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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थ11% डायबिटिक, 36% को है हाइपरटेंशन, पूरे भारत में लाइफस्टाल से जुड़ी बीमारियों पर लैंसेट की रिपोर्ट

11% डायबिटिक, 36% को है हाइपरटेंशन, पूरे भारत में लाइफस्टाल से जुड़ी बीमारियों पर लैंसेट की रिपोर्ट

द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि 2008 और 2020 के बीच भारत के लोगों में मोटापा और पेट का मोटापा 28.6 और 39.5% था.

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नई दिल्ली: भारतीय राज्यों में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के बोझ का आकलन करने वाली एक रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत में डायबिटीज़ का प्रसार 11.4 प्रतिशत है, जबकि 35.5 प्रतिशत भारतीय उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) से पीड़ित हैं. देश में एनसीडी के अंतर्गत किए गए इस अध्ययन को “भारत के सभी राज्यों को कवर करने वाला पहला व्यापक अध्ययन” कहा जाता है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किए गए अध्ययन का निष्कर्ष गुरुवार को द लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित किया गया है.

भारत के मेटाबोलिक गैर-संचारी स्वास्थ्य रिपोर्ट-आईसीएमआर-इंडियाब नेशनल क्रॉस-सेक्शनल स्टडी शीर्षक वाले अध्ययन में यह भी पता चला है कि भारत में पूरे शरीर में मोटापा और पेट के मोटापे का प्रसार क्रमशः 28.6 और 39.5 प्रतिशत था.

इसके अलावा, यह दिखाया गया है कि 24 प्रतिशत भारतीय हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया से पीड़ित हैं – एक ऐसी स्थिति जिसमें वसा धमनियों में जमा हो जाती है और व्यक्तियों को दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है – जबकि 15.3 प्रतिशत लोग प्री-डायबिटिक है.

जब सटीक संख्या के लिए और ज्यादा रिसर्च किया गया तो, पता चला कि 2021 में, भारत में 101 मिलियन लोग मधुमेह और 136 मिलियन प्रीडायबिटीज से पीड़ित थे, जबकि 315 मिलियन लोगों को उच्च रक्तचाप, 254 मिलियन लोगों को सामान्य मोटापा, और 351 मिलियन लोगों को पेट का मोटापा था.

इसके अतिरिक्त, देश में 213 मिलियन लोगों को हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया था.

Graphic: Manisha Yadav | ThePrint
ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

यह रिजल्ट 2008 और 2020 के बीच देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 1,13,043 लोगों (33,537 शहरी और 79,506 ग्रामीणों) के सर्वेक्षण पर आधारित हैं.

प्रोजेक्ट से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ. आर. एम. अंजना ने गुरुवार को रिपोर्ट लॉन्च करते हुए कहा, “इन निष्कर्षों को राज्यों में एनसीडी की तेजी से बढ़ती समस्या के बारे में सरकारों के लिए एक प्रमुख अलार्म की तरह देखना चाहिए और चुनौती का समाधान करने के लिए तत्काल कुछ किया जाना चाहिए.” .

अध्ययन के एक वरिष्ठ लेखक डॉ. वी. मोहन के अनुसार, भारत में राज्य सरकारें, जो मुख्य रूप से अपने संबंधित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के प्रभारी हैं, एनसीडी पर विस्तृत राज्य-स्तरीय डेटा में विशेष रूप से रुचि लेने की संभावना है, क्योंकि यह उन्हें एनसीडी की प्रगति को सफलतापूर्वक रोकने और उनकी जटिलताओं का प्रबंधन करने के लिए साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप विकसित करने की अनुमति देगा.

अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत में मधुमेह और दूसरे मेटाबोलिक एनसीडी का प्रसार पहले के अनुमान से काफी अधिक है.

उदाहरण के लिए, 2019 से 2021 के बीच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 में दिखाया गया था कि 15 वर्ष से अधिक आयु की 21 प्रतिशत महिलाओं को अपनी ही आयुवर्ग के 24 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में उच्च रक्तचाप था, इसी सर्वेक्षण से पता चला था कि 15-49 वर्ष की आयु की 6.4 प्रतिशत महिलाएं मोटापे से ग्रस्त थीं, जबकि उस आयु वर्ग के 4 प्रतिशत पुरुषों में यह स्थिति थी.

इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा साझा किए गए डेटा से पता चलता है कि भारत में 77 मिलियन लोगों को मधुमेह है.

शोधकर्ताओं ने पेपर में कहा, “जबकि मधुमेह महामारी देश के अधिक विकसित राज्यों में स्थिर हो रही है, जबकि यह अभी भी अधिकांश अन्य राज्यों में बढ़ रही है.” “इस प्रकार, देश के लिए गंभीर निहितार्थ हैं, भारत में मेटाबोलिज्म एनसीडी के तेजी से बढ़ते महामारी को रोकने के लिए तत्काल राज्य-विशिष्ट नीतियों और हस्तक्षेपों की आवश्यकता है”.

डॉ. आर.एस. आईसीएमआर के एनसीडी डिवीजन के प्रमुख धालीवाल ने एक बयान में कहा कि अध्ययन के परिणामों से यह काफी स्पष्ट है कि भारत में मेटाबोलिक एनसीडी के कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारी और अन्य दीर्घकालिक अंग जटिलताओं का जोखिम तेजी से बड़ी आबादी को अपनी चपेट में ले रहा है.


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राज्यों के बीच व्यापक अंतर

अध्ययन के परिणामों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में लगभग सभी मेटाबोलिक एनसीडी की उच्च दर पाई गई. राज्यों के बीच एनसीडी के प्रसार में भी बड़ा अंतर था.

उदाहरण के लिए, पंजाब में सर्वेक्षण में शामिल 51.8 प्रतिशत लोगों में उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) था, जबकि मेघालय में प्रसार 24.3 प्रतिशत था. इसी तरह, गोवा के 26.4 प्रतिशत लोगों को मधुमेह था, जबकि देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में केवल 4.8 प्रतिशत लोगों में इस स्थिति का निदान किया गया था.

Graphic: Manisha Yadav | ThePrint
ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

जब मोटापे की बात आई तो पुडुचेरी में जहां 53 फीसदी लोग इससे पीड़ित पाए गए, वहीं झारखंड में सिर्फ 11.6 फीसदी लोगों की यह स्थिति थी.

शोधकर्ताओं ने कहा कि कुछ अधिक विकसित राज्यों में मधुमेह की महामारी अपने चरम पर पहुंच गई है, जबकि अधिकांश कम विकसित राज्य अभी भी शुरूआती चरण में हैं.

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ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि अन्य कार्डियोमेटाबोलिक जोखिम कारकों जैसे मोटापा, उच्च रक्तचाप और डिस्लिपिडेमिया (लिपिड्स का असंतुलन) का प्रसार देश भर में, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में समान रूप से अधिक है.

इसलिए ध्यान उन राज्यों में प्रीडायबिटीज से मधुमेह की ओर बढ़ते लोगों को कम करने के लिए राज्यों को जरूरी कदम उठाने की जरूत है. लेखकों ने जोर दिया कि जहां मधुमेह महामारी अभी तक चरम पर है, और मधुमेह वाले व्यक्तियों में जिनमें जोखिम फैक्टर बना हुआ है उसे कम करने केलिए कंप्रेहेंसिव तरीके से रोगियों को देखभाल किए जाने की जरूरत है जिससे आने वाले समय में राज्यों में आने वाले कंपलीकेशन को रोका जा सके जहां महामारी पहले से स्थिर हो चुकी है.

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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