सूरत: सूरत के नए सिविल अस्पताल में, जो एक सरकारी सुविधा है, 45 वर्षीय हीराबेन लॉन्स पर बैठी हैं. अंदर, उनकी 40 वर्षीय छोटी बहन का कोविड का इलाज चल रहा है. जिस दिन वो उन्हें यहां लाए, उस दिन की याद करते हुए हीराबेन बताती हैं, कि सूरत की सबसे बड़ी कोविड सुविधा में, भर्ती प्रक्रिया बिल्कुल परेशानी-रहित थी.
उन्होंने बताया, ‘दो रात पहले, मेरी बहन की सांस फूलने लगी, और उसे सीने में दर्द होने लगा. उसी दिन उसका कोविड टेस्ट पॉज़िटिव आ गया. हमने उसे तुरंत अस्पताल ले जाने का फैसला किया, लेकिन हमें कोई एंबुलेंस नहीं मिली. हम उसे अपनी गाड़ी में यहां लेकर आए. जैसे ही हम यहां पहुंचे, उन्होंने (अस्पताल स्टाफ) उसके वाइटल्स चेक किए, और उसे फौरन एक बिस्तर दे दिया गया’.
हालांकि कुछ दिन पहले तक, अस्पताल में ऐसी स्थिति नहीं थी.
इसी महीने के शुरू में दूसरी लहर के दौरान, जब शहर में कोविड मामलों में उछाल आया, तो अस्पताल उन सैकड़ों मरीज़ों को संभालने में जूझ रहा था, जो हर रोज़ वहां आ रहे थे.
9 अप्रैल को, अस्पताल उस वक़्त सुर्ख़ियों में आ गया, जब उसके बाहर 40 से अधिक एंबुलेंसेज़ की लाइन लग गई, जिनका हर मरीज़ भर्ती के इंतज़ार में था, और उनमें से बहुत से मरीज़, ऑक्सीजन लेवल गिरने की वजह से हांफ रहे थे.
वो नज़ारा देश भर के दूसरे बहुत से सरकारी अस्तालों की तरह ही था, जो महामारी के सामने अभिभूत होकर रह गए हैं.
मरीज़ों की इस बाढ़- और इस डर से कि लंबा इंतज़ार उनमें से कुछ की जान ले लेगा- न्यू सिविल हॉस्पिटल सूरत के डॉक्टर- संभावित समाधान तलाशने पर माथापच्ची करने को मजबूर हो गए.
उस विचार-विमर्श का जो निष्कर्ष निकला, वो था चिकित्सा सहायता की एक निर्बाध श्रंखला, ‘एंबुलेंस ओपीडी’, जो एंबुलेंस से शुरू होती है, और परिसर के तीन हिस्सों तक जाती है, जिनमें कुल मिलाकर 2,600 बिस्तर हैं. इस सिस्टम में हर मरीज़ की, काफी हद तक, उसे लाने वाली सरकारी 108 एंबुलेंस के अंदर ही जांच कर ली जाती है, और फिर उनके लक्षणों की गंभीरता के आधार पर, उन्हें अस्पताल के अलग अलग हिस्सों में भेज दिया जाता है.
हर एंबुलेंस ट्राइएजिंग प्रोटोकॉल से लैस होती है, जिसमें ज़रूरी उपचार की नेचर के हिसाब से, मरीज़ों की श्रेणियां बना ली जाती हैं.
अस्पताल के प्रशासकों का कहना है कि इस मॉडल से, उनकी सुविधा में मरीज़ों की भर्ती का समय घटकर 10-15 मिनट रह गया है, जो इसी महीने के शुरू में 5-6 घंटे तक होता था.
‘समस्या के समाधान के लिए हमारा व्यवस्थित दृष्टिकोण काम कर गया’, ये कहना था अस्पताल के श्वसन विभाग की प्रमुख, 40 वर्षीय डॉ पारुल वधगामा का, जिन्होंने एंबुलेंस ओपीडी मॉडल स्थापित करने में, एक अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने आगे कहा,‘मुझे दूसरे शहरों से डॉक्टरों के फोन आ रहे हैं, जो जानना चाहते हैं कि एंबुलेंसेज़ की लंबी क़तारों को कैसे संभाला जाए’.
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‘कुछ करना ही था’
राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल को सूरत नगर निगम ने, 464 नए मामले दर्ज किए थे. 10 अप्रैल तक ये संख्या दोगुनी होकर 913 हो गई. 15 अप्रैल को शहर में कोविड के 1,551 नए मामले आए. 26 अप्रैल के दिन ये संख्या 1,472 थी.
सूरत का नया सिविल अस्पताल तीन इमारतों में बंटा हुआ है, और इन तीनों में कोविड उपचार होता है. इनमें से एक बिल्डिंग स्टेम सेल रिसर्च सुविधा है, जिसे 1,000 बिस्तरों की कोविड यूनिट में बदल दिया गया है. पुरानी एनसीएच बिल्डिंग में 800 बिस्तर हैं, और इतने ही तीसरी बिल्डिंग, न्यू किडनी हॉस्पिटल में हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए डॉ वधगामा ने बताया, कि नया सिस्टम किस तरह विकसित किया गया. उन्होंने कहा कि एक समय पर अस्पताल के बाहर, लाइन इतनी लंबी थी कि हमें डर लगने लगा, कि मरीज़ एंबुलेंसेज़ में ही मर जाएंगे’.
वधगामा ने आगे कहा, ‘जब हमने मरीज़ों की हालत देखी, तो स्थिति से तुरंत और कारगर ढंग से निपटने के लिए, हमें कुछ करना ही था. चूंकि हमारे पास सपविधाओं की कमी थी, इसलिए हमने (एंबुलेंस में ही) मरीज़ों के वाइटल्स चेक करके, उनके रैपिड एंटिजेन टेस्ट करने शुरू कर दिए’. अगर मरीज़ों की ऑक्सीजन स्थिर होती थी, तो उन्हें स्टेबल वॉर्ड भेजा जाता था, और अगर नहीं, तो उन्हें ट्राएज आईसीयू भेजा जाता था.
उन्होंने आगे कहा, ‘ट्राएज आईसीयू में मरीज़ एक बार स्थिर हो जाए, तो फिर अगर उन्हें दूसरी कोई बीमारी है, तो उन्हें सेमी-क्रिटिकल आईसीयू में भेज दिया जाता है, और अगर वो स्थिर हैं तो किडनी बिल्डिंग में भेज दिए जाते हैं.
उन्होंने बताया कि स्टेम सेल बिल्डिंग में, सबसे गंभीर मरीज़ों को रखा जाता है.
ओपीडी बिल्डिंग के बाहर डेस्क पर, चार डॉक्टर और छह नर्सें, मरीज़ों के पंजीकरण और उनके वाइटल्स चेक करने का काम करते हैं.
अस्पताल ने बताया कि इस सिस्टम को लागू करने के एक सप्ताह के अंदर, वो स्थिति को नियंत्रण में लाने में कामयाब हो गए.
अस्पताल में मेडिकल कॉलेज की डीन, डॉ रीताम्भरा मेहता ने कहा, ‘किडनी अस्पताल का एक सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के तौर पर उदघाटन होना था, लेकिन वक़्त की ज़रूरत को देखते हुए, उसे एक कोविड सुविधा में तब्दील कर दिया गया’.
अस्पताल के अनुसार, स्टेम सेल बिल्डिंग में अंदर ही एक टेस्टिंग लैब भी है, जहां हर रोज़ औसतन 2,500 आरटी-पीसीआर टेस्ट किए जाते हैं. इसके अलावा हर रोज़ औसतन 100 रैपिड एंटिजेन टेस्ट, उन मरीज़ों पर किए जाते हैं, जो एंबुलेंस में अस्पताल आते हैं.
हर बिल्डिंग में 500 ऑक्सीजन सिलिंडर्स रिज़र्व में रखे रहते हैं, जिन्हें इस्तेमाल होने पर भरवा लिया जाता है. इस सुविधा में अंदर ही एक ऑक्सीजन प्लांट मौजूद है, जो 20 अप्रैल से चालू है. 2 किलोलीटर प्रति मिनट क्षमता वाला ये प्रेशर स्विंग एब्ज़ॉर्पशन (पीएसए) प्लांट राज्य में अपनी तरह का पहला संयंत्र है, और देश भर के अस्पतालों में ऐसे दर्जनों प्लांट स्थापित करने की मंज़ूरी दी जा चुकी है.
डॉ वधगामा ने कहा कि अस्पताल में फिलहाल ‘हर रोज़ औसतन 350 मरीज़’ आ रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा, ‘अस्पताल आने वाली मरीज़ों की अभी तक सबसे अधिक संख्या 587 है. वो 10 अप्रैल को हुआ था, जब केस लोड बहुत अधिक था’.
अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार, हालांकि उस समय से केस लोड घटकर 30 प्रतिशत रह गया है, जब इस महीने के शुरू में, शहर में पहली बार मामलों की संख्या बढ़ी थी. वेंटिलेटर्स की ज़रूरत 20 प्रतिशत बढ़ गई है.
वधगामा ने कहा, ‘केस लोड के फिर से बढ़ने की आशंका के मद्देनज़र, डॉक्टरों को वेंटिलेटर्स के इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी जा रही है. नवसारी, वलसाड़, तापी और निझारी जैसे नज़दीकी ज़िलों से भी, मरीज़ इस अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘जैसे जैसे बीमारी ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रही है, इसकी संभावना है कि गंभीर मरीज़ों को इधर भेजा जाएगा’.
उन्होंने कहा कि अस्पताल ने सरकार को लिखा है, कि उन्हें उपलब्ध कराए गए वेंटिलेटर्स की संख्या में इज़ाफा किया जाए.
डॉ मेहता ने कहा कि अस्पताल में फिलहाल, क़रीब 1,200 कोविड मरीज़ भर्ती हैं.
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महिलाएं हैं आगे
सूरत अस्पताल के स्टाफ में 600 नर्सें, 250 फैकल्टी सदस्य, 430 रेज़िडेंट्स, 60 सीनियर रेज़िडेंट्स, 152 इंटर्न्स, और 147 अंतिम-वर्ष के एमबीबीएस छात्र हैं.
डॉ मेहता ख़ुद एक मनोचिकित्सक हैं, जिन्होंने अस्पताल का मनोचिकित्सा विभाग स्थापित किया था. उन्होंने बताया कि न्यू सिविल हॉस्पिटल की महिलाओं ने, आगे बढ़कर अगुवाई की है.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे स्टाफ में लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं हैं. 236 फैकल्टी सदस्यों में 124 महिला डॉक्टर्स हैं, और हमारा क़रीब 90-95 प्रतिशत नर्सिंग स्टाफ भी महिलाएं हैं’.
उन्होंने कहा, ‘जहां तक कोविड का सवाल है, ज़्यादातर महत्वपूर्ण पदों पर महिला डॉक्टर्स ही प्रमुख हैं. हमारे यहां डॉ रागिनी वर्मा हैं, जो कोविड अस्पताल की मेडिकल सुपरिंटेंडेंट हैं, और डॉ नीता काविश्वर हैं, जो एनेस्थीसियॉलजी विभाग चलाती हैं’.
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