हिसार: ‘घर-घर जाके नाक मैं दंडी घुसा देते हैं. डॉक्टर और पुलिस रोज ही पूछने आ जाते हैं, बोले हैं- हाथ धोओ, मास्क लगाओ- मास्क पहनों’. चिड़चिड़े स्वर में यह सब कहते हुए हिसार के सिसवाल गांव के निवासी गोपी राम अपनी चाय की चुस्की लेने में वापस मस्त हो जाते है.
तुरंत ही उनका बेटा जसु राम उन्हें रोकता हुआ कहता है, ‘क्या हुआ बाबा, तेरी जान बचाने के लिए ही तो करते है.’
हरियाणा के हिसार जिले के सिसवाल और ढाणी सिसवाल गांव – जो कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई के निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं – में परेशानी की असल शुरुआत तब हुई जब मार्च 2021 में वृंदावन की होली की पार्टी में भाग लेने गए 70 के करीब लोग वापस लौटने पर बीमार पड़ गए. पिछले महीने होने वाले सामुदायिक विवाहों और उत्तरखंड के कुंभ मेले में जाने की और कुछ ग्रामीणों की जिद से हालात और ज्यादा बिगड़ गए.
मई के महीने में, इन दो गांवों में- जिनकी कुल आबादी 12,000 है- 40 से भी अधिक लोगों की मौत हुई, जिनमें से अधिकांश मौतें कोविड जैसे लक्षणों के साथ हुई. लेकिन इनमें से केवल 10 को कोरोनावायरस से हुई मौतों के रूप में दर्ज किया गया था.
आज के दिन ये दो गांव हिसार के ग्रामीण इलाकों में सबसे ज्यादा कोविड -19 के मामले दर्ज कर रहे हैं. हालांकि, वे अधिकतम कोरोना जांच सुनिश्चित करने के मामले में जिले के ‘आदर्श गांव’ भी बन गए हैं.
दिप्रिंट द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, फ़िलहाल इन दो गांवों में प्रति दिन में 400 के करीब जांच के नमूने एकत्र हो रहे हैं, जबकि हरियाणा के अन्य गांवों में यह औसत 20-30 के आसपास हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए, विधायक कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि जब उन्होंने यह देखा कि इस क्षेत्र में परीक्षण लगभग नगण्य था तब से ही ये दोनों गांव उनकी ‘प्रमुख प्राथमिकता’ बन गए.
उन्होंने कहा, ‘जब मैंने मौतों की संख्या में वृद्धि होते पाया तो मैंने अप्रैल के अंत में एक बैठक बुलाई. लोग लगातार बीमार पड़ रहे थे लेकिन कोई भी जांच नहीं कराना चाहता था. जांचों की संख्या भी बहुत कम थीं. मैंने तभी इन दो गांवों को अपनी प्रमुख परियोजनाओं के रूप चिन्हित कर वहां का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और यह भी सुनिश्चित किया कि परीक्षण में तेजी लाई जाए.’ उन्होंने आगे कहा, आज, वहां हर दिन अधिक से अधिक जांच हो रही है और यही कारण है कि हम यहां वायरस को नियंत्रित करने में सक्षम हुए हैं.’
बिश्नोई ने आगे बताया कि अब उनकी योजना इसी तरह का फोकस चार अन्य गांवों में भी करने की है. उन्होंने कहा, ‘अब, हमने चार अन्य गांवों – जहां से मौतों की सूचना आ रही है – को चिन्हित किया है, ताकि वहां बड़े पैमाने पर जांच की जा सके.’
मई महीने में हिसार जिले, जिसमें 281 गांव हैं, ने अकेले 579 मौतों के साथ- साथ 22,107 से भी अधिक कोविड-19 मामले दर्ज किए हैं. हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में टेस्टिंग कम होने के कारण वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है.
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‘युद्धस्तर पर हो रही है टेस्टिंग’
डॉक्टरों की एक टीम से लैस दो मोबाइल वैन हर दिन सुबह इन गांवों में जांच के नमूने लेने, सैनिटाइज़र और मास्क वितरित करने और ग्रामीणों को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए रवाना होती है.
सिसवाल के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, जिसके अंतर्गत 1.5 लाख की कुल आबादी वाले 42 गांव आते हैं – के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ रोशन ने बताया, ‘हम युद्ध स्तर पर टेस्टिंग कर रहे हैं क्योंकि यह इस महामारी के प्रसार को रोकने का एकमात्र तरीका है और हमें खुशी है कि जो लोग शुरू में इस बारे मेंअनिच्छा प्रकट करते थे वे अब खुद परीक्षण के लिए आगे आ रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसा इसलिए भी है क्योंकि वे मौत से डरने लगे थे. साथ ही, हमारी टीमों ने सुनिश्चित किया कि इन गांवों में परीक्षण और टीकाकरण के बारे में फैली सभी तरह की अफवाहों का भंडाफोड़ किया जाए और लोगों को जागरूक किया जाए.’
डॉ. रोशन के अनुसार, शुरुआत में दोनों गांवों में एक दिन में लगभग 150 मामले दर्ज हो रहे थे, जिनकी संख्या अब घटकर 100 हो गयी है. ‘वैसे तो यह कोई ज्यादा अंतर नहीं है, लेकिन हम मामलों की पहचान करने और उन्हें अलग-थलग करने में सक्षम हुए हैं जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि संक्रमण और ज्यादा न फैले.’
हिसार की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रत्ना भारती ने बताया कि हरियाणा के ग्रामीण इलाजों में टेस्टिंग बढ़ने से मौतों की संख्या में कमी आई है.
वो आगे कहती हैं, ‘लोग अभी भी जांच नहीं करवाना चाहते हैं, लेकिन कुछ गांव काफी अच्छा कर रहे हैं. वे अब खुद हमें आकर उनका परीक्षण करने और पॉजिटिव मामलों की पहचान करने के लिए कह रहे हैं, जो एक राहत की बात है.’
उन्होंने बताया, ‘पहले, जो टीमें परीक्षण करने जाती थीं, उनको भगा दिया जाता था, टीम के कुछ सदस्यों को पीटा भी जाता था और उन्हें कमरों में बंद कर दिया जाता था. लेकिन अब, चूंकि लोग जांच कराने के इच्छुक हैं, इसलिए शुरुआती चरण में ही मामलों की पहचान कर ली जा रही है और उनका इलाज किया जा रहा है.’
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टेस्ट, ट्रैक, आइसोलेट
सिसवाल गाँव का हर दूसरा घर अब कोरोनावायरस से अवगत है और कम-से-कम एक बार इसका परीक्षण किया गया है. मनरेगा कार्यस्थल पर काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों का भी नियमित अंतराल पर परीक्षण किया जाता है.
इस उद्देश्य हेतु सीएचसी ने स्वास्थ्य कर्मियों सहित आठ चिकित्साकर्मियों की एक टीम को तैनात किया है जो लोगों का परीक्षण करने, उनका पता लगाने ट्रैक करने और बीमारों को अलग – थलग करने के लिए घर-घर जाते हैं.
इसी गांव की रहने वाली सिलोचना ने कहा कि वह अब इस वायरस और यह क्या-क्या कर सकता है के बारे में पूरी तरह से अवगत हैं. वह कहती हैं, ‘शुरुआत में, मैं उनके द्वारा अपनी नाक में डंडी डालने से डरती थी, लेकिन अब मैं समझ सकती हूं कि यह कितना महत्वपूर्ण है. डॉक्टरों की एक टीम हर दिन एक चक्कर लगाती है और हमें बताती है कि अगर हमें जीना है तो हमें अपने हाथ कैसे धोने है, अपना चेहरा नहीं छूना है और मास्क पहनना है.’
कोरोना जांच के लिए पहली प्राथमिकता उन लोगों को दी जाती है जिनमें कोविड-19 के लक्षण दिखाई देते हैं, इसके बाद वे लोग आते हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हों.
डॉ रोशन ने कहा, ‘कांटेक्ट ट्रैकिंग (संपर्कों का पता लगाना) इस अभ्यास का एक बड़ा हिस्सा है. हम कोविड पॉजिटिव लोगों की एक सूची बनाते हैं और फिर उनसे उन दस लोगों के नाम मांगते हैं जिनके साथ वे संपर्क में थे. इनमें परिवार के सदस्य या बाहरी व्यक्ति भी हो सकते हैं. फिर उन दस लोगों का प्राथमिकता के आधार पर परीक्षण किया जाता है क्योंकि उनमें संक्रमण के फैलने का जोखिम अधिक होता है.’
सीएचसी ने ‘परीक्षण के लक्ष्य’ भी निर्धारित किए हैं, और अधिकारियों ने बताया कि वे इसे पूरा करने का प्रयास करेंगे.
एक बार जब किसी व्यक्ति के कोविड-19 से संक्रमित होने की पुष्टि हो जाती है, तो उसे आइसोलेट (अलग -थलग) कर दिया जाता है.
डॉ रोशन ने बताया. ‘हम उन्हें (बीमारों को) एक किट देते हैं जिसमें मल्टीविटामिन, एक थर्मामीटर और पैरासिटामोल जैसी बुनियादी दवाएं होती हैं, और हम उन पर नजर भी रखते हैं. अगर उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगे या बुखार तेज हो जाये, तो हम उन्हें तुरंत जिला अस्पताल रेफर करते हैं.’
टीकाकरण भी रफ़्तार पकड़ रहा है
दोनों गांवों में टेस्टिंग के साथ-साथ टीकाकरण अभियान भी रफ्तार पकड़ रहा है .
हरियाणा के जींद और रोहतक जिलों के अन्य गांवों में हो रहे टीकाकरण के प्रतिरोध के उलट यहां के निवासी, जिनमें बजुर्ग भी शामिल है, टीका लेने में आगे हैं.
सिसवाल के किसान धन्ना राम ने कहा, ‘मुझे टीका (इंजेक्शन) लगा है. कुछ लोग कह रहे थे कि इंजेक्शन से मौत हो जाती है, लेकिन फिर डॉक्टरों ने मुझे बताया कि उन्होंने भी इसे ले लिया है और यह पूरी तरह से ठीक (सुरक्षित) हैं. इससे मुझमें विश्वास पैदा हुआ और मैंने इसे लगवाना स्वीकार कर लिया. अब, मैं और लोगों से भी कहता हूं कि अगर वे जीना चाहते हैं तो उन्हें भी इसे लगवाना चाहिए.’
अब तक, सीएचसी सिसवाल में 13,200 से अधिक लोगों का टीकाकरण (पहला इंजेक्शन) किया जा चूका है और अब उनका लक्ष्य जून के मध्य तक इस संख्या को 25,000 तक ले जाना है.
डॉ. रोशन कहते हैं, ‘सिसवाल सीएचसी के तहत, हम पहले हीं 13,000 से अधिक लोगों को पहली बार का टीका (इंजेक्शन) दे चुके हैं. इसके अलावा हमने 50% से भी ज्यादा लोगों – जिनकी आयु 45 वर्ष से अधिक है – को इंजेक्शन लेने के लिए राजी कर लिया है.’
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