नई दिल्ली: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 महामारी की चपेट में आने के बाद से भारत में टीवी की जांच में काफी कमी आई है. यह इस तथ्य के बावजूद कि दो बीमारियों के लक्षणों में समानता के कारण, पिछले अगस्त में कोविड और टीबी दोनों की जांच के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए थे.
आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में, 17.19 करोड़ लोगों की टीबी की जांच की गई, जिनमें से 52,273 में इस बीमारी का पता चला. इस साल जून तक 4.87 करोड़ लोगों की जांच की गई, जिनमें से 13,934 लोगों में इस बीमारी का पता चला.
इसकी तुलना पिछले वर्षों की संख्या से करें तो इसमें तेज गिरावट हुई है- 2019 और 2020 के बीच लगभग 38 प्रतिशत. 2019 में, 27.73 करोड़ लोगों की जांच की गई और उनमें से 62,958 मामलों का पता चला.
बीमारी के लिए सक्रिय तौर पर जांच 2017 में शुरू हुई जब राष्ट्रीय टीबी जांच के तीन दौर का अभियान चलाया गया- जिसमें 5.5 करोड़ से अधिक लोगों की जांच की गई, जिनमें से 26,781 मामले टीबी के पाए गए. 2018 में, 18.93 करोड़ लोगों की जांच की गई और 47,307 मामलों का पता चला.
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एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट
टीबी को लंबे समय से भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट कहा जाता रहा है. क्षय रोग उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-2025) के अनुसार, टीबी हर साल अनुमानित 4,80,000 भारतीयों और हर दिन 1,400 से अधिक भारतीयों की जान लेती है.
दस्तावेज़ कहता है, ‘भारत में भी हर साल एक लाख से अधिक ‘लापता’ मामले होते हैं जिन्हें नोटिफाई नहीं किया जाता और ज्यादातर मामले बिना उपचार के रह जाते हैं या गैर-जिम्मेदाराना और अपर्याप्त उपचार पाते हैं और जिनका निजी क्षेत्र में इलाज किया जाता है.’
यही कारण है कि भारत ने टीबी के छिपे हुए मामलों का पता लगाने के लिए, अतिसंवेदनशील आबादी की स्क्रीनिंग के जरिए सक्रिय मामले का पता लगाने की पहल शुरू की. वैश्विक सतत विकास (एसडीजी) का लक्ष्य 2030 तक टीबी को खत्म करना है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि भारत 2025 तक वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले ऐसा करने की योजना बना रहा है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है लॉकडाउन के कारण कि टीबी के सक्रिय मामलों के पता लगाने में मुश्किल आई, जब स्वास्थ्यकर्मियों के लिए लोगों तक पहुंचना संभव नहीं था, और बाद में, उपलब्ध स्वास्थ्य कर्मचारियों का कोविड-19 के लिए डायवर्जन के कारण भी.
दिप्रिंट आधिकारिक प्रतिक्रिया के लिए ईमेल और व्हाट्सएप के जरिए स्वास्थ्य मंत्रालय पहुंचा, लेकिन इस रिपोर्ट के पब्लिश होने तक कोई जवाब नहीं मिला.
पिछले महीने एक प्रेस बयान में, भारत सरकार की संचार शाखा, प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने कहा, ‘कोविड -19 से संबंधित प्रतिबंधों के असर के कारण, 2020 में टीबी के मामलों को नोटीफाई करने में लगभग 25 प्रतिशत की कमी आई थी, लेकिन ओपीडी में गहन केस फाइंडिंग के साथ-साथ सभी राज्यों द्वारा समुदाय में सक्रिय केस फाइंडिंग अभियानों के जरिए इस प्रभाव को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
‘इसके अलावा, वर्तमान में ऐसा कोई पर्याप्त सबूत नहीं हैं जो बताता हो कि कोविड-19 के कारण मामले में इजाफा या इसे पता लगाने के प्रयास बढ़ने से टीबी के मामलों में वृद्धि हुई हो.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘क्षयरोग (टीबी) और कोविड-19 की दोहरी मॉर्बिडिटी को इस तथ्य के माध्यम से और अधिक उजागर किया जा सकता है कि दोनों रोगों को संक्रामक माना जाता है और दोनों मुख्य तौर पर फेफड़ों पर हमला करते हैं, खांसी, बुखार और सांस लेने में कठिनाई के समान लक्षण पैदा करते हैं, हालांकि टीबी की रोग पैदा करने की अवधि लंबी होती है और बीमारी की शुरुआत धीमी होती है.’
टीबी-कोबिड दोनों की जांच
पिछले अगस्त में, भारत सरकार ने निर्देश जारी किया कि सभी पहचान किए गए नए टीबी रोगियों या वे जो वर्तमान में इलाज करा रहे उनका उचित उपचार शुरू करने से पहले कोविड-19 का परीक्षण किया जाना चाहिए.
इसी तरह, चार लक्षणों वाले कॉम्प्लेक्स (खांसी और/या 2 सप्ताह से अधिक समय तक लगातार बुखार, अधिक वजन घटना, रात को पसीना), टीबी के मामले की कांटैक्ट हिस्ट्री, और टीबी की हिस्ट्री का इस्तेमाल करके सभी कोविड-19 मामलों की जांच टीबी के लक्षणों को लेकर की जानी थी. निर्देश में यह भी कहा गया है कि लक्षण वाले लोगों को ट्रूनेट या सीबीएनएएटी के जरिए छाती का एक्स-रे और टीबी का परीक्षण किया जाना चाहिए.
ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2020 के अनुसार टीबी के वैश्चिक मामलों में भारत का हिस्सा 27 फीसदी और मृत्यु दर 31 फीसदी है.
ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में टीबी के वैश्विक बोझ का 27 प्रतिशत और मृत्यु दर का 31 प्रतिशत हिस्सा है. मल्टीड्रग टीबी के वैश्विक मामलों में भी 27 प्रतिशत हिस्सा है.
2019 में, 24.04 लाख टीबी मामलों को नोटिफाई किया गया था. 2020 में यह संख्या घटकर 18.05 लाख और जून 2021 तक 9.65 लाख हो गई. कानूनी तौर पर देश में सभी टीबी मामलों को उपयुक्त स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा नोटिफाई किया जाना अनिवार्य है.
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