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Thursday, 21 November, 2024
होमहेल्थकैसे लंपी स्किन रोग के टीके को विकसित करने के लिए ICAR ने वायरस की 50 से अधिक पीढ़ियों को विकसित किया

कैसे लंपी स्किन रोग के टीके को विकसित करने के लिए ICAR ने वायरस की 50 से अधिक पीढ़ियों को विकसित किया

इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटूट्स (ICAR) द्वारा विकसित एक टीका, लंपी प्रोवैक- 2, मवेशियों में होने वाले लंपी स्किन रोग को रोकने में प्रभावी पाया गया और अब यह व्यावसायिक तौर पर लॉन्च के लिए तैयार है.

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अहमदाबाद: गुजरात, राजस्थान और पंजाब सहित अन्य राज्यों के मवेशियों के बीच फैले लंपी स्किन रोग के प्रकोप को रोकने के लिए संघर्ष कर रहे पशुपालकों और पशु चिकित्सकों के लिए एक अच्छी खबर है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों ने दिप्रिंट को बताया कि इस बीमारी के खिलाफ प्रभावी एक स्वदेशी वैक्सीन, जो रांची से अलग-थलग (आइसोलेट) किए गए वायरल नमूनों का उपयोग करते हुए 2019 से ही विकास की प्रक्रिया में थी, अब सफलतापूर्वक ट्रायल्स का दौर पूरा कर चुकी है और अब व्यावसायिक लॉन्च के लिए तैयार है.

एक बड़ी सफलता के रूप में आईसीएआर के दो संस्थानों ने लंपी-प्रोवैक-2 नाम का एक टीका विकसित किया है, जिसे केंद्र सरकार जल्द से जल्द व्यावसायीकरण करने की योजना बना रही है, ताकि उस बीमारी के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सके जिसने पिछले एक महीने के आसपास कई भारतीय राज्यों में हजारों मवेशियों की जान ले ली है.

दिप्रिंट के साथ टेलीफोन पर हुई एक बातचीत में, डॉ नवीन कुमार – हरियाणा स्थित आईसीएआर नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्विन्स के एक शोधकर्ता जिन्होंने इस वैक्सीन के परीक्षणों का नेतृत्व किया – उन्होंने हमें इस बारे में विस्तार से बताया कि पिछले तीन वर्षों के दौरान इस वैक्सीन को कैसे बनाया गया था.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने पहली बार 2019 में रांची से इस वायरस को आइसोलेट कर दिया था.’

उन्होंने कहा, ‘तब से, हम इस वायरस को समझने और इसके लिए टीका (वैक्सीन) विकसित करने का काम कर रहे हैं.’

कैप्रीपॉक्स वायरस के कारण होने वाला लंपी स्किन रोग – जो गायों और भैंसों दोनों को प्रभावित करता है – का नाम इस बीमारी के परिणामस्वरूप मवेशियों की त्वचा पर विकसित होने वाले बड़े, सख्त पिंड से मिलता है.

रोगग्रस्त पशुओं में अवसाद, कंजंक्टिवाइटिस और अधिक लार आना जैसे कुछ अन्य लक्षण पाए गए हैं.

आखिरकार रोगी मवेशियों के शरीर पर बने पिंड फट जाते हैं जिससे काफी सारा खून बहने लगता है. फिलहाल इस वायरल बीमारी का कोई इलाज नहीं है और उपचार ज्यादातर क्लीनिकल सिम्टम्स को लक्षित करता है.

वर्तमान में, इस बीमारी के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा टीका गोटपॉक्स वैक्सीन है, जो लंपी स्किन रोग के खिलाफ भी कुछ हद तक सुरक्षा देता है.

कुमार ने कहा, ‘इस टीके की प्रभावकारिता लगभग 60 प्रतिशत है. इसलिए हमने लंपी स्किन रोग के लिए एक विशिष्ट टीका विकसित किया है. फील्ड ट्रायल्स से पता चला है कि यह टीका सुरक्षित और प्रभावी है.’


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लंपी -प्रोवैक को विकसित करने की कहानी

लंपी -प्रोवैक एक जीवित क्षीण किया हुआ टीका है – जिसका अर्थ है कि इसमें लंपी स्किन रोग वाले वायरस के कमजोर स्ट्रेन (उपभेद) शामिल हैं.

वायरस के नमूनों को कमजोर करने के लिए, शोधकर्ताओं ने आनुवंशिक इंजीनियरिंग के प्रयोग किए, जिन्हें सीरियल पैसेजिंग के रूप में जाना जाता है.

सीरियल पैसेजिंग या तो म्यूटेटिड वायरस के गुणों का अध्ययन करने के लिए, या वांछित गुणों वाले स्ट्रेन को विकसित करने के लिए पुनरावृत्तियों के द्वारा किसी वायरस (या जीवाणु) को विकसित करने की एक प्रक्रिया है.

इस मामले में, शोधकर्ताओं ने वायरस की लगभग 50 नई पीढ़ियों को विकसित करने के लिए एक अफ्रीकी हरे बंदर के गुर्दे से प्राप्त वेरो कोशिकाओं का उपयोग किया. प्रत्येक पुनरावृत्ति में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है. कुमार ने बताया कि सटीक क्षीण स्ट्रेन पर पहुंचने की पूरी प्रक्रिया में डेढ़ साल लग गए.

इसके बाद और फील्ड ट्रायल्स किए जाने से पहले, इस टीके का सुरक्षा जांच के उद्देश्य से चूहों और खरगोशों पर परीक्षण किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘जब टीका चूहों और खरगोशों में सुरक्षित दिखाई दिया तो हमने फील्ड ट्रायल्स के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया.’

कुमार बताते हैं कि पशुओं पर किया गया पहला परीक्षण इस साल अप्रैल से जून महीने के बीच मुक्तेश्वर (उत्तराखंड) में 15 बछड़ों पर किया गया था. उन्होंने कहा, ‘इन परीक्षणों ने हमें दिखाया कि टीका फील्ड में रह रहे जानवरों के लिए भी सुरक्षित है.’

इसके बाद जुलाई माह में उदयपुर और बांसवाड़ा (राजस्थान) के डेयरी फार्मों में एक रैंडमाइइजड कंट्रोल्ड ट्रायल किया गया. इसके तहत लगभग 700 गायों, भैंसों और बछड़ों – जिनमें गर्भवती या दूध देने वाली दोनों तरह की गायें शामिल थीं – को यह टीका लगाया गया.

कुमार ने कहा कि इन परीक्षणों के परिणामों से पता चला है कि यह टीका न केवल सुरक्षित है बल्कि मवेशियों में लंपी स्किन रोग को रोकने में भी अधिक प्रभावी है.

कुमार के अनुसार, एक जीवित क्षीण वायरस वाले टीके में बेहतर प्रभावकारिता होती है और यह कोविड वैक्सीन कोवैक्सिन जैसे निष्क्रिय वायरस वाले टीकों – जो बीमारी के खिलाफ अल्पकालिक सुरक्षा प्रदान करते हैं – के विपरीत एक साल तक प्रभावी होती है.

लंपी -प्रोवैक को फ्रीज ड्राय फॉर्म में स्टोर किया जाता है और इसे 4 डिग्री सेल्सियस पर सुरक्षित रखे जाने की जरूरत होती है.

कुमार ने कहा कि आईसीएआर अब इस वैक्सीन के व्यावसायीक उत्पादन के लिए फार्मास्यूटिकल कम्पनियो में एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (रुचि की अभिव्यक्ति) आमंत्रित करेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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