ध रहेंगे. उन्होंने हमसे कहा कि हम अपने लक्ष्य ख़ुद तय करें और समय-समय पर उनकी समीक्षा करते रहें. उन्होंने कहा कि कभी कभी वो भी समीक्षा करेंगे, लेकिन एक सामान्य लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए, एक केंद्रित और सामूहिक पहल होनी चाहिए’.

अधिकारियों के अनुसार, बैठकों में अब नतीजों पर ज़्यादा ज़ोर दिखने लगा है, बजाय हर्षवर्धन के घुमावदार प्रवचनों के, जिनकी आदत थी कि वो पल्स पोलियो कार्यक्रम के अगुआ के तौर पर अपनी कामयाबियों का विस्तृत बखान करने में लग जाते थे या फिर अपने पसंदीदा विषय तंबाकू नियंत्रण पर बात करने लगते थे.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक पदाधिकारी ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘अभी ये शुरूआती दिन हैं और ये एक ऐसा मंत्रालय है, जिसमें अगर कोई करना चाहे तो काम बहुत है. अगर न करना चाहे तो इस बहाने के पीछे छिपने का हमेशा विकल्प रहता है, कि ‘स्वास्थ्य राज्य का विषय है.’

पदाधिकारी ने कहा, ‘अभी तक उन्हें देखकर ये अंदाज़ा हुआ है कि वो काम करने वाले इंसान हैं, ऐसा आदमी जो साहस के साथ मुसीबतों का सामना करता है. इसके पीछे ये अवधारणा भी हो सकती है, कि वो यहां इसलिए हैं कि उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री की अपेक्षाओं पर पूरा नहीं उतर रहे थे’.

दिप्रिंट ने मंत्री के एपीएस आरोही पटेल से टिप्पणी के लिए संपर्क किया, जो उनके मीडिया संपर्क के प्रभारी हैं. उनका जवाब हासिल होने पर इस ख़बर को अपडेट कर दिया जाएगा.

कौन हैं मंडाविया?

मंडाविया, जो पटेल समुदाय से आते हैं, गुजरात के पलिताना ज़िले के हनोल नाम के एक छोटे से गांव में एक मध्य वर्गीय किसान परिवार में पैदा हुए थे.

रसायन एवं ऊर्वरक मंत्रालय में बतौर राज्य मंत्री उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए, इसी महीने हुए फेरबदल में उन्हें तरक़्क़ी देकर कैबिनेट दर्जा दे दिया गया. कैबिनेट मंत्री की हैसियत से वो अब उस मंत्रालय के भी प्रभारी हैं.

उनकी तरक़्क़ी बहुत तेज़ी के साथ हुई है, और यही कारण है कि इनटरनेट पर एक बार फिर 2012 का एक वीडियो वायरल होने लगा है, जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके उज्ज्वल भविष्य की भविष्यवाणी की थी.

मंडाविया ने GoMs में भी अपनी छाप छोड़ी

बैठकों में मौजूद रहे सूत्रों का कहना था कि मंडाविया, जो हर्षवर्धन की अध्यक्षता वाले कोविड-19 मंत्री समूह के सदस्य थे, चर्चाओं के दौरान अकसर अपनी व्यवहारिक दख़लअंदाज़ियों की वजह से अलग चमक जाते थे. सूत्रों के अनुसार वो किसी भी मामले की तहत तक पहुंच जाते हैं और तुरंत समझ जाते हैं कि एक आम आदमी के लिए उसके क्या मायने हैं.


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स्वास्थ्य मंत्रालय के एक तीसरे अधिकारी ने कहा, ‘डॉ हर्ष वर्धन एक चिकित्सक हैं जिन्होंने अपनी सारी सियासत दिल्ली शहर से की है. लेकिन ये मंत्री ज़मीन से उठे हुए हैं और ये जानते हैं कि आम आदमी कैसे रहता है और कौन सी समस्याएं हैं जो उसे परेशान करती हैं. नीतियों के बारे में उनके सवाल तुरंत ही शासन के अंदर तक पहुंचते हैं- क़तार में खड़े आख़िरी व्यक्ति के लिए इसके क्या मायने हैं.’

अधिकारी ने कहा, ‘एक आत्म-विश्वास भी है जो शायद उनकी हालिया पदोन्नति और इस बात से पैदा हुआ है कि प्रधानमंत्री ने उनमें विश्वास जताया है.’

लेकिन, जैसा कि उन जीओएम्स से दिख गया, मंडाविया ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्हें हल्के में लिया जा सके. एक जीओएम मीटिंग में मौजूद एक अधिकारी ने बताया, कि बैठक में जब एक सचिव ने उनकी बात बीच में काटी, तो उन्होंने बहुत शांति के साथ ज़ोर देकर कहा कि ‘मैं बोल रहा हूं ना’. शुरूआती दिनों से अंदाज़ा लगाने के बाद सभी अधिकारियों का कहना है, कि बकवास न सहने का यही रवैया वो मंत्रालय में लेकर आए हैं.

ज़ाहिर है कि उन हालात के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है, जिनमें मंडाविया को लाया गया है, और ये मंत्रालय में उनके शुरूआती दिनों से ज़ाहिर हो जाता है.

एक चौथे अधिकारी ने कहा, ‘पिछले दो महीने अभूतपूर्व रहे हैं. मंत्रालय की कमान में बदलाव के साथ एक निश्चित उद्देश्य जुड़ा है- अगर तीसरी लहर आ जाती है तो उससे होने वाली तबाही की पहले से रोकथाम करना, प्रणालियां स्थापित करना, और सबसे महत्वपूर्ण ये कि वो सब करते हुए नज़र आना. उद्देश्य की चुस्ती के पीछे शायद वही भावना काम कर रही है’.

अधिकारी ने तर्क दिया, ‘ये भी कहा जा सकता है कि जिन्हें भी इन्हीं परिस्थितियों में स्पष्ट निर्देशों के साथ लाया गया है, वो इसी तरह काम करेंगे’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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