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Thursday, 25 April, 2024
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डायग्नोस्टिक टेस्ट रेट को निर्धारित करने वाला पहला राज्य बन सकता है अरुणाचल प्रदेश

हीमोग्लोबिन परीक्षण के लिए 50-100 रुपये से अधिक नहीं, कंप्लीट ब्लड काउंट के लिए 300-500 रुपये. राज्य लगभग 160 प्रकार के परीक्षणों के लिए मानक मूल्य सीमा तय करने के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार कर रहा है.

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नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश जल्द ही लैब द्वारा किए गए डायग्नोस्टिक टेस्ट की मूल्य सीमा को मानकीकृत करने वाला भारत का पहला राज्य बन सकता है, केंद्र सरकार अब अन्य राज्यों से इस मॉडल की जांच करने और उसका पालन करने के लिए कह रही है.

जबकि दिल्ली और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने कोविड के लिए महामारी के चरम के दौरान डायग्नोस्टिक टेस्ट्स पर मूल्य सीमा – जैसे कि आरटी-पीसीआर – तय की थी. अरुणाचल लगभग 160 प्रकार के परीक्षणों के लिए एक मानक मूल्य सीमा के साथ आया है और दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक कार्यान्वयन से पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मंजूरी मांगी है.

अरुणाचल सरकार द्वारा निर्धारित दरों को 2010 में संसद द्वारा पारित भारत के क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट (रजिस्ट्रेशन एंड रेग्युलेशन) ऐक्ट के तहत प्रावधानों के हिस्से के रूप में अंतिम रूप दिया गया है, जो कि सिंगल डॉक्टर क्लीनिक्स, नर्सिंग होम्स और बड़े अस्पतालों सहित प्राइवेट थिरेप्यूटिक एंड डायग्नोस्टिक सेंटर को नियंत्रित करने के लिए नियमों की शुरूआत की अनुमति देता है.

अब तक, 11 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों – जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, असम, राजस्थान, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम शामिल हैं, और दिल्ली को छोड़कर सभी केंद्र शासित प्रदेशों ने क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट ऐक्ट को अपनाया है जिसके अंतर्गत नियम और विनियम को अभी बड़े पैमाने पर परिभाषित किया जाना है.

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इस साल मार्च में हुई 13वीं नेशनल काउंसिल फॉर क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट (एनसीसीई) की बैठक में अरुणाचल प्रदेश सरकार का प्रस्ताव पेश किया गया था.

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अरुणाचल प्रदेश स्वास्थ्य सेवा निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी तासो कम्पो ने इस सप्ताह दिप्रिंट को बताया, “हम दरों पर आगे बढ़ने से पहले केंद्र की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं.”

अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित दरों के अनुसार, डायग्नोस्टिक सेवाएं हीमोग्लोबिन परीक्षण के लिए 50-100 रुपये, कंप्लीट ब्लड काउंट के लिए 300-500 रुपये और लीवर फंक्शन टेस्ट के लिए 800-1,000 रुपये से अधिक शुल्क नहीं ले सकती हैं.

इसी तरह, पैप स्मीयर टेस्ट [सर्वाइकल कैंसर के लिए] के लिए प्रस्तावित दर 1,000-2,000 रुपये है, सीटी स्कैन [पूरे पेट के लिए] 3,000-6,000 रुपये है, जबकि मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) के लिए निर्धारित दर 4,000-7,000 रुपये है.

एनसीसीई की बैठक में मौजूद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्यों को अरुणाचल प्रदेश द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव की जांच करने का सुझाव दिया गया है, लेकिन वे उनकी लोकल डायनमिक्स को ध्यान में रखेंगे.

अधिकारी ने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्तर-पूर्व में एक राज्य के लिए जो दरें सही लगती हैं, वे उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए लागू नहीं हो सकती हैं.”

‘गुणवत्ता की कीमत’

एनसीसीई बैठक, जहां अरुणाचल प्रदेश सरकार का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था, उपभोक्ता शिक्षा अनुसंधान केंद्र की एक वरिष्ठ सदस्य, मीरा शिवा ने कहा, “आदर्श रूप से, राज्यों को अपने दम पर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मूल्य निर्धारण की शुरुआत करनी चाहिए थी – जैसे हमने कुछ राज्यों को कोविड महामारी के चरम के दौरान करते देखा.”.

उन्होंने कहा, “लेकिन हमें खुशी है कि कम से कम एक राज्य ने डायग्नोस्टिक सर्विसेज के रेट चार्ज के साथ आने की पहल की है.”

शिवा के अनुसार, क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट को लागू करने का उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होगा जब तक कि अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा सेवाओं का सख्त मूल्य विनियमन पेश नहीं किया जाता है.

हालांकि, कुछ उद्योग जगत के नेता इससे असहमत दिखे.

नई दिल्ली में डॉ. डांग्स लैब के संस्थापक और निदेशक डॉ. नवीन डांग ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि देश के सभी डायग्नोस्टिक सेंटर्स को क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट ऐक्ट के तहत अनिवार्य रूप से कर्मियों की योग्यता, बुनियादी ढांचे और गुणवत्ता से संबंधित आवश्यकताओं के संबंध में न्यूनतम मानकों का पालन करने के लिए बनाया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा,”सार्वजनिक क्षेत्र के डायग्नोस्टिक केंद्रों को लोगों को रियायती दरों पर या मुफ्त में अच्छी सेवाएं देने के लिए मजबूत किया जाना चाहिए, लेकिन जब निजी डायग्नोस्टिक केंद्रों के मूल्य विनियमन की बात आती है, तो मुझे लगता है कि उन्हें बाजार की गतिशीलता के अनुसार काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि गुणवत्ता की कीमत चुकानी पड़ती है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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