नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार तीन दौर की काउंसलिंग के बाद भारत भर के मेडिकल कॉलेजों में कुल 1,445 पोस्ट-ग्रेजुएट (पीजी) सीटें अभी भी खाली पड़ी हैं, जिसके बाद केंद्र सरकार ने छात्रों द्वारा प्रवेश में रुचि नहीं दिखाने के कारणों की समीक्षा करने के लिए एक समिति गठित करने की सलाह दी.
दो राउंड की काउंसलिंग के बाद, और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 20 सितंबर को एक परिपत्र के माध्यम से नेशनल एलिजिब्लिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (पीजी), 2023 में बैठने वाले सभी उम्मीदवारों को अनुमति देने के बावजूद – डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी), मास्टर ऑफ सर्जरी (एमएस) और डिप्लोमेट ऑफ नेशनल बोर्ड (डीएनबी) पाठ्यक्रमों में अभी भी उपलब्ध सीटें खाली पड़ी हैं.
दूसरे शब्दों में, पहली बार, बची हुई पीजी सीटों पर एनईईटी-पीजी प्रवेश के लिए योग्यता प्रतिशत शून्य कर दिया गया था.
दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए डेटा से पता चलता है कि 25 अक्टूबर को समाप्त हुई काउंसलिंग के अलग-अलग दौर (नियमित दो राउंड के बाद सीटें खाली होने के बाद आयोजित) के बाद, अखिल भारतीय कोटा के तहत कुल 862 एमएस, एमडी और डीएनबी सीटें अभी भी खाली हैं, जबकि राज्य कोटे के तहत ऐसी 583 सीटें अभी भी खाली हैं.
मंत्रालय के चिकित्सा शिक्षा प्रभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “इसके मद्देनजर, खाली सीटों के कारणों को देखने और उसके लिए उपाय सुझाने के लिए स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के तहत एक पैनल का गठन किया गया है.”
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि खाली सीटें ज्यादातर गैर-नैदानिक विषयों जैसे शरीर रचना विज्ञान, जैव रसायन, शरीर विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान और फार्माकोलॉजी में थीं.
दूसरे अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय उन छात्रों को अनुमति देने के लिए काउंसलिंग के चौथे दौर पर भी विचार कर रहा है, जिन्हें अभी तक सीट चुनने का मौका नहीं मिला है या किसी कारण से प्रवेश से चूक गए हैं.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए कॉल के ज़रिए केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुधांश पंत से संपर्क किया. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
इस बीच, साल-दर-साल खाली हो रही पीजी सीटों पर, डॉक्टरों के एक नेटवर्क, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शरद कुमार अग्रवाल, जिन्होंने पीजी योग्यता प्रतिशत को शून्य तक कम करने के सरकार के कदम का समर्थन किया है, ने कहा कि प्रवेश परामर्श प्रक्रिया की समीक्षा करने की तत्काल आवश्यकता है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “फिलहाल, केंद्र और राज्य अपनी-अपनी काउंसलिंग करते हैं और हमें लगता है कि कई इच्छुक छात्र जो गैर-नैदानिक विषयों का चयन करना चाहते हैं, वे ऐसा करने में असमर्थ हैं क्योंकि दोनों प्रणालियां समानांतर रूप से कैसे काम करती हैं, इस पर भ्रम है.”
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खाली सीटें और संभावित समाधान
2023 तक मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में कुल 67,802 पीजी सीटें हैं. दिप्रिंट के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, इनमें से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 30,211 एमएस/एमडी सीटें और निजी मेडिकल कॉलेजों में 19,362 एमएस/एमडी सीटें हैं, जबकि बाकी, 18,229 डीएनबी सीटें हैं.
मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड द्वारा विनियमित डीएनबी सीटें, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा विनियमित एमएस/एमडी के समकक्ष मानी जाती हैं, और ज्यादातर बड़े निजी अस्पतालों द्वारा पेश की जाती हैं – कुछ को छोड़कर जो सरकार द्वारा संचालित जिला अस्पतालों में भी हैं.
एनईईटी पीजी मानदंडों के अनुसार, केंद्रीय संस्थानों में सभी सीटें – जैसे कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), और डीम्ड विश्वविद्यालय और और राज्यों, ट्रस्टों या निजी तौर पर संचालित मेडिकल कॉलेजों में 15 प्रतिशत अखिल भारतीय कोटा के माध्यम से भरे जाते हैं. मेडिकल कॉलेज की बाकी सीटें राज्यों के कोटे में हैं.
दिप्रिंट द्वारा प्राप्त विवरण से पता चलता है कि राज्य कोटे के तहत, सबसे अधिक सीटें, 226, आंध्र प्रदेश में खाली थीं, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 108 और तमिलनाडु में 80 सीटें थीं.
डॉ. अग्रवाल के पास इसके लिए एक समाधान है. उन्होंने कहा “मेरी सलाह होगी कि दोनों कोटे के तहत प्रवेश के लिए काउंसलिंग को एक सामान्य मंच और सॉफ्टवेयर के माध्यम से मिला दिया जाए. इससे छात्रों को अधिक स्पष्टता के साथ विकल्प चुनने में मदद मिलेगी.” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि संस्थानों को कुछ जांच और संतुलन के साथ अपने स्तर पर प्रवेश लेने की अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि निजी कॉलेजों में निर्धारित शुल्क से अधिक सीटों की बिक्री न हो.
इस बीच, फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) के अध्यक्ष डॉ. अविरल माथुर ने बताया कि बची हुई सीटें ज्यादातर डीएनबी सीटें होने की संभावना है. उन्होंने कहा, “कभी-कभी, उम्मीदवार टियर 2 या 3 शहरों में निजी अस्पतालों में डीएनबी सीटें लेने में रुचि नहीं रखते हैं क्योंकि वे अच्छे प्रशिक्षण के अवसर प्रदान नहीं करते हैं.”
IMA की तरह, FORDA ने भी सीटें भरने के लिए योग्यता NEET-PG प्रतिशत को कम करने के सरकार के फैसले का समर्थन किया था. “लेकिन”, माथुर ने कहा, “तथ्य यह है कि ये सीटें अभी भी खाली पड़ी हैं, इस तर्क को भी खारिज कर देता है कि सरकार के कदम (प्रतिशत को 0 पर लाने के लिए) से पीजी सीटों की बेरोकटोक बिक्री हो सकती है.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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