पटना/नई दिल्ली: पिछले वित्तीय वर्ष में, केंद्र और बिहार सरकार ने आयुष्मान भारत–प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के कुल खर्च का लगभग एक‑तिहाई हिस्सा राज्य के बाहर इलाज कराने में लगाया.
इसका कारण था: बिहार में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, जिसके चलते कई लाभार्थियों ने पोर्टेबिलिटी फीचर का उपयोग कर दिल्ली के एम्स और वेल्लोर के सीएमसी सहित अन्य अस्पतालों में इलाज कराया.
चूंकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, बिहार सरकार अब मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने में जुट गई है ताकि लाभार्थियों को इलाज के लिए राज्य के बाहर नहीं जाना पड़े.
सरकार अब राज्य के अंदर ही निजी अस्पतालों के साथ समझौते करके जटिल मामलों के इलाज की सुविधा भी उपलब्ध करा रही है.

बिहार स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2024‑25 में AB‑PMJAY पर कुल खर्च 1,010.38 करोड़ रुपये था, जिसमें से 333 करोड़ रुपये (32.9%) पोर्टेबिलिटी के जरिए बाहर के अस्पतालों में खर्च हुए.
हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर कुल खर्च 1,07,125 करोड़ रुपये में सिर्फ 3,100 करोड़ रुपये (2.8%) पोर्टेबिलिटी पर गया, लेकिन बिहार सरकार इस फीचर का उपयोग रोकने को लेकर सितंबर 2024 तक हर संभव प्रयास कर रही है.
AB‑PMJAY के तहत, गरीब और कमजोर वर्ग को अस्पताल में 5 लाख रुपये तक का फ्री इलाज मिलता है, और इलाज की लागत केंद्र एवं राज्य सरकार 60:40 अनुपात में साझा करते हैं.

बिहार स्वास्थ्य सुरक्षा समिति (BSSS) के सीईओ शशांक शेखर सिन्हा ने कहा कि राज्य में बनी मेडिकल सुविधाएं पुख्ता करने की कोशिश चल रही है ताकि इलाज नजदीक ही मिल सके.
उन्होंने बताया कि एम्स पटना को भी राज्य सरकार हर संभव मदद देकर एक मेगा हेल्थ हब बनाने पर काम कर रही है.
BSSS के आंकड़ों के अनुसार, 2024‑25 में योजना के तहत राज्य में 145 अस्पतालों को जोड़ा गया, और 100 नए – ज्यादातर निजी एकल या बहु‑विशेषज्ञता अस्पताल—शामिल करने की प्रक्रिया तेज है, बताया शैलेश चंद्र दीवाकर (BSSS के प्रशासनिक अधिकारी).
पिछले वर्ष से राज्य सरकार ने सभी पंजीकृत अस्पतालों का मैप तैयार किया और पोटेंशियल इम्पैनेलमेंट के लिए फील्ड यात्रा शुरू की.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के AB-PMJAY डैशबोर्ड के मुताबिक — जो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत इस योजना को लागू करने वाली एजेंसी है — 2018 में शुरू होने के बाद से इस योजना के तहत देशभर में कुल 9.05 करोड़ मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती किया गया. इनमें से सिर्फ 18 लाख मरीज़ बिहार से थे. तुलना के लिए, तमिलनाडु उन राज्यों में से एक है जहां सबसे ज़्यादा भर्ती हुई हैं — 1 करोड़ से भी ज़्यादा.
लाभार्थी की पहचान पर खास ध्यान
राज्य सरकार के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि AB-PMJAY को लेकर कम जागरूकता एक बड़ी चुनौती रही है.
शुरुआत में, लाभार्थियों का चयन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 (SECC 2011) में तय किए गए गरीबी और पेशे से जुड़े मानकों के आधार पर किया गया था. लेकिन 2024 में राज्य सरकार ने इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत आने वाले सभी लोगों, यानी राशन कार्ड धारकों तक बढ़ाने का फैसला किया.
इसके बाद, संभावित लाभार्थियों के लिए आयुष्मान कार्ड बनाने का एक बड़ा अभियान शुरू किया गया.
इसमें आशा कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर अभियान चलाना शामिल है, जिनके प्रति कार्ड प्रोत्साहन को 5 रुपये से बढ़ाकर 15 रुपये कर दिया गया है. इसके अलावा पंचायती राज के कार्यपालक सहायकों को भी इसमें जोड़ा गया है और जागरूकता अभियान तेज किया गया है। दीवाकर ने बताया कि 2024 में कुल 2.83 करोड़ आयुष्मान कार्ड बनाए गए.
राज्य सरकार द्वारा साझा किए गए आंकड़ों में यह भी दिखाया गया कि इस योजना पर सरकारी खर्च 2023-2024 में लगभग 307 करोड़ रुपये से बढ़कर पिछले वित्तीय वर्ष में 1010.38 करोड़ रुपये हो गया.
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “यह काफी बड़ी बढ़ोतरी है और इस बात का प्रमाण है कि हम चाहते हैं कि ज़रूरतमंद इस योजना का पूरा लाभ उठाएं.”
साथ ही, जहां 2023-24 में सरकार ने बिहार में 3.03 लाख अस्पताल में भर्ती के दावों का निपटारा किया था, वहीं अगले वित्तीय वर्ष में यह संख्या बढ़कर 7.5 लाख से अधिक हो गई.
लेकिन कुछ सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ज़ोर दिया कि राज्य को रेफरल और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने पर ज्यादा काम करना होगा.
जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय संयोजक अमूल्य निधि ने दिप्रिंट से कहा, “हाल ही में 10 साल की एक बलात्कार पीड़िता की दो प्रमुख मेडिकल कॉलेजों में समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण मौत हो गई.” उन्होंने ज़ोर दिया कि जब तक रेफरल और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर नहीं किया जाएगा, आयुष्मान कार्ड का ज़्यादा फायदा नहीं होगा.
मुज़फ्फरपुर की एक 10 साल की दलित बच्ची की मौत, जो कथित तौर पर एक पड़ोसी द्वारा बलात्कार की शिकार हुई थी, पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (PMCH) के बाहर एक एंबुलेंस में भर्ती का इंतज़ार करते हुए हो गई—यह राज्य का सबसे बड़ा सरकारी टर्शरी केयर सेंटर है—और इस घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश पैदा कर दिया था.
बताया गया कि इससे पहले उसे श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, मुज़फ्फरपुर में भी इलाज से इनकार कर दिया गया था. यह मामला राजनीतिक रंग ले गया, जिसके बाद राज्य सरकार ने इन संस्थानों के दो वरिष्ठ डॉक्टरों को लापरवाही के आरोप में निलंबित कर दिया.